कोरिया रियासत का भारत संघ में विलय होने के बाद से राजमहल धीरे धीरे विरान होने लगा था और प्रदेश के तत्कालीन मंत्री स्व. डॉ रामचंद्र सिंहदेव जब रहे तब वे विभिन्न त्योहारों के अवसर पर भी सादगी के साथ पर्व मनाते थे। तब कोरिया राजमहल में उतनी रोशनी उनके समय में कभी नही देखने को मिली थी लेकिन उनके उत्तराधिकारी के रूप में डॉ. सिंहदेव की भतीजी अंबिका सिंहदेव बैकुण्ठपुर विधायक चुनी गयीं और बाद में छग शासन में संसदीय सचिव का दायित्व संभाल रही हैं। वह कोरिया राजमहल में नियमित तौर पर निवास कर रही हैं।
ऐसे में संसदीय सचिव अंबिका सिंहदेव ने दीपावली के पूर्व राजमहल के बाहर व अन्दर सभी ,क्षेत्रों में लाइट लगवायी जो दीपावली के पूर्व से जगमग होने लगी। रात के समय रोशनी में राजमहल को देखकर ऐसा लगने लगा कि महल की रौनक लौट रही है। रात्रि में राजमहल को देखना खूबसूरत अनुभव पैदा कर रहा है। वर्षों बाद राजमहल रात्रि में दूधिया रोशनी से नहा गया है।
वास्तुकला का सुंदर उदाहरण है, पूरी है तरह सही सलामत है राजमहल
कोरिया जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर स्थित कोरिया राजमहल कोरिया रियासत की इतिहास का गवाह है जो प्रदेश में सबसे खूबसूरत राजमहल में शुमार है। साथ ही यह राजमहल अभी भी सही सलामत है। इस इतिहास के धरोहर को बचाये रखने की जरूरत है। विशाल राजमहल अंग्रेजी जमाने में वास्तुकला का अच्छा उदाहरण है। इतने वर्षों के बाद भी राजमहल में कहीं पर भी दरार तक नहीं दिखाई देती है। यहं का राजमहल अभी अच्छी हालत में है। इसका रंग रोगन समय समय पर होता रहे तो आने वाले कई सालों तक इतिहास को समेटे रह सकता है।
वर्ष 1931 में राजा रामानुज प्रताप ने रखी थी राजमहल की नींव
कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर में वर्ष 1931 में राजमहल निर्माण की नींव रखी जिसके निर्माण में पांच वर्ष का समय लगा और वर्ष 1935 में राजमहल बन कर तैयार हो गया। इसके पूर्व कोरिया रियासत की राजधानी जिले के वर्तमान जनपद मुख्यालय सोनहत में थी। बाद में कोरिया रियासत की राजधानी बैकुण्ठपुर लाया गया जिसके बाद राजमहल का निर्माण कार्य शुरू हुआ। आज 85 वर्ष की उम्र में भी राजमहल अच्छी हालत में स्थिर है। आज के निर्माण कार्य में गुणवत्ता का अभाव रहता है केाई भी सरकारी निर्माण कार्य ज्यादा दिनों तक नही टिकता ऐसे में कोरिया राजमहल आज भी बिल्कुल सही सलामत है।
राजमहल के निर्माण में नहीं किया गया सीमेंट का उपयाेग
राजमहल के निर्माण में सीमेंट का उपयोग नही किया गया है बल्कि इसके निर्माण में चूने व गारे का उपयोग कर भवन निर्माण कार्य पूरा किया गया। उस वक्त के वास्तुकला का नमूना आज भी देखने को मिलता है। राजमहल के पीलरों में आकर्षक नक्काशी के साथ भवन निर्माण कला का बेजोड नमूना है। बताया जाता है कि चूने की उम्र सीमेंट की उम्र से कही ज्यादा रहती है। यही कारण है कि कोरिया राजमहल में इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी कही से भी दरार नही दिखाई देती। आने वाले कई सालों तक यह सुरक्षित रह सकता है।(हि.स.)