नई दिल्ली। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की लीडरशिप में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी विदेशी सरकारों और कंपनियों के खिलाफ कूटनीति का बलपूर्वक उपयोग कर रही है। साथ ही वह स्पष्ट करती जा रही है कि उसकी ‘विचारधारा’ और ‘संरचनात्मक प्रणाली’ के जरिए उसका देश पर सख्त नियंत्रण है।
ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा ‘The Chinese communist Party’s Coercive Diplomacy’ पर प्रकाशित रिपोर्ट साफ बताती है कि पिछले 10 वर्षों में सीसीपी ने कूटनीति का बेजा इस्तेमाल किया है। इस रिपोर्ट में 27 देशों के साथ-साथ यूरोपीय संघ को प्रभावित करने वाली जबरन थोपी गई कूटनीति के 152 मामलों को दर्ज किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘ऐसी कूटनीति को गैर-सैन्य तरीके से जबरन की थोपी गई कूटनीति के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है या फिर ऐसे खतरे पैदा करना जिससे किसी लक्षित देश को अपना बिहेवियर बदलने के लिए मजबूर होना पड़े। यह उस चेकबुक कूटनीति के विपरीत है, जिसमें सीसीपी भरोसा पैदा करने के लिए राज्यों को निवेश या विदेशी सहायता के जरिए उपकृत करती है।
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, भारत, यूके और यूएस समेत कई विदेशी सरकारें हैं जो सीसीपी की जबरन थोपे जाने वाली कूटनीति को बाहर करना शुरू कर रही हैं। इस रिपोर्ट में सीसीपी की coercive diplomacy को 8 श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जिसके जरिए वह विभिन्न देशों पर दबाव बनाती है। ये श्रेणियां – मनमाने तरीके से नजरबंदी करना, अधिकारिक यात्राओं पर प्रतिबंध लगाना, निवेश पर प्रतिबंध लगाना, व्यापार पर प्रतिबंध लगाना, पर्यटन पर प्रतिबंध लगाना, लोकप्रिय चीजों का बहिष्कार करने के आंदोलन चलाना, विशेष कंपनियों पर दबाव डालना और राज्य द्वारा खतरे जारी करना हैं।
चीन की इस खतरनाक कूटनीति के सबसे ज्यादा मामले यूरोप, उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पूर्वी एशिया (दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान) में दर्ज हुए हैं। वहीं सबसे कम मामले अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत द्वीप समूह और एशिया के शेष हिस्सों में दर्ज किए गए।
रिपोर्ट में लॉकडाउन प्रतिबंधों के दौरान की भी कूटनीति पर प्रकाश डाला गया, जिसमें चीन ने मनमानी शर्तों पर चिकित्सा उपकरणों का निर्यात किया। इतना ही नहीं कई गरीब और संसाधन की कमी वाले देशों में अपना घटिया माल इस नीयत से दिया कि वे इसकी शिकायत नहीं करेंगे।
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