नई दिल्ली। साल 2020 ने हमारी जिंदगी को हर तरह से प्रभावित किया है। इस साल अचंभित कर देने वाले बहुत से वाकये हुए हैं। जहां कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से देश कई महीनों तक लॉकडाउन (Lockdown) में रहा। इस साल प्रमुख त्योहारों की बात करें तो उनमें भी वर्षों बाद दुर्लभ संयोग बने, जिन्होंने सबको हैरान कर दिया।
2020 में सामाजिक जीवन के साथ-साथ धार्मिक गतिविधियों में भी अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं। श्राद्ध के अगले दिन आरंभ होने वाले नवरात्र (Navratri) एक महीना आगे खिसक गए। चौमासा पंचमासा में बदल गया तो दिवाली (Diwali) के पंच पर्व 4 दिवसीय हो गए हैं। यहां तक कि शरद् पूर्णिमा का ‘ब्लू मून’ (Blue Moon) भूकंप और सुनामी तक ले आया। अधिकांश त्योहारों को सार्वजनिक तौर पर मनाने के बजाय सीमित स्थानों पर और कम संसधानों के साथ मनाना पड़ा। मास्क (Mask) और सैनिटाइजर (Sanitiser) का उपयोग निरंतर करना पड़ रहा है। करवाचौथ पर चांद की रौनक भी सिमटी सी रही। दिवाली तथा भाई दूज पर पटाखों, मिठाइयों व उपहारों के आदान-प्रदान पर एक अंकुश सा रहेगा। इस वर्ष दिवाली पर गुरु स्वराशि धनु, शनि भी अपनी मकर राशि में तथा शुक्र कन्या में होंगे।
दिवाली पर बना गजब संयोग
दिवाली पर ऐसा दुर्लभ संयोग बन रहा है, जो लगभग 500 साल पहले 1521 में बना था। गुरु तथा शनि की स्थिति, धन संबंधी कार्य , देश की आर्थिक स्थिति में सुधार होने के संकेत मिल रहे हैं।
दिवाली का त्योहार धनतेरस (Dhanteras) से शुरू होता है और भाई दूज के साथ समाप्त होता है। धनतेरस के दिन स्वास्थ्य के देवता भगवान धनवंतरी की जयंती भी मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, धनवंतरी जयंती का त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान धनवंतरी धनतेरस के दिन समुद्र मंथन के दौरान भगवान अमर कलश को अपने हाथों में लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी की पूजा विधि-विधान से की जाती है। इसके साथ ही इस दिन धन की देवी कुबेर, देवी लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करने का भी विधान है।
पंचोत्सव है दिवाली
जिस तरह से नवरात्रि के नौ दिन दुर्गा माता के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है, ठीक उसी भांति दिवाली के अवसर पर पंचोत्सव मनाने की परंपरा है।
विभिन्न पर्वों पर शुभ मुहूर्त
12 नवंबर – गुरुवार- गोवत्स द्वादशी
13 नवंबर – शुक्रवार- धन त्रयोदशी- धनवंतरि जयंती, हनुमान जयंती
14 नवंबर – शनिवार- चर्तुदशी, नरक चौदस, दिवाली
15 नवंबर – रविवार- गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, विश्वकर्मा दिवस
16 नवंबर – सोमवार- यम द्वितीया- भाई दूज
गोवत्स द्वादशी – 12 नवंबर (गुरुवार)
द्वादशी उत्सव के दिन गाय माता एवं उनके बछड़े की पूजा की जाती है। यह त्योहार एकादशी के एक दिन के बाद द्वादशी को तथा धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है। गोवत्स द्वादशी की पूजा गोधूलि बेला में की जाती है, जो लोग गोवत्स द्वादशी का पालन करते हैं, वे दिन में गेहूं और दूध के उत्पादों को खाने से परहेज करते हैं। भारत के कुछ हिस्सों मे इसे बछ बारस का पर्व भी कहते हैं। गुजरात में इसे वाघ बरस भी कहते हैं। गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म में नंदिनी गाय को दिव्य माना गया है।
मंगलकामना पर्व के तौर पर प्रचलित
गोवत्स द्वादशी पूजा महिलाओं द्वारा पुत्र की मंगलकामना के लिए की जाती है। यह पर्व एक वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को तो दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कही गई है। गौमाता के दर्शन से ही बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी ज्यादा लाभ प्राप्त होता है।
माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद इसी दिन गौमाता के दर्शन और पूजन किया था। माना जाता है कि गौमाता को एक ग्रास खिलाने से ही सभी देवी-देवताओं तक यह अपने आप ही पहुंच जाता है। इस दिन महिलाएं अपने बेटे की दीर्घायु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं। इस दिन विशेषकर बाजरे की रोटी बनाई जाती है. साथ ही अंकुरित अनाज की सब्जी भी बनाई जाती है। इस दिन भैंस या बकरी का दूध इस्तेमाल किया जाता है। शास्त्रों में इसका माहात्म्य बताया गया है। इसके अनुसार, बछ बारस के दिन अगर महिलाएं गौमाता की पूजा करती हैं और रोटी समेत हरा चारा खिलाती हैं तो उनके घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।
धनवंतरि जयंती- 13 नवंबर 2020 (शुक्रवार)
पंचांग के अनुसार, धनवंतरि जयंती का त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इसके साथ ही इस दिन धन की देवी कुबेर, देवी लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करने का भी विधान है। समुद्र मंथन के दौरान वे कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन प्रकट हुए थे, इसलिए धनवंतरि जयंती दिवाली से दो दिन पहले मनाई जाती है। आयुर्वेद का जन्म भगवान धनवंतरी के रूप में हुआ था, इसलिए उन्हें आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है। भगवान धनवंतरि की चार भुजाएं हैं, जिसमें वे शंख, चक्र, औषधि और अमृत कलश पहनते हैं। भगवान धनवंतरि को देवताओं का वैद्य या स्वास्थ्य का देवता भी कहा जाता है।
वे पीतल धातु के बहुत शौकीन हैं, इसलिए इस दिन पीतल के बर्तनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन धनवंतरि की पूजा करने से अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है। दरअसल, स्वास्थ्य ही सब कुछ है और इसके बिना धन भी बर्बाद होता है, इसलिए धनतेरस पर भगवान धनवंतरि की पूजा अच्छे स्वास्थ्य और स्वस्थ शरीर के लिए की जाती है। धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
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