नई दिल्ली: भारत (India) हो या कोई अन्य देश ग्रहण को लेकर सभी देशों (all countries) में उत्सुकता रहती है. कई बड़े-बड़े वैज्ञानिक ग्रहण (scientific eclipse) पर शोध करते हैं. सूर्य और चंद्रमा (Sun and moon) पर लगने वाला ग्रहण को देखने के लिए लोग कई प्रकार के सोलर ग्लासेस सोलर फिल्टर (solar glasses solar filter) का इस्तेमाल करते हैं. दुनिया के ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस खगोलीय घटना (celestial event) को देखने के लिए उत्सुक रहते हैं. वहीं दूसरी तरफ ज्योतिष शास्त्र (Astrology) के अनुसार इसे देखना शुभ नहीं माना जाता. भारत में ग्रहण के दौरान कई ऐसे काम होते हैं जिन्हें करने की मनाही होती है. ज्योतिषी एवं पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से जानेंगे आखिर ग्रहण क्यों लगता है.
हिंदू धर्म (Hindu Religion) में ग्रहण को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं. हिंदू धर्म के वेद पुराण और शास्त्रों के अनुसार सूर्य या चंद्रमा पर लगने वाले ग्रहण का ताल्लुक राहु और केतु ग्रहों से होता है. हालांकि, ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को ग्रह नहीं माना जाता. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी काल में जब देवताओं को अमृत पान और दैत्यों को वारुणी पान कराया गया था, तब इस बात की खबर दैत्य राहु को लग चुकी थी. तब दैत्य राहु ने छुपकर देवताओं की पंक्ति में जाकर अमृत पान कर लिया था और यह सब सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया. तब से ऐसा माना जाता है कि कुछ समय के लिए राहु सूर्य और चंद्रमा को निगल लेता है. इसी को सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण कहा जाता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ग्रहण का लगना एक खगोलीय घटना है. विज्ञान के अनुसार जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है. तब पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण अथवा आंशिक रूप से चंद्रमा द्वारा ढक लिया जाता है. सीधे शब्दों में समझें तो सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तब चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिंब कुछ समय के लिए ढक जाता है इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार 18 वर्ष 18 दिन की समय अवधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चंद्र ग्रहण लगते हैं. खगोल शास्त्रियों के अनुसार 1 साल में पांच सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण तक हो सकते हैं. खगोल शास्त्री मानते हैं कि 1 वर्ष में केवल दो ही सूर्य ग्रहण होने चाहिए, लेकिन यदि किसी वर्ष दो ही ग्रहण हुए तो वे दोनों ही सूर्यग्रहण होंगे, लेकिन वर्ष भर में सात ग्रहण पड़ सकते. मानव इतिहास में साल भर में 4 से अधिक ग्रहण बहुत कम ही देखने को मिले हैं. हर ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन बीत जाने पर पुनः होता है. अधिकांशत देखा गया है कि सूर्य ग्रहण की अपेक्षा वर्ष भर में चंद्रग्रहण अधिक होते हैं. चंद्र ग्रहण के अधिक देखे जाने का कारण पृथ्वी के आधे से अधिक भाग में इसका दिखाई पड़ना होता है. जबकि सूर्य ग्रहण पृथ्वी के बहुत कम भाग में दिखाई पड़ते हैं.
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