– प्रभुनाथ शुक्ल
पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में मुख्यमंत्री यानी ममता दीदी का एक नारा मीडिया में खूब छाया है खेला होबे- खेला होबे। ममता दीदी इस नारे से क्या चुनावी संदेश देना चाहती हैं यह अलग बात है, लेकिन बंगाल के सियासी पर्दे पर जो चित्र उभरकर निकले हैं उसके अनुसार हमें कहना पड़ रहा है कि दीदी बंगाल में खेला ना होबे, अभिनेता नेता होबे। पश्चिम बंगाल में क्या खेला होगा, यह दीगर बात है लेकिन राजनीति ने वहां अभिनेताओं की फौज को नेता बना दिया है। चुनावी मैदान मारने के लिए टीएमसी और भाजपा दोनों में अभिनताओं को लेकर होड़ देखी जा रही है। फिल्मी दुनिया के नामचीन चेहरे मिथुन चक्रवर्ती इसका ताजा उदाहरण हैं। मिथुन के भाजपा में जाने की अटकलें पहले से लगाई जा रही थीं जब संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात मुंबई में हुई थी। हालांकि उन्होंने इसे शिष्टाचार भेंट बताई थी लेकिन यह उसी समय तय माना जा रहा था और यही हुआ भी।
राजनीति में आयातित लोगों की भीड़ बढ़ रही है। दलीय आस्था और जनसेवा का सरोकार दमतोड़ रहा है। राजनीति हवा के रुख पर निर्भर हो गई है। दलों के आम कार्यकर्ता हाशिए पर हैं। जाने-माने चेहरों के आगे उसके त्याग और समर्पण को भुला दिया जाता है। देश में आजकल सभी राजनैतिक दलों में यह नीति आम हो गई है। जिसकी वजह से चुनाव करीब आते ही दल बदलुओं के लिए दरवाजे खुल जाते हैं। पांच सालों तक जिसकी दलीय आस्था नहीं टूटती, उसकी चुनाव करीब आते ही निष्ठा बिखर जाती है। कल तक जिस दल और विचारधारा को लोग गालियां दे रहे थे आज उसी का दुपट्टा गले में डाल आंख मूंदकर गले लगा लेते हैं। ममता दीदी के राज्य बंगाल में यह खेला खूब है।
पश्चिम बंगाल का चुनाव फिल्मी सितारों के लिए कोई नया ठिकाना नहीं है। भारतीय राजनीति में सेलीब्रेटी की अपनी अलग डिमांड रही है। राजनीति भी अभिनेताओं को खूब पसंद करती रही है और राजनेता भी उन्हें गले लगाते रहे हैं। अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता बेहद कम मिलेंगे जिन्होंने एकबार चुनाव जीतने के बाद फिर राजनीति की तरफ मुड़कर नहीं देखा। अब इसके पीछे की उनकी कोई भी मजबूरी रही हो, वह अलग बात है। दक्षिण की राजनीति में बड़े-बड़े सितारों ने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। जिसकी फेहरिस्त बेहद लंबी है। युवाओं में फिल्मी अभिनेताओं की लोकप्रियता सिर चढ़ कर बोलती है। सितारे ही युवाओं के नायक होते हैं। वोटिंग में युवाओं को प्रभावित करने के लिए सितारों का राजनीति में अहम योगदान रहा है। राजनीतिक दल सिर्फ अपनी सीटें निकालने के लिए इस तरह के चेहरों का इस्तेमाल करते हैं। जबकि ऐसे लोगों का राजनीति से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं होता है।
पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा और टीएमसी ने फिल्मी सितारों पर खूब दांव लगाया है। दोनों दलों में एक-एक सीट के लिए जंग छिड़ी है। चुनाव परिणाम क्या होगा यह वक्त बताएगा, लेकिन वोटरों को लुभाने के लिए सितारों के लिए पूरी जमीन तैयार की गई है। वोटरों पर अभिनेताओं के प्रचार का असर भी पड़ता है। क्योंकि जिन्हें वह कभी रुपहले पर्दे पर या सिर्फ टीवी स्क्रीन पर देख पाते थे, चुनावों में उनसे सीधे मुलाकात कर पांएगे। आटोग्राफ ले सकते हैं, करीब से मिलकर अपनी बात रख सकते हैं, क्योंकि चुनाव जीतने के लिए अभिनेताओं को भी सबकुछ करना पड़ता है।
राजनीति अब फिल्मी सितारों की पहली पंसद बन चुकी है। बांग्ला फिल्म स्टार यशदास भाजपा में शामिल होकर काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं। वह टीएमसी सांसद नुसरत जहां के बेहद करीबी माने जाते हैं। भाजपा सांसद मिमी चक्रवर्ती के दोस्त भी हैं। भाजपा ने पायल सरकार को बेहाला पूर्व से जबकि तनुश्री चक्रवर्ती को श्यामपुर और हीरन चटर्जी को खड़गपुर से टिकट दिया है। वहीं बांग्ला फिल्म के स्टार यशदास को चंडीतला से उम्मीदवार बनाया है। जबकि टीएमसी ने कौशानी मुखर्जी को कृष्णानगर, अदिति मुंशी को राजरहाट गोपालपुर, लवली मित्रा को सोनारपुर दक्षिण और बीरबाहा हांसदा को झाड़ग्राम से चुनावी मैदान में उतारा है। माडलिंग से भाजपा में आयी पामेला गोस्वामी ने भाजपा की उस समय किरकिरी कराई जब उन्हें पुलिस ने कोकीन के आरोप में गिरफ्तार किया था। इस पर भी खूब सियासत हुई। कभी टीवी सीरियल महाभारत से अपनी पहचान बनाने वाली रूपा गांगुली आज भाजपा की पश्चिम बंगाल में अहम चेहरा हैं। बंगाल में फिल्मी सितारों की पहली पसंद टीएमसी रही है। लेकिन अब चुनावी जंग अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने भी उसी नीति को अपनाया है।
पश्चिम बंगाल में शोली मित्रा, विभास चक्रवर्ती, गौतम घोष, कवि जाय गोस्वामी, अर्पणा सेन जैसी फिल्मी हस्तियां तृणमूल कांग्रेस से पहले से जुड़ी हैं। पश्चिम बंगाल कभी वामपंथी राजनीति का गढ़ रहा था लेकिन आज वह हाशिए पर है। वाम राजनीति में भी स्टारडम का अपना जलवा रहा है। वैसे भी फिल्मी दुनिया में आज भी वामपंथी विचारधारा से प्रभावित अधिक लोग हैं। फिल्म जगत से अनूप कुमार, अनिल चटर्जी, दिलीप राय, माधवी मुखर्जी जैसे लोग बंगाल में वामपंथ की राजनीति से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा साल 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने नुसरत जहां और भाजपा ने मिमी चक्रवर्ती को चुनावी मैदान में उतार कर सफलता हासिल की। संसद में नुसरत जहां और मिमी चक्रवर्ती की जोड़ी मीडिया की सुर्खियों में रही। फिलहाल पश्चिम बंगाल की राजनीति में किसका किला जमींदोज होगा और ताज किसके सिर बंधेगा यह वक्त बताएगा। लेकिन अभिनेता से नेता बनने का शौक आम राजनीति में अब आम हो गया है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved