नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) अमेरिका(America) रवाना हो गए हैं, जहां वह क्वाड शिखर सम्मेलन (Quad Summit) में हिस्सा लेंगे. इसके बाद 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) को भी संबोधित करेंगे. इस बार के संयुक्त राष्ट्र महासभा के शिखर सम्मेलन को भविष्य के शिखर सम्मेलन की संज्ञा दी गई है. इससे पहले ही भारत को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है कि उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए. फिलहाल अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन, फ्रांस और रूस ही इसके स्थायी सदस्य हैं. आइए जान लेते हैं कि अगर भारत को यूएन की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलती है तो इसे क्या-क्या शक्तियां मिल जाएंगे और इस सदस्यता की राह में कितनी मुश्किलें हैं.
सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य देश दो साल के लिए चुने जाते हैं. इनको चुनने का उद्देश्य सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय संतुलन को कायम करना होता है. इसके लिए सदस्य देशों के बीच चुनाव होता है. इसके जरिए पांच देश एशिया या अफ्रीका से, दो दक्षिण अमेरिका से, एक पूर्वी यूरोप और दो पश्चिमी यूरोप या और क्षेत्रों से चुने जाते हैं. अफ्रीका और एशिया के लिए तय पांच सीटों में से तीन पर अफ्रीकी देश और दो पर एशियाई देश चुने जाते हैं. भारत कई बार इसका अस्थायी सदस्य रह चुका है.
समय के साथ सुरक्षा परिषद के ढांचे में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है, क्योंकि इसका गठन साल 1945 में हुआ था और तब से अब तक भू-राजनीतिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है. फिर इसके स्थायी सदस्य देशों में यूरोप का ज्यादा प्रतिनिधित्व है, जबकि यहां दुनिया के कुल पांच फीसद लोग ही रहते हैं. अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई भी देश स्थायी सदस्य नहीं है. दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के शांति अभियानों में अहम भूमिका निभाता रहा है. इसलिए इसकी स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी बढ़ जाती है.
चूंकि यूएन सुरक्षा परिषद में अमेरिकी वर्चस्व कायम है, इसलिए ये अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति के कारण कई बार संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों की अनदेखी भी कर जाता है. फिर सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए वीटो का अधिकार मिला हुआ है. किसी भी मुद्दे पर भले ही सभी सदस्य एकमत हों पर वीटो वाला सदस्य अकेले ही उस मुद्दे पर होने वाले फैसले पर वीटो लगा देता है तो वह पास नहीं होता.
सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से चीन को छोड़कर अमेरिकी, यूके, फ्रांस और रूस समय-समय पर भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते रहे हैं. यूएन सुरक्षा परिषद में एकमात्र एशियाई स्थायी सदस्य चीन वास्तव में भारत का धुर विरोधी है और वह कतई नहीं चाहता कि भारत उसके बराबर दुनिया के इस सबसे बड़े मंच पर खड़ा हो. भारत को स्थायी सदस्यता मिलता है तो मान्य तौर पर यह क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन के समकक्ष खड़ा हो जाएगा. वैसे भी दुनिया में भारत का बढ़ता प्रभाव देख चीन परेशान रहता है. स्थायी सदस्यता मिलने के साथ ही इसकी शक्तियां और अंतरराष्ट्रीय साख और भी बढ़ जाएगी और यह चीन को गंवारा नहीं है.
कई बार एक बात यह भी उठती है कि यूएन सुरक्षा परिषद में नए स्थायी सदस्यों को बिना वीटो के शामिल किया जाए. इस पर सहमति नहीं बन पाती, क्योंकि यह बिना नख-शिख वाले शेर की भूमिका जैसी होगी. स्थायी सदस्य देश वैसे भी अपने वीटो पावर को छोड़ने पर सहमत नहीं हैं. न ही वे इस अधिकार को किसी और देश को देने पर वास्तव में सहमत हैं. भारत की सदस्यता के लिए यूएन चार्टर में संशोधन करना पड़ेगा. इसके लिए स्थायी सदस्यों के साथ-साथ दो-तिहाई देशों की ओर से पुष्टि करना आवश्यक है. पश्चिमी देशों की एक चिंता यह भी है कि अगर भारत को स्थायी सदस्यता मिल जाती है तो वह शायद अमेरिकी हितों के लिए कदम से कदम न मिलाए. लोगों का मानना है कि भले ही अमेरिका कई मौकों पर भारत के लिए स्थायी सदस्यता की वकालत कर चुका है पर वास्तव में अमेरिकी नीति निर्धारक शायद ही धरातल पर इसे लेकर आएंगे.
सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलने से पूरी दुनिया में मान्य तौर पर भारत की धाक बढ़ेगी और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इसका दबदबा भी बढ़ जाएगा. वैसे भी यूएन सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख निर्णय लेने वाली संस्था है. किसी भी देश पर कोई प्रतिबंध लगाने या अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए इसके समर्थन की जरूरत होती है. ऐसे में भारत को स्थायी सीट मिलती है तो वह वैश्विक मंच पर और भी मतबूती के साथ अपनी बात रख सकेगा. स्थायी सदस्यता के साथ ही भारत के पास वीटो का अधिकार होगा और विश्व मंच पर वह किसी गलत फैसले, खासकर चीन के गलत निर्णय का विरोध कर उसे रोक सकेगा. स्थायी सदस्यता के जरिए भारत में चल रहे दूसरे देशों के प्रायोजित आतंकवाद से निपटने में मदद मिलेगी तो बाहरी सुरक्षा खतरों से भी यह आसानी से निपट सकेगा.
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