उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है
वो शख़्स मोहज़्ज़ब है जिस को ये ज़बाँ आई।
भोपाल में उर्दू की बहुत नामवर और क़ाबिल सहाफी (पत्रकार) गुजऱी हैं। नाम था उनका खालिदा बिलग्रामी। फरवरी 2015 में 71 बरस की उमर में उनका इंतक़ाल हुआ। आइये आज आपको उनकी अज़मत से वाकिफ करवाएं। सोमो-सलात की पाबंद खालिदा की बचपन से ही मज़हब में गहरी दिल्चस्पी के चलते उनके वालिद ने उन्हें देवबंद के मशहूर इदारे में दाखिल करा दिया। वहां से खालिदा बिलग्रामी बाकायदा आलिमा (इस्लाम और उसकी परंपराओं की जानकार) की सनद लेके निकलीं। देवबंद से फ़ारिग़ होने के बाद खालिदा ने सेफिया कॉलिज में दाखिला लिया। सेफिया से मास्टर डिग्री हासिल करी। वो उर्दू अदब की बहुत एक्टिव तालिबे इल्म (छात्रा) रहीं। उर्दू अदब में दिलचस्पी के चलते खालिदा बिलग्रामी ने उर्दू सहाफत में कदम रखने का फैसला करा। उस ज़माने में (सत्तर की दहाई के आखिर और अस्सी की दहाई की शुरुआत) में दैनिक भास्कर के मालिक सेठ द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने हिंदी के साथ ही एक उर्दू अखबार शुरु किया था। आफताब-ए-जदीद नाम का ये अखबार उस वक्त कोतवाली से शाया होता था। उर्दू पे बेहतरीन कमांड के चलते खालिदा बिलग्रामी आफताब-ए जदीद में मुलाजि़म हो गईं। उस वक्त उर्दू सहाफत में कोई महिला पत्रकार नहीं थी। लिहाज़ा कुछ उर्दू सहाफियों ने उनकी राह में रोड़े अटकाए और सेठ द्वारकाप्रसाद अग्रवाल के कान भरे। लेकिन सेठ ने उन्हें अपने अखबार में काम करने का मौका इस शर्त पे दिया के उन्हें इस अखबार में आने के लिए टेस्ट देना होगा। टेस्ट में वो पास हुईं।
बाद में उनकी क़ाबलियत के वो लोग भी नादिम हुए जो उनके मुखालिफ थे। सियासत सहित सभी मज़मूनो पे उनकी उम्दा पकड़ थी। खालिदा आपा को उस अखबार में इश्तियाक आरिफ साब, मेहमुदुल हुसैनी साब और गज़ऩफर अली साब जैसे क़ाबिल एडिटरों और इनाम लोदी साब जैसे रिपोर्टरों का साथ मिला। यहां खालिदा बिया ने लंबे वक्त तक बच्चों और मस्तूरात (महिलाओं) का पेज लंबे वक्त तक देखा। उनकी हिंदी पे भी अच्छी पकड़ थी। लिहाज़ा हिंदी के प्रेस नोट्स का उर्दू तर्जुमा वो बाआसानी कर दिया करतीं। हिंदी लेखों का उर्दू में तर्जुमा करने में भी वो माहिर थीं। मुख्तलिफ मज़ामीन पे उनके आर्टिकल बहुत पढ़े जाते। 1986 में आफताब-ए-जदीद बंद हो गया। लिहाज़ा आपा नदीम में चली गईं। नदीम में उस दौर में क़मर अशफ़ाक साब एडिटर थे। आरिफ़ अज़ीज़ साब भी वहां हुआ करते थे। इस अखबार में भी खालिदा बिलग्रामी ने लपक काम किया और उर्दू सहाफत में काफी नाम कमाया। भोपाल के बुजुर्ग उर्दू सहाफी इनाम लोदी बताते हैं कि खालिदा बिलग्रामी उन्हें अपना बड़ा भाई मानती थीं। खालिदा बिलग्रामी ने नगर निगम भोपाल की उर्दू मैगज़ीन नागरिक में भी अपनी खिदमात अंजाम दी। लोदी साब का दावा है कि खालिदा बिलग्रामी सूबे की पहली महिला उर्दू सहाफी थीं। वो बहुत खुश अख़लाक़ खातून थीं। सभी से अपनाइयत से मिलतीं। अपने चार भाई बहनों में आपा सबसे बड़ी थीं। मां के फ़ौत हो जाने पे उन्होंने अपना फज़ऱ् बखूबी अंजाम दिया। बिलग्रामी फेमिली शाहजहानाबाद के रेजिमेंट रोड पे बड़ी सी हवेली में रहती थी। जो अब बिलग्रामी काम्प्लेक्स के नाम से जानी जाती है। उनकी एक बेटी है जो अपने परिवार के साथ भोपाल में ही रहती हैं। उर्दू सहाफत की उस अज़ीमुश्शान हस्ती को खिराजे अक़ीदत।