उज्जैन। नए कानूनों के अंतर्गत पीडि़त को त्वरित न्याय देने का दावा किया गया है, पर शहर सहित प्रदेश में पुलिस बल की कमी इसमें बाधा बन सकती है। जिन पुलिसकर्मियों के पास कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी है उन्हीं के पास प्रकरणों की जांच का भी जिम्मा है।
नए कानूनों में साक्ष्य संकलन सहित कई कामों में अधिक समय लगने वाला है। आरोपी की गिरफ्तारी के बाद से निर्धारित अवधि में चालान प्रस्तुत करना होता है। अलग-अलग अपराध में चालान प्रस्तुत करने की अवधि 45 से 90 दिन तक है। ऐसे में अगर पुलिस आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर पाई तो चालान में देरी होगी, जिससे न्याय मिलने में भी देरी होगी। पुलिसकर्मियों पर काम के अधिक दबाव की वजह है बल की कमी। आबादी के मान से जिले में 34 थाने होने चाहिए, पर अभी 32 ही हैं। नए कानूनों के लिहाज से कानून-व्यवस्था से अधिक ध्यान जांच पर देना होगा। जांच अधिकारियों को कानून व्यवस्था ड्यूटी में नहीं लगाया जाएगा।
प्रदेश में नहीं खुल पा रहे नए थाने
दरअसल, पुलिस मुख्यालय की व्यवस्था के अनुसार 50 हजार की आबादी पर जिला पुलिस बल का एक थाना होना चाहिए। प्रदेश की जनसंख्या साढ़े आठ करोड़ से अधिक है। ऐसे में 1700 से अधिक थाने होने चाहिए, पर पुलिस बल की कमी के चलते नए थानें नहीं खुल रहे हैं। वर्ष 2000 में प्रदेश में 717 थाने थे। यानी बीते 24 वर्ष में 251 थाने ही बढ़े हैं। प्रतिवर्ष का औसत लगभग 10 नए थाने खुलने का है। अपराध के अनुसार बात करें तो भारतीय न्याय संहिता की जगह एक जुलाई के पूर्व में लागू भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अनुसार एक थाना क्षेत्र के अंतर्गत वर्ष में 300 से अधिक अपराध होने पर दूसरा थाना खोला जाना चाहिए, पर इसका भी पालन नहीं हो रहा है। इसका बड़ा कारण पुलिस बल की कमी है। प्रदेश में अभी अधिकारियों को मिलाकर एक लाख 21 हजार पुलिस बल है, जबकि बढ़ती आबादी और अपराध के मान से नए थाने खोलने के लिए लगभग पौने दो लाख पुलिस बल की आवश्यकता होगी। उज्जैन शहर के 32 थानों की भी यही हालत है। यहाँ हर थाने में 15 से लेकर 30 तक के स्टाफ की कमी है और धार्मिक नगरी होने के चलते यहाँ प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और पुलिस बल पर्वो और विशेष अवसरों पर ड्यूटी पर लगाया जाता है, ऐसे में नये कानून का पालन कराने के लिए जिले के थानों में पुलिस बल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना जरुरी है।
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