– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पाकिस्तान में हर साल 5 फरवरी को कश्मीर-दिवस मनाया जाता है। इस साल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और सेनापति कमर जावेद बाजवा ने थोड़े सम्हलकर बयान दिए हैं। भारत के साथ गाली-गुफ्ता नहीं किया है। बाजवा ने कहा है भारत कश्मीर का कोई सम्मानपूर्ण हल निकाले लेकिन इमरान खान ने परंपरा से हटकर कोई बात नहीं की। पुराने प्रधानमंत्रियों की तरह उन्होंने कश्मीर पर संयुक्तराष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करने, जनमत-संग्रह करवाने की बात कही और धारा 370 दुबारा लागू करने का आग्रह किया।
यहाँ इमरान खान से मेरा पहला सवाल यह है कि उन्होंने संयुक्तराष्ट्र संघ का 1948 का कश्मीर-प्रस्ताव पढ़ा भी है या नहीं? जब प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने उनसे मेरी पहली मुलाकात में यही बात इस्लामाबाद में कही थी, तब मैंने उनसे यही सवाल पूछा था। उनका असमंजस देखकर मैंने उस प्रस्ताव का मूलपाठ, जो मैं अपने साथ ले गया था, उन्हें पढ़वा दिया। उसकी पहली धारा कहती है कि जनमत-संग्रह के पहले तथाकथित ‘आज़ाद कश्मीर’ में से प्रत्येक पाकिस्तानी नागरिक को हटाया जाए। क्या इस धारा का आजतक पूरी तरह उल्लंघन नहीं हो रहा है? पाकिस्तानी नागरिक ही नहीं, फौज के हजारों जवान उस ‘आजाद’ कश्मीर को गुलाम बनाए हुए हैं।
1983 में जब इस्लामाबाद के ‘इंस्टीट्यूट आफ स्ट्रेटजिक स्टडीज़’ में मेरा भाषण हुआ तो उसकी अध्यक्षता पाकिस्तान के प्रसिद्ध नेता आगा शाही कर रहे थे। वहाँ भी यही सवाल उठा तो मैंने उनसे उस आजाद कश्मीरी लेखक की ताजा किताब पढ़ने को कहा, जिसके अनुसार ‘पाकिस्तानी कश्मीर’ गर्मियों के दिन में विराट वेश्यालय बन जाता है।
आज असलियत तो यह है कि पाकिस्तान की फौज और नेता कश्मीर को लेकर थक गए हैं। उन्होंने हर पैंतरा आजमा लिया है। युद्ध, आतंक, अंतरराष्ट्रीय दबाव, इस्लाम को खतरे का नारा आदि। अब वे बातचीत का नारा लगा रहे हैं। बातचीत क्यों नहीं हो सकती? जरूर हो। क्या पाकिस्तान अपने कश्मीर को अलग करेगा? कदापि नहीं। कश्मीर के शानदार और खूबसूरत लोग पूर्ण आजादी का आनंद ले सकें, इसके लिए जरूरी है कि पाकिस्तानी फौज़ उसे अपने वर्चस्व का मोहरा बनाना बंद करे। धारा 370 का रोना रोने से अब कोई फायदा नहीं है। भारत और पाक इस कश्मीर की गुत्थी को कैसे सुलझाएं, इसपर विस्तार से फिर कभी!
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
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