इंदौर, संजीव मालवीय। जैसे-जैसे चुनावी गतिविधियां तेज हो रही हैं, दावेदारों ने टिकट के लिए दौड़ लगाना शुरू कर दी है। इंदौर में दो विधानसभा क्षेत्रों में वर्तमान दावेदारों के गणित गड़बड़ा सकते हैं, क्योंकि संघ से आए डॉ. प्रशांत खरे और देवास के नेता जयपालसिंह चावड़ा भी विधायक बनने के सपने संजोए हुए हैं। दोनों ने अपनी इच्छा संगठन के सामने जाहिर कर दी है। दोनों को ही संघ का साथ है और उसी की मदद से वे लॉबिंग कर रहे हैं। अब देखना यह है कि दोनों ही बड़े नेता इंदौर के किस दावेदार का गणित बिगाड़ते हैं?
दोनों ही नेता अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं और दोनों की निगाहें इंदौर जिले की किसी न किसी सीट पर लगी हुई है। वैसे फौरी तौर पर चावड़ा देपालपुर और राऊ से चुनाव लडऩा चाह रहे हैं। वहीं कोरोना काल में संघ से आए डॉ. निशांत खरे भी राऊ सीट से आस लगाए हुए हैं, लेकिन पांच नंबर सीट पर भी वे अपना भाग्य आजमा सकते हैं। फिलहाल तो खरे को आदिवासी क्षेत्र में उन्हें जोडऩे की जवाबदारी दे रखी है। वर्तमान में वे युवा आयोग के अध्यक्ष भी हैं। इसके पहले उन्होंने मंत्री तुलसी सिलावट के साथ मिलकर पानी बचाने का अभियान शुरू किया था, लेकिन वह ठंडा हो गया। दोनों ही नेताओं ने अपने-अपने स्तर पर लॉबिंग शुरू कर दी है और अगर संघ की चली तो दोनों को कहीं न कहीं से विधानसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि दोनों के नामों को लेकर ही अंदर ही अंदर विरोध भी नजर आ रहा है, क्योंकि दोनों ही नेताओं ने इंदौर में ऐसी कोई संगठनात्मक उपलब्धि अर्जित नहीं की है, जिससे उन्हें जमीनी कार्यकर्ता का टिकट काटकर दिया जा सके। फिर भी अगर उन्हें टिकट मिलता है तो किसी न किसी के दिल के अरमानों पर पानी फिरना तय है।
जयपालसिंह चावड़ा-देवास के जयपालसिंह चावड़ा को इंदौर में संभागीय संगठन मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में संगठन की ये व्यवस्था समाप्त हो गई और चावड़ा यहीं बस गए। वे इंदौर की भाजपा की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गए। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उन्हें इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठा दिया। अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने जनता और स्थानीय नेताओं के बीच गहरी पैठ बना ली है, लेकिन संगठन मंत्री की छवि भी उन पर हावी है, इसलिए वे पार्टी में नीचे तक घुल-मिल नहीं पाए है
डॉ. निशांत खरे-पेशे से प्लास्टिक सर्जन डॉ. खरे कोविड के पहले संघ के साथ जुड़े हुए थे। कोविड काल में उन्हें इंदौर की आपदा प्रबंधन समिति में लिया गया, लेकिन वरिष्ठ नेता कृष्णमुरारी मोघे से एक बार उनका किसी बात को लेकर मनमुटाव हो गया और उसके बाद मोघे ने बैठकों से दूरी बना लीं। इसके बाद डॉ. खरे ही इंदौर और प्रदेश में प्रबंधन समिति के सर्वेसर्वा हो गए थे। मंत्री तुलसी सिलावट तथा संगठन के साथ मिलकर कोविडकाल में काम किया और संगठन के नेताओं के नजदीक आ गए। पिछले साल महापौर के उम्मीदवार के लिए उनका नाम लगभग तय था, लेकिन स्थानीय नेताओं के विरोध के चलते पार्टी को पुष्यमित्र भार्गव को चुनाव लड़ाना पड़ा। फिलहाल वे युवा आयोग के अध्यक्ष हैं।
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