नई दिल्ली (New Dehli)। कार्तिक (Karthik)कृष्ण पक्ष अमावस्या(Amavasya) के लगभग एक पक्ष अर्थात दो सप्ताह बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा (Shukla Paksha Purnima)तिथि को देव दिपावली (Diwali)का पावन पर्व मनाया जाता है देव दिपावली का पर्व पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में मनाया जाता है। शास्त्रों की माने तो देव दीपावली के दिन संपूर्ण देवता गण काशी के पवित्र भूमि पर उतरते हैं और दीपावली का पवित्र पर्व मनाते हैं। देवों की इस दीपावली पर वाराणसी के सभी घाटों को मिट्टी के दियों से सजा दिया जाता है। काशी में कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाए जाने की परंपरा अनंत काल से चली आ रही है। देव दीपावली का प्रसिद्ध पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को बड़े ही धूमधाम के साथ विश्व भर में मनाया जाता है। देव दिपावली को देवताओं की दिवाली भी कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मा की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था । इसी कारण से सभी देवी देवता मिलकर खुशियां मनाते हैं तथा धरती पर उतरकर दीपोत्सव करते हैं तभी से यह परंपरा चली आ रही है। गंगा तट पर दीपदान करने के साथ-साथ 6 कृतिकाओं का पूजन भी रात में किया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा महत्व
ऐसी मान्यता है कि 6 कृतिकाओं का पूजन करने से संतान का सुख शीघ्र ही प्राप्त होता है । शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसुइया, तथा क्षमा ये 6 कृतिकाएँ है । इनका पूजन करने से तथा अपने श्रद्धा अनुसार दान करने से सुख संपन्नता सहित सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है क्योंकि भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी कारण से इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । देव दिवाली का पावन पर्व प्रदोष काल व्यापिनी पूर्णिमा तिथि में मनाया जाना श्रेष्ठ दायक होता है।
कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
इस साल पूर्णिमा तिथि का आरंभ 26 नवंबर 2023 दिन रविवार को दिन में 3:15 बजे से आरंभ हो जाएगा जो अगले दिन 27 नवंबर 2023 दिन सोमवार को दिन में 2:17 बजे तक व्याप्त रहेगा । इस प्रकार से पूर्णिमा की रात 26 नवंबर 2023 को ही प्राप्त हो रही है। इस कारण से व्रत अधिक पूर्णिमा का मन 26 नवंबर 2023 दिन रविवार को होगा और पूर्णिमा की रात में देवालयों में दीपदान किये जाने की परंपरा है । इस वर्ष 26 नवंबर 2023 को दिन में 3:15 बजे से लेकर के रात में 2:45 बजे तक स्वर्ग लोक की भद्रा है। देव दिवाली स्वर्ग लोक की दीपावली कही जाती है इस कारण से उदयकालिक तिथि में अर्थात 27 नवंबर 2023 को काशी में देव दीपावली का पावन महोत्सव मनाया जाएगा। स्नान दान की पूर्णिमा भी 27 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी। इस दिन कृतिका नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने के कारण गंगा स्नान किया जाना परम पुण्य दायक माना जाता है सायं काल में भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा अर्चना भी किया जाएगा।
कार्तिक पूर्णिमा राजयोग
इस दिन मंगल अपनी राशि वृश्चिक में सूर्य के साथ विद्यमान होकर भौमादित्य नामक राजयोग तथा सूर्य बुध एक साथ वृश्चिक राशि में विद्यमान होकर बुधादित्य नामक राज योग का निर्माण कर रहे हैं साथ ही साथ रुचक एवं शश नामक पंच महापुरुष योग इस दिन की महत्ता को बढ़ाने वाले हैं।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि
★ऐसी मान्यता है कि इस दिन दीपदान करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
★इस दिन भगवान शिव की कृपा से त्रिपुरासुर का अंत हुआ था तथा देवताओं को स्वर्ग की वापसी हुई थी। इस कारण से इस दिन दीपदान करने से देवी देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
★इस दिन पवित्र सरोवर में, नदी में स्नान करना चाहिए तथा दान पुण्य करते हुए दीपदान किया जाना चाहिए।
★इस दिन प्रात काल में सूर्योदय पूर्व जागकर पवित्र सरोवर में या गंगाजल से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए।
★घर में साफ सफाई के साथ ही गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।
★मंदिर के साफ सफाई करनी चाहिए स्नान आदि से निवृत्त होकर के पूजा स्थल पर बैठकर सभी देवी देवताओं का स्मरण करना चाहिए ।
★उसके बाद विधिवत स्नान आदि कराते हुए सभी देवताओं का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।
★दिनभर भगवान शिव तथा नारायण के नाम का स्मरण करते हुए सायं काल प्रदोष काल में दीपदान करना चाहिए ।
★देवालयों में दीप प्रज्वलित करना चाहिए तथा भगवान शिव के किसी मंत्र का जप करते करना चाहिए। कार्तिक माह में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना विशेष रूप से फल लायक माना जाता है।
इस कारण से भगवान विष्णु की भी पूजा अर्चना किया जाना श्रेष्ठ फल प्रदायक होता है।
कार्तिक पूर्णिमा कथा
कहा जाता है त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने देवताओं , गंधर्वो और मनुष्यों को अत्यधिक प्रताड़ित कर दिया था। ऐसे में त्राहिमाम की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। तब सभी देवता मिलकर भगवान श्री हरि विष्णु के पास गए और त्रिपुरासुर से मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए विनती किए तब भगवान श्री हरि विष्णु ने उनको देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के पास भेजा। जब सभी देवी देवता और गंधर्व भगवान भोलेनाथ के पास पहुंचे तथा अपना वृत्तांत सुनाया तब भगवान शिव सभी देवताओं की बात सुनकर के त्रिपुरासुर का वध करने के लिए आश्वासन देकर कहा कि समय आने पर त्रिपुरासुर का वध करूँगा। समय निकट आया तब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया। जिस तिथि को भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया वह तिथि कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा थी । राक्षस त्रिपुरासुर का वध हो जाने के बाद सभी देवी देवता प्रसन्न हो गए और अपने प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए धरती पर उपस्थित हुए और गंगा घाटों पर दीप प्रज्वलित करके खुशियां मनाएं । जहां पर देवता गंगा के घाट पर उपस्थित हुए थे। वह काशी विश्वनाथ भोले नाथ की नगरी है। इसी पवित्र भूमि पर सभी देवी देवता उपस्थित होकर के कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई ।
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