नई दिल्ली। केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि आपराधिक मामलों, खासकर यौन अपराधों (Sexual Crimes) में यह मान लेना कि शिकायतकर्ता का हर बयान सत्य होता है, गलत है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में ऐसे मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने एक महिला कर्मचारी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने के दौरान यह बातें कही हैं।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पुलिस ने आरोपी की उस शिकायत की जांच नहीं की जिसमें उसने कहा था कि नौकरी से निकाले जाने के बाद महिला ने उसे गाली दी और धमकियां दीं
कोर्ट ने कहा, “एक आपराधिक मामले की जांच का मतलब केवल शिकायतकर्ता के पक्ष की जांच नहीं है, बल्कि आरोपी के मामले की भी जांच की जानी चाहिए। केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता महिला है यह मान लेना कि उसका हर बयान सत्य है, यह सही नहीं है। पुलिस केवल उसके बयान के आधार पर कार्रवाई नहीं कर सकती है। आरोपी के मामले को भी गंभीरता से जांचना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि आजकल यह प्रवृत्ति बन गई है कि महिलाओं द्वारा पुरुषों पर यौन उत्पीड़न के आरोप झूठे होते हुए भी उन्हें फंसा लिया जाता है। यदि पुलिस यह पाती है कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप झूठे थे तो वह शिकायतकर्ता के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकती है। ऐसा कानून भी कहता है।
कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाया जाता है तो उसका नाम, समाज में प्रतिष्ठा और स्टेटस को नुकसान हो सकता है। केवल पैसे के मुआवजे से उसे वापस हासिल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को सच की जांच में सतर्क और चौकस रहने की सलाह दी, ताकि अपराध मामलों की जांच के दौरान किसी निर्दोष व्यक्ति को नुकसान न हो।
जमानत का आदेश
कोर्ट ने आरोपी को 50,000 रुपये की जमानत राशि और दो सक्षम जमानतदारों के साथ जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। इसके अलावा आरोपी को जांच में सहयोग करने, गवाहों को प्रभावित या डराने की कोशिश न करने और जब भी जांच अधिकारी बुलाए पेश होने का आदेश भी दिया गया।
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