नई दिल्ली (New Dehli)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi)ने कल बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न (Bharat Ratna posthumously given to Karpoori Thakur)देने का ऐलान किया। इसके बाद बिहार की सियासत गरमा चुकी है। कर्पूरी को लेकर तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं। बिहार के ही पूर्व मुख्यमंत्री आर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू यादव ने ट्वीट कर दावा किया है कि उन्होंने लगातार इसकी मांग केंद्र सरकार से की है। साथ ही उन्होंने कर्पूरी को अपना गुरु भी बताया है।
लालू यादव लिखते हैं, ”मेरे राजनीतिक और वैचारिक गुरु स्व. कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न अब से बहुत पहले मिलना चाहिए था। हमने सदन से लेकर सड़क तक ये आवाज़ उठायी लेकिन केंद्र सरकार तब जागी जब सामाजिक सरोकार की मौजूदा बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण का दायरा बहुजन हितार्थ बढ़ाया। डर ही सही राजनीति को दलित बहुजन सरोकार पर आना ही होगा।”
हालांकि, लालू यादव के बारे यह भी कहा जाता है कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से तो कर्पूरी के साथ अपनी घनिष्ठता का प्रदर्शन किया, लेकिन निजी तौर पर उन्हें ‘कपटी ठाकुर’ का उपनाम दिया। वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी किताब ‘ब्रदर्स बिहारी’ में भी इसका जिक्र किया है।
जब अपनी जीप देने से लालू ने किया था इनकार
यह बात 80 के दशक की है। उस समय कर्पूरी ठाकुर विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। उन्हें जोरों की भूख लगी थी और वह घर जाना चाहते थे। उनकी तबीयत भी ठीक नहीं थी। उन्होंने एक पर्ची में लिखकर लालू यादव को संदेश भिजवाया कि वह अपनी जीप थोड़ी देर के लिए दे दें। लालू यादव ने उसी पर्ची पर दो टूक जवाब लिखकर भिजवा दिया कि जीप में तेल नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि आप दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं कम से कम एक कार खरीद लीजिए। वहीं कर्पूरी ठाकुर का कहना था कि कार में तेल डलवाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। बड़ी मुश्किल से इस तनख्वाह में घर की दाल रोटी चल पाती है।
राजनीति में ईमानदारी व सादगी ने कर्पूरी को बनाया जननायक
राजनीति में जनता का प्रियपात्र बनने को लोग क्या-क्या हथकंडे नहीं अपनाते हैं। लेकिन, बिहार में एक शख्स ऐसा भी हुआ जिसे जनता ने उनकी सादगी, सरलता, मृदुभाषी व ईमानदारी के कारण अपना नायक माना। जी हां, हम बात कर रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर की। इनकी शख्सियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दशकों से बिहार की राजनीति की धुरी बने लालू प्रसाद, नीतीश कुमार व रामविलास पासवान (अब दिवंगत), तीनों के मेंटर जननायक ही रहे।
समाजवाद के पुरोध कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन-संघर्ष से यह संदेश दिया कि सियासत व राजनीति कैसे की जाती है। न के बराबर संचार सुविधा वाले उस युग में भी जननायक को बिहार के किसी भी कोने से गरीबों पर हुए जुल्म की जानकारी मिल जाती। लोगों को उन पर इस कदर भरोसा था कि सरकार व पुलिस को बाद में बताते, सबसे पहले घटना की सूचना जननायक को ही देते। इस कारण ही कहीं भी गरीबों पर जब कोई घटना होती तो सबसे पहले वे ही घटनास्थल पर पहुंचते। उनकी ईमानदारी राजनीति के कारण ही उनके विचार को मानने वाले न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में हैं। बिहार के दूसरे गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने कर्पूरी ठाकुर ने दो बार बिहार की कमान संभाली।
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