न्यूयॉर्क: भारत (india) की ओर से लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN security council) में सुधार की मांग की जाती रही है। भारत समेत कई देशों की ओर से ये मामला उठाया गया है कि UNC में एशिया और अफ्रीका (african) का प्रतनिधित्व कम है। ऐसे में इसके स्थायी सदस्यों की संख्या को बढ़ाते हुए भारत को इसमें शामिल किया जाए। यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य (पी-5) जो वीटो कर सकते हैं- अमेरिका, रूस, चीन, यूके और फ्रांस हैं। ये द्वितीय विश्व युद्ध के विजेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। न्यूयॉर्क में हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) से संबंधित चर्चा हुई लेकिन इससे भी बहुत उम्मीदें नहीं लगाई जा रही हैं। आखिर क्यों यूएनएससी में सुधार और इसके सदस्य बढ़ाए जाने की बात अटकती जा रही है।
यूएनएससी में 1960 के दशक में अस्थायी सदस्यता का विस्तार एक महत्वपूर्ण बदलाव था। उसी समय संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद को 18 से बढ़ाकर 27 और बाद में 54 सदस्य कर दिया गया। हाल ही में आईजीएन यूएनएससी सुधार पर एक अधिक अनौपचारिक ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप (ओईडब्ल्यूजी) से विकसित हुआ है। 2015 में विशिष्ट सुझावों के साथ बातचीत की रूपरेखा पर सहमति बनी थी लेकिन इस पर बातचीत शुरू करने के प्रयास तब से रुक गए हैं। आईजीएन बिना किसी समय-सीमा या कार्यवाही के असहाय दिख रहा है।
गुटों में बंटी हुई है बातचीत
इसी साल के शिखर सम्मेलन ने इस प्रक्रिया को कुछ गति दी है लेकिन वास्तव में परिवर्तन की संभावनाएं नगण्य हो गई हैं। एक वजह यह है कि बातचीत गुटों में विभाजित होती है। जी-4 (जिसमें भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील शामिल हैं) ने खुद को स्थायी यूएनएससी सदस्यों (दो अफ्रीकी प्रतिनिधियों के साथ) और अधिक निर्वाचित सदस्यों के रूप में शामिल करने का आह्वान किया है। भारत और अन्य जी-4 देश बिना वीटो के स्थायी सदस्यता स्वीकार करने के इच्छुक हो सकते हैं, जो 15 साल के बाद समीक्षा के अधीन होगा।
एल.69 समूह, जिसमें भारत भी एक भागीदार है, ने स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यता के विस्तार का प्रस्ताव दिया है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्यों ने यूएनएससी की विस्तारित स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन व्यक्त किया है लेकिन यूनाइटेड फॉर कंसेंसस समूह या यूएफसी इसके विरोद में है। इस समूह का नेतृत्व इटली, पाकिस्तान और अर्जेंटीना जैसे देश करते हैं, जो स्थायी सदस्यता के विस्तार का विरोध करते हैं। इसकी वजह भारत, जर्मनी और ब्राजील जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों को रोकना है।
अफ्रीकी ग्रुप के बीच सहमति भी चुनौती
यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्यों में से चार- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस- नए स्थायी और अस्थायी सदस्यों के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गए हैं। जो बाइडन के प्रशासन ने हाल ही में सुधार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर किया है। व्यवहार में पी-5 अक्सर विशिष्ट प्रस्तावों का समर्थन करने में अनिच्छुक ही दिखते हैं। एक और चुनौती अफ्रीकी समूह के बीच इस बात पर आम सहमति की कमी से आती है कि स्थायी यूएनएससी सदस्यता के लिए अपने उम्मीदवारों का निर्धारण कैसे किया जाए। इन सबके बीच सबसे बड़ी बाधा चीन ही बनी हुई है। पी-5 में अकेले चीन ने स्थायी यूएनएससी सीटों के विस्तार के लिए समर्थन नहीं जताया है। देखा जाए तो एशिया के लिए बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण बाधा यूएनएससी में एकमात्र एशियाई स्थायी सदस्य की ओर से ही आ रही है।
ऐसे में सवाल उठता है कि इन सब बाधाओं के बाद भी क्या कोई समझौता संभव है। इसके एक विकल्प में गैर-स्थायी सदस्यों में आनुपातिक वृद्धि के साथ स्थायी सदस्यता को 11 (पी-5, जी-4 और दो अफ्रीकी प्रतिनिधियों) तक विस्तारित करना शामिल हो सकता है। इसमें सख्त वीटो के बजाय एक निश्चित संख्या में स्थायी सदस्यों के वोट ही किसी प्रस्ताव को रोक सकते हैं। इससे यूएनएससी एक साथ अधिक कुशल और अधिक प्रतिनिधिमूलक बन जाएगी। ऐसा फॉर्मूला वीटो को पूरी तरह निरस्त करने या सभी स्थायी सदस्यों के लिए इसके विस्तार की तुलना में पी-5 के लिए अधिक स्वीकार्य साबित हो सकता है।
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