भक्तजन व श्रद्धालु मातारानी दूर्गा, जगदम्बा का नवरात्रि में बड़े ही धूमधाम व श्रद्धा भाव से स्वागत करतें हैं व मां की प्रतिमा की स्थापना करतें हैं, इसके अलावा मां का नो दिन तक उपवास रखतें हैं होता है । हर साल आने वाली नवरात्रि की शुरुआत आज से हो चुकी है। आज यानी 17 अक्टूबर को नवरात्रि का पहला दिन है। ऐसे में आज के दिन माँ शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। वैसे आज नवरात्रि की शुरुआत में हम आपको बताने जा रहे हैं माँ दुर्गा की कथा। आइए जानते हैं कैसे हुई थी उनकी उत्पत्ति।
कथा- असुरों के अत्याचार से परेशान होकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। उसके बाद विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने। कहा जाता है भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊं गलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।
इसके बाद शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। अंत में समुद्र ने बहुत उज्ज्वल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सभी को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। देवी का नाम दुर्गा रखा गया और उन्हें आदि शक्ति कहा गया।
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