नई दिल्ली: दिल्ली (dehli) की 2021-22 की शराब नीति (liquor policy) में कथित घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग (money laundering) मामले में पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (manish isodia) को जमानत (bail) देने से दिल्ली हाई कोर्ट (high court) ने इनकार कर दिया। कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (app) के सीनियर नेता के खिलाफ अपना केस मजबूती से रखने में अभियोजन को सफल और सिसोदिया को असफल माना। कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में सिसोदिया मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम से जुड़े कानून के तहत अपराध के आरोपी हैं। कोर्ट को कथित घोटाले में उनका आचरण लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ नजर आया। हाईकोर्ट को दिल्ली सरकार और आप में आरोपी नेता का प्रभाव दिखा और केस के सबूतों को नष्ट करने की आशंका में बल नजर आया। कोर्ट ने आप नेता की जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें बीमार पत्नी से रोजाना मुलाकात की मिली छूट को कायम रखा।
‘सिसोदिया का व्यवहार लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ बड़ा विश्वासघात’
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा न अपना फैसला मंगलवार को देर शाम साढ़े छह बजे के बाद सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के सेक्शन धारा 3 के तहत प्रथम दृष्टया मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बनाया है। कोर्ट ने कहा कि सिसोदिया का आचरण ‘लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ बड़ा विश्वासघात’ है। कोर्ट ने यह भी पाया कि आरोपी नेता इलेक्ट्रॉनिक सबूत समेत कई अहम साक्ष्यों को नष्ट करने में शामिल थे। सिंगल जज की बेंच ने इस बारे में दो मोबाइल फोन का हवाला दिया जिन्हें नष्ट किए जाने का दावा किया गया था।
‘प्रभावशाली’ सिसोदिया को हाईकोर्ट से जमानत नहीं
हाईकोर्ट ने इस तथ्य को भी तवज्जो दिया कि सिसोदिया दिल्ली सरकार में एक अहम पद पर थे और 18 पोर्टफोलियो (विभागों) संभाल रहे थे। साथ में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता होने के नाते दिल्ली सरकार और पार्टी, दोनों में प्रभाव रखते हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि वह दिल्ली सरकार के सत्ता गलियारे में एक बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति थे। हाई कोर्ट ने माना कि अभियोजन जहां सिसोदिया के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपना केस रखने में सफल रहा, वहीं याचिकाकर्ता जमानत के लिए आधार बनाने में नाकाम हो गया।
कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए बनी थी नीति: HC
हाईकोर्ट की राय में सिसोदिया ने यह दिखाने के लिए भ्रामक तरीकों का इस्तेमाल किया कि दिल्ली की आबकारी नीति को जनता का समर्थन हासिल है, लेकिन हकीकत में नीति कुछ व्यक्तियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई थी। जस्टिस शर्मा ने कहा कि यह भ्रष्टाचार का ही एक रूप है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में सिसोदिया द्वारा सत्ता का बहुत बड़ा दुरुपयोग और जनता के विश्वास का उल्लंघन शामिल है। जजमेंट में कहा गया है कि जांच के दौरान जमा की गई सामग्री से पता चलता है कि प्रथम दृष्टया सिसोदिया ने अपने पहले से तय लक्ष्य के मुताबिक पब्लिक फीडबैक गढ़कर आबकारी नीति बनाने की प्रक्रिया को विकृत कर दिया।
ट्रायल कोर्ट या अभियोजन पक्ष ने कोई देरी नहीं की- कोर्ट
ट्रायल में देरी से जुड़ी आप नेता की दलील को हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में किसी भी देरी के लिए न तो सीबीआई और ईडी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और न ट्रायल कोर्ट को। जस्टिस शर्मा ने माना कि इसमें भी सिसोदिया और अन्य सह आरोपियों की भूमिका है। हाई कोर्ट ने सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेशों को बरकरार रखा। अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा था। हालांकि, उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर सुनवाई धीमी गति से आगे बढ़ी तो सिसोदिया फिर से जमानत के लिए याचिका दायर कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने दूसरी बार यह कोशिश की। सिसोदिया 26 फरवरी, 2023 से हिरासत में हैं।
कोर्ट में मोबाइल फोन नष्ट करने का उठा मुद्दा
कोर्ट ने कहा कि यह भ्रष्टाचार का ही रूप है। दो मोबाइल फोन नष्ट करने का जिक्र कर कोर्ट ने कहा कि वह अहम सबूतों को नष्ट करने में शामिल थे। सिसोदिया को प्रभावशाली बताते हुए कोर्ट ने कहा कि इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता है कि बाहर आकर वह लोगों को बयान बदलने के लिए कह सकते हैं। उधर आम आदमी पार्टी ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने जमानत याचिका खारिज करते हुए क्या कहा:
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि मामला मनीष सिसोदिया की ओर से सत्ता के दुरुपयोग और जनता के विश्वास के उल्लंघन से जुड़ा है, जो डिप्टी सीएम के पद पर कार्यरत थे और उनके पास 18 विभाग थे।
ईडी की पड़ताल से पता चलता है कि उन्होंने जनता की प्रतिक्रिया को गढ़कर आबकारी नीति बनाने की प्रक्रिया को बाधित किया। अग्रिम रिश्वत के लिए कुछ चुनिंदा लोगों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की।
अपने दो मोबाइल फोन पेश करने में विफल रहे, जमानत पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। गवाहों को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिनमें से कई सरकारी कर्मचारी हैं
ट्रायल कोर्ट या अभियोजन पक्ष की ओर से कोई देरी नहीं की गई। ईडी, सीबीआई और ट्रायल कोर्ट की गलती नहीं है कि जांच का बहुत बड़ा रिकॉर्ड है।
आरोपी हजारों दस्तावेजों के भौतिक निरीक्षण पर जोर दे रहे हैं।
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