साल 2021 में कुंभ मेला उत्तराखंड (Uttrakhand) की देव भूमि हरिद्वार में लग रहा है। 11 मार्च 2021 को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन हरिद्वार कुंभ का पहला शाही स्नान होगा। कुंभ मेला विश्व में सबसे अनोखा और सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होता है, जिसमें देश के कोने-कोने से लोग इसमें शामिल होते हैं और पवित्र गंगा नदी में स्नान कर पुण्य लाभ की प्राप्ति करते हैं। इसमें मेले में भारत के अलावा दुनिया के अन्य देशों से भी लोग अमृत स्नान का लाभ लेते हैं और गंगा (Ganga) मैया की जयकारे के साथ आस्था की डुबकी लगाते हैं। पुराणों में कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख मिलता है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर कुंभ मेला लगता क्यों हैं? जागरण अध्यात्म में आज हम जानते हैं कि कुंभ मेला क्यों लगता है?
ये है कथा:
आप सभी ने समुद्र मंथन की कथा पढ़ी होगी। उस कथा से ही कुंभ का संबंध है। जब महर्षि दुर्वासा के श्राप से इंद्र देव श्रीहीन हो गए, हर ओर असुरों का वर्चस्व बढ़ने लगा और उन्होंने स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया था, तो इससे परेशान होकर इंद्र देव ब्रह्मा जी के पास गए फिर उन्होंने इसके लिए उन्हें भगवान विष्णु के पास भेज दिया, तब भगवान विष्णु ने उनको समुद्र मंथन का सुझाव दिया।
देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन शुरू किया तब उसके परिणामस्वरुप कई रत्नों के साथ अमृत कलश भी निकला। हर कोई उस अमृत को पाकर अमरत्व की प्राप्ति कर लेना चाहता था। इस कारण से उस अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों में 12 दिनों तक युद्ध चला। वे 12 दिन पृथ्वी के 12 वर्षों के बराबर समान होते हैं। इस वजह से कुंभ हर 12 वर्ष पर एक बार एक स्थान पर लगता है। हर 3 वर्ष पर स्थान बदलता है।
अमृत कलश की छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन की पवित्र नदियों में गिर गईं। उस अमृत के प्रभाव और पुण्य की प्राप्ति हेतु इन चारों स्थानों पर क्रमश: हर 12 वर्ष में एक बार कुंभ मेले का आयोजन होने लगा। इन स्थानों पर प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल पर एक बार कुंभ लगता है।
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