भोपाल। नृत्य एक ऐसी सार्वभौम कला है, जो मानव जीवन के साथ ही अस्तित्व में आ गई थी। नृत्यों में मानवीय अभिव्यक्ति का रसमय प्रदर्शन (dazzling display of human expression) भी उदात्त रूप से होता है, इसलिए नृत्य हमें लुभाते भी खूब हैं। नृत्यों की इस खूबी का सजीव साक्षात्कार 48वें खजुराहो नृत्य समारोह (Khajuraho Dance Festival) के तीसरे दिन हुआ। समारोह में मोहिनी अट्टम, भरतनाट्यम से लेकर कथक तक शास्त्रीय नृत्यों की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
खजुराहों नृत्य समारोह में मंगलवार की शाम की पहली प्रस्तुति मोहिनी अट्टम की थी। सुदूर दक्षिण के राज्य केरल का शास्त्रीय नृत्य मोहिनी अट्टम अदभुत नृत्य शैली है। त्रिवेंद्रम्ब की नीना प्रसाद ने बड़े सहज और सधे भावों के साथ इसे प्रस्तुत किया। नीना प्रसाद की दूसरी प्रस्तुति चोलकट की थी। यह गणेश वन्दना के स्वर थे। दक्षिणी राग रीतिगौला और अट्ट ताल में सजी इस रचना पर उन्होंने गणेश वन्दना के अद्भुत भाव प्रकट किए। नीना प्रसाद की अगली प्रस्तुति पदवर्णम में माता गंगा की स्तुति और महिमा को प्रतिपादित करती दिखी। मिस्र चाप, ताल और राग काम्बोजी में सजे गीत-संगीत पर रस और भावों की अभिव्यंजना को उन्होंने अपने पद और अंग संचालन के साथ बखूबी पेश किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने आकाश गंगा, भू-गंगा और पाताल गंगा तीनों को साकार किया। इस प्रस्तुति में गायन पर पंडित माधव नम्बोदरी, वायलिन पर वीएसके अन्नादुरई, मृदंगम पर रामेशबाबू, सितार पर सुमा रानी तथा पढन्त व नटवांग (खंजीरा) पर उन्नीकृष्णन ने साथ दिया।
बैंगलुरू के पार्श्वनाथ उपाध्याय और उनके साथियों, श्रुति गोपाल एवं आदित्य पीवी ने भरतनाट्यम की अद्भुत प्रस्तुति दी। “आभा : ए रीटेलिंग ऑफ द रामायण” नाम की यह प्रस्तुति रामायण की एक छोटी सी कथा है। हिमांशु श्रीवास्तव और रूपा मधुसूदन द्वारा रचित गीत” लोक लक्ष्य लक्ष्मी मैं माया, कौन मुझे त्याग कर पाया ” पर ये प्रस्तुति लोगों के दिलों को छू गई। राग देश, शंकराभरण और काफी के सुरों तथा एकताल और आदि ताल में निबद्ध इस रचना पर तीनों कलाकारों ने अपने नृत्य भावों के साथ अंग और पद संचालन का जो कमाल दिखाया, वह अद्भुत रहा। प्रस्तुति में रोहित भट उप्पूर एवं रघुराम गायन पर थे, जबकि मृदंग पर हर्ष समागम, बाँसुरी पर जयराम किक्केरी, सितार पर सुमारानी ने साथ दिया।
कार्यक्रम का समापन इंदौर की बेटी टीना तांबे के कथक नृत्य से हुई। उनके नृत्य में कथक के तीन घराने लखनऊ, जयपुर और रायगढ़ की खुशबू को महसूस किया जा सकता है। उन्होंने माता भवानी की प्रस्तुति से अपने नृत्य का आगाज़ किया। अगली प्रस्तुति शुद्ध नृत्य की थी। धमार ताल की विविध लयकरियों के साथ उन्होंने बड़े ओजपूर्ण ढंग से ये प्रस्तुति दी। इसमें उपज, उठान, ठाट, आमद, कुछ परनें, परमेलु और तत्कार की ओजपूर्ण प्रस्तुति दी। नृत्य का समापन उन्होंने मीरा के भजन “या मिहान के मैं रूप लुभानी” पर भाव से किया। नृत्य में लखनऊ की नजाकत, जयपुर की तैयारी और पैरों का काम तथा रायगढ़ की उत्कृष्टता का संगम देखा जा सकता है। टीना जी की ये प्रस्तुति खूब सराही गई। आपके साथ तबले पर सत्यप्रकाश मिश्रा, सितार पर अलका गुर्जर, पढन्त पर निशा नायर गायन व हारमोनियम पर वैभव मांकड़ ने साथ दिया।
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