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कोलकाता डॉक्टर केस : आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, CBI जांच की निगरानी के लिए रिटायर्ड जजों की समिति बनाने की मांग

August 20, 2024

नई दिल्ली. कोलकाता (Kolkata) रेप एंड मर्डर केस के बाद से देशभर के लोगों में रोष है. सीबीआई ने मामले की जांच शुरू कर दी है और सोमवार को आरजी कर मेडिकल कॉलेज (RG Kar Medical College) के पूर्व प्रिंसिपल संदपी घोष (Former Principal Sandapi Ghosh) से करीब 13 घंटे तक पूछताछ हुई. डॉक्टर अब भी हड़ताल पर बैठे हुए हैं. कोलकाता में प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने आज स्वास्थ्य भवन तक मार्च करने का आह्वान किया है. वहीं आज मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में भी सुनवाई होनी है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लिया था और मंगलवार को सुबह 10:30 बजे सुनवाई के लिए मामले को वाद सूची में सबसे ऊपर रखा है.



शीर्ष अदालत देश भर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों, खासकर डॉक्टरों की हड़ताल और उनकी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए न्यायिक जांच के आदेश दे सकती है. वहीं जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से ठोस समाधान निकाले जाने के बाद डॉक्टर भी अपनी हड़ताल वापस ले सकते हैं.

दरअसल, मामले पर कोर्ट के स्वत: संज्ञान के बीच एक नया हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया है. एक वकील ने इसमें हस्तक्षेप करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. याचिका में कहा गया है कि कानून तो है, लेकिन जमीनी स्तर पर उसका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है. कार्यस्थलों पर विशाखा दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जाता. बलात्कार और हत्या के हर मामले में न्यायिक जांच होनी चाहिए, ताकि पक्षपात और दबाव से बचा जा सके और असली दोषियों को बचाया जा सके. याचिका में तीन सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की समिति गठित करने की मांग की गई है जो मामले में सीबीआई जांच की निगरानी कर सके.

डॉक्टरों के संगठन फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन ऑफ मेडिकल कंसल्टेंट्स ऑफ इंडिया (एफएएमसीआई) और फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (एफओआरडीए) तथा वकील विशाल तिवारी ने भी स्वप्रेरणा मामले में अंतरिम आवेदन दाखिल करके शीर्ष अदालत का रुख किया है.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई 20 अगस्त की वाद सूची के अनुसार, पीठ में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल होंगे.

डॉक्टरों के लिए कानून तैयार हो: FAMCI

एफएएमसीआई ने अपनी याचिका में किसी केंद्रीय कानून के अभाव में देश भर के अस्पतालों में चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा संबंधी चिंता जताई है और कहा कि बुनियादी सुरक्षा उपायों की मांग के बावजूद चिकित्साकर्मी जोखिम भरे वातावरण में काम करना जारी रखे हुए हैं. डॉक्टरों के संगठन ने कहा कि केंद्र से स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा राज्य स्तरीय कानूनों में कमियों को दूर करने के लिए समान दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए कहा जाना चाहिए.

इसमें कहा गया है, “मेडिकल कॉलेजों (सार्वजनिक और निजी) में रेजिडेंट डॉक्टरों तथा सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को औपचारिक रूप से ‘लोक सेवक’ घोषित किया जाना चाहिए. नगरपालिका अस्पतालों के परिसर में अनिवार्य रूप से पुलिस चौकी स्थापित की जानी चाहिए.”

FORDA ने भी दायर की है याचिका

इसी तरह, FORDA ने अधिवक्ता सत्यम सिंह और संजीव गुप्ता के माध्यम से दायर अपने हस्तक्षेप आवेदन में कहा कि चिकित्सकों ने जीवन बचाने और समाज की सेवा करने के लिए मेडिकल स्कूल और रेजीडेंसी सहित 10 से 11 साल की कठोर शिक्षा और प्रशिक्षण समर्पित किया है. FORDA ने कहा, “स्वास्थ्य सेवा कर्मी समाज में एक अपरिहार्य भूमिका निभाते हैं, जो अक्सर देखभाल प्रदान करने और जीवन बचाने के लिए चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं. उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सर्वोपरि है. हम न्यायपालिका से आग्रह करते हैं कि वे आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अन्य समान संस्थानों में व्यापक सुरक्षा प्रोटोकॉल अनिवार्य करें, ताकि उन्हें किसी भी तरह के खतरे या हिंसा से बचाया जा सके.”

इसमें कहा गया है कि चिकित्सकों पर हमले ने संविधान द्वारा प्रदत्त कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, जैसे कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत किसी भी पेशे को अपनाने या कोई व्यवसाय, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार और अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार.

वकील विशाल तिवारी ने अपनी याचिका में विभिन्न राज्यों में हाल ही में हुए बलात्कार और हत्या के मामलों पर प्रकाश डाला और कहा, “हमने अपने आवेदन में कहा है कि ऐसे मामलों में न्यायिक जांच के माध्यम से जांच की जानी चाहिए.”

बता दें कि मामले को लेकर एक हफ्ते से डॉक्टरों की हड़ताल जारी है. इसके चलते मरीजों को परेशानी हो रही है. प्रदर्शनकारी डॉक्टर चाहते हैं कि सीबीआई दोषियों को पकड़े और अदालत उन्हें अधिकतम सजा दे. साथ ही वे सरकार से यह आश्वासन भी चाहते हैं कि भविष्य में ऐसी कोई घटना न हो.

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