नई दिल्ली । चीन पर भारतीय सेना ने बड़ी बढ़त बनाते हुए लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर ठंड आने से पहले से ही 35 हजार सैनिक तैनात कर दिए हैं लेकिन ठंड के दिनों में मोर्चों पर तैनाती का अनुभव न रखने वाले चीनी सैनिक अभी से कमजोर पड़ने लगे हैं। इस बीच दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच पांचवे दौर की वार्ता के लिए तैयारी चल रही है। हालांकि दोनों पड़ोसी देशों ने तनाव के जल्द समाधान की संभावना जताई है लेकिन चीन पर भरोसा करने के बजाय भारतीय सेना ने ठंड के दिनोंं में भी चीनियों से मोर्चा संभालने के इरादे से खुद को तैयार कर लिया है।
दरअसल ठंड के दिनों में बर्फबारी शुरू होते ही चार महीनों के लिए यानी अक्टूबर के अंत तक सड़क मार्ग बंद हो जाएंगे, इसलिए इससे पहले ही सैनिकों के लिए सारे संसाधन जुटाने होंगे। हालांकि आकस्मिक स्थिति में वायुसेना के परिवहन विमानों की सेवाएं ली जा सकेंगी लेकिन इन उड़ानों में भी समय की पाबंदी है। दोपहर से पहले विमानों को लेह से बाहर उड़ना पड़ता है क्योंकि दुर्लभ ऑक्सीजन के साथ तापमान में बढ़ोतरी विमानों के इंजन को प्रभावित करती है। सियाचिन ग्लेशियर में तैनाती और करगिल में 18 हजार फीट ऊंची बर्फ की चोटियों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने का अनुभव रखने वाली भारतीय सेना के लिए लद्दाख की खून जमा देने वाली बर्फीली पहाड़ियां कोई मायने नहीं रखतीं लेकिन ठंड के दिनों में मोर्चों पर तैनाती का अनुभव न रखने वाले चीनी सैनिक अभी से कमजोर पड़ने लगे हैं।
भारत पहले से ही तंग सैन्य बजट के बावजूद 3,488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की सुरक्षा में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहता है, इसीलिए ठंड आने से पूर्व सैनिकों की तैनाती से लेकर उनसे सम्बंधित इंतजाम पूरे किये जा रहे हैं। पाकिस्तान के साथ विवादित सीमा 742 किलोमीटर (460 मील) की सुरक्षा करने से लेकर जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्वी राज्यों में विद्रोहियों की सीमा पर हर प्रवेश बिंदु की निगरानी करने और चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में अतिरिक्त तैनाती आर्थिक रूप से भी भारी पड़ती है। सीमा सुरक्षा को मजबूत करने में भारी लागत आने से देश के सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम पर भी दबाव पड़ता है। दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक भारत के 13 लाख सैनिकों के वेतन भुगतान में रक्षा बजट का लगभग 60% हिस्सा खर्च होता है।
दिल्ली स्थित थिंक-टैंक द यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के निदेशक और सेवानिवृत्त प्रमुख जनरल बीके शर्मा का कहना है, “जब तक दोनों ओर से अतिरिक्त सेना नहीं जाती, तब तक पीछे नहीं हटेंगे या फिर जब तक उच्चतम राजनीतिक स्तर पर कोई तालमेल न हो।” दिल्ली स्थित थिंक टैंक मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के एक वरिष्ठ शोध सहयोगी लक्ष्मण कुमार बेहरा का कहना है, “लद्दाख में सेना की अतिरिक्त तैनाती से पूंजीगत व्यय पर राजस्व का दबाव बढ़ेगा। यदि रक्षा बजट में वृद्धि नहीं हुई तो यह दर्दनाक होगा।”
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने बीजिंग में एक नियमित ब्रीफिंग में कहा, ” उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता के कई दौरों के बाद अधिकांश स्थानों पर सैनिक विघटन कर रहे हैं। दोनों पक्ष सक्रिय रूप से जमीन पर बकाया मुद्दों को हल करने के लिए कमांडर-स्तरीय वार्ता के पांचवें दौर की तैयारी कर रहे हैं। हम आशा करते हैं कि भारतीय पक्ष चीन के साथ समान लक्ष्य की दिशा में काम करेगा, दोनों पक्षों की सर्वसम्मति को लागू करेगा और संयुक्त रूप से सीमा पर शांति और शांति बनाए रखेगा।”
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने भी गुरुवार को साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा कि सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बनाए रखना भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों की प्राथमिक जरूरत है। भारत की चीनी पक्ष से अपेक्षा है कि वह जल्द से जल्द अग्रिम तैनाती हटाने और तनानती की स्थिति को पूरी तरह से खत्म करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करे। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच 5 जुलाई को हुई बैठक में भी इसी बात पर सहमति बनी थी।
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