नई दिल्ली: इस समय लाउडस्पीकर को लेकर पूरे देश में विवाद चल रहा है. खासतौर से धार्मिक लाउडस्पीकर पर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की बयानबाजियां तेज हो गई हैं. ऐसे में ये जानना अहम है कि लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत को लेकर अदालतों का क्या रुख रहा है. देश के विभिन्न हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ये मसला उठता रहा है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट 2 महत्वपूर्ण आदेश हैं.
18 जुलाई 2005 और 28 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शांति से, बिना ध्वनि प्रदूषण का जीवन आर्टिकल 21 के तहत मिले ‘जीने के अधिकार’ का हिस्सा है. अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर बाकी लोगों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
जुलाई 2005 का SC का फैसला
18 जुलाई 2005 को दिए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर/म्यूजिक सिस्टम/पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. जस्टिस आर सी लोहाटी और जस्टिस अशोक भान ने बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ध्वनि प्रदूषण से आजादी आर्टिकल 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार का ही एक हिस्सा है. यह शोर, शांति से रहने के लोगों के अधिकारों में दखल देता है.
कोई प्रभावी कानून नहीं
लिहाजा लोगों के सोने के वक्त यानी रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच किसी ध्वनि प्रदूषण की इजाजत नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने ये माना था कि ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिए कोई प्रभावी कानून नहीं है. खुद भारतीय समाज भी ध्वनि प्रदूषण के नुकसान को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जो लोग शोर करते हैं, वो अक्सर आर्टिकल 19 1(A) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का हवाला देकर बचने की कोशिश करते हैं ।इसमें कोई दो राय नहीं कि संविधान अपनी बात रखने की आजादी देता है. लेकिन ये समझना होगा कि कोई भी अधिकार अपने आप में पूर्ण नहीं है. लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर कोई भी अपने मूल अधिकार का दावा नहीं कर सकता.
अगर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार हासिल है तो सामने वाले के पास भी उसे सुनने या ना सुनाने का अधिकार हासिल है. किसी को भी कोई बात सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. अगर कोई आर्टिफिशियल डिवाइस के जरिए अपनी आवाज के वॉल्यूम को बढ़ा रहा है तो वह दूसरों को आर्टिकल 21 के तहत मिले, शांतिपूर्ण प्रदूषण रहित जीने के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है.
अक्टूबर 2005 में SC का आदेश
हालांकि उसी साल, अक्टूबर 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने साल में 15 दिन, धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव के दौरान रात 12 बजे तक लाउडस्पीकर की इजाजत दे दी. जस्टिस आर सी लोहाटी, जस्टिस अशोक भान की बेंच ने राज्यों को नियमो में छूट के अधिकार देने वाले कानून की वैधता को बरकरार रखा.
त्योहारों में दी जा सकती है रियायत
दरअसल राज्यों का कहना था कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर पर लगाया गया पूरी तरह बैन उन्हें Noise Pollution Control and Regulation) Rules 2000 में मिले अधिकार को छीन लेता है. जिसके मुताबिक वो उत्सव के दिनों में कुछ रियायत दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि साल में सिर्फ 15 दिन ही, रात 12 बजे तक लाउडस्पीकर की इजाजत राज्य सरकार दे सकती है, पर राज्य सरकार इस छूट का इस्तेमाल मनमाने तरीके से नहीं करेंगे.
राज्य सरकार इस अधिकार का इस्तेमाल, पूरी सावधानी से, सिर्फ जनहित में करेगी. इसके लिए सरकार पहले से ही सार्वजनिक सूचना जारी करेगी कि साल के अमुक दिनों में ये छूट होगी. कोर्ट ने ये साफ किया कि यह छूट साइलेंस जोन के इलाकों यानी स्कूल, हॉस्पिटल में लागू नहीं होगी.
धार्मिक ग्रंथों का भी दिया गया हवाला
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी गई कि जब विभिन्न सभ्यताओं का अभ्युदय हुआ, लोगों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए पवित्र पुस्तक लिखी गई, तब कहीं भी धार्मिक मान्यताओं को फैलाने के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल का कहीं कोई जिक्र नहीं था. लिहाजा किसी धार्मिक गतिविधि को अंजाम देने के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कतई जरूरी नहीं है.
हालांकि कुछ लोग यह दलील देते हैं कि लाउडस्पीकर आधुनिक उपकरण है जिसको, हर एक धर्म अपने अनुयायियों तक शिक्षाओं को पहुंचाने के लिए जरिया बना सकता है. लेकिन ध्यान यह भी रखना जरूरी है कि कोई भी धर्म अपनी धार्मिक मान्यताओं को दूसरों को जबरदस्ती सुनाने के लिए बाध्य नहीं करता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भगवद् गीता में अर्जुन को श्रीकृष्ण के संदेश, कुरान शरीफ की आयतें और बाइबिल की शिक्षाओं का भी हवाला दिया कि जबर्दस्ती धार्मिक शिक्षाएं किसी को सुनाई नहीं जा सकती.
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