करतारपुर साहिब । “जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है, शुक्र है हम मिले.” दो चचेरे भाई (cousin Brother), कराची (Karachi) में रहने वाले सिंधी दर्पण लाल खेतपाल और इंदौर में रह रहे सुनील खेतपाल (Sunil Khetpal) की पिछली मुलाकात 25 साल पहले हुई थी. उन्होंने इन शब्दों और अपने भावनात्मक आलिंगन के साथ अपने लंबे अलगाव को खत्म किया जब वे रविवार को करतारपुर साहिब गुरुद्वारे (Kartarpur Sahib Gurdwara) में मिले.
पाकिस्तान के करतारपुर गुरुद्वारे में ऐसी कई कहानियां देखने को मिली. हर उम्र के करीब 100 सिख तीर्थयात्रियों ने गुरुनानक देव के अंतिम विश्राम स्थल के दर्शन के लिए करीब 4.7 किमी लंबे इस वीजा मुक्त कॉरिडोर से सफर किया. कुछ परिवार गुरुद्वारे के प्रांगण में कुछ वक्त के लिए एक साथ हुए, भूली बिसरी यादों को ताजा किया. भारत- पाकिस्तान के बीच एक दोस्ती का सा माहौल बन गया. इस कॉरिडोर को शुरू हुए एक साल बीत गया है.
सुनील अपने परिवार के साथ 1997 में भारत आ गये थे, जबकि उनके चचेरे भाई दर्पण कराची में ही रह रहे हैं. दर्पण ने नम आंखों से बताया कि सुनील के पिता ने ही उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया, लेकिन जब वह गुजरे तो वह उनके अंतिम संस्कार में भारत नहीं आ सके. सुनील का कहना है कि पासपोर्ट पर पाकिस्तान यात्रा की मुहर लगने से पश्चिम देशों में जाने में होने वाली समस्या ने उन्हें पाकिस्तान जाने से रोक दिया है. दोनों भाइयों ने गुरुद्वारा लंगर हॉल में मिलकर भोजन किया. सुनील का कहना था कि हमने गुरुनानक जी के दर्शन किए और मैं अपने भाई से भी मिल पाया, इसके लिए मैं इतनी दूर इंदौर से और भाई कराची से यहां आया था. हमें यहां आने में दो दिन लग गए. सुनील ने कहा कि हम दोनों देश की सरकारों का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं कि उनकी वजह से यह कॉरिडोर बन पाया और वीजा मुक्त यात्रा संभव हुई. जहां सुनील ने अपने 12 साल के भतीजे से पहली बार मुलाकात की, वहीं दर्पण भी पहली बार सुनील की बेटी से मिले. दर्पण ने कहा, “वैसे तो हम वीडियो कॉल पर बात करते रहते हैं लेकिन आमने सामने मिलने का सुख ही अलग है. हमने अपना बचपन साथ गुजारा है. भारत का वीजा मिलना मुश्किल है ऐसे में यही एक तरीका है मुलाकात का.”
पाकिस्तान की यात्रा और मुहर की चिंता
भारत की तरफ से, अमृतसर से करीब 1 घंटे का सफर करके एक इंटीग्रेटेड (एकीकृत) टर्मिनल डेरा बाबा नानक ले जाता है. जहां से पाकिस्तान जाने के लिए भारतीय सुरक्षा और आप्रवासन (immigration) की मंजूरी मिलती है. इसके लिए 14 दिन पहले ऑनलाइन आवेदन करना होता है. अनुमति मिलने से पहले एक पुलिस सत्यापन करवाना होता है. इसके साथ ही कोविड नेगेटिव की रिपोर्ट और कॉरिडोर के जरिए यात्रा के लिए पासपोर्ट की ज़रूरत होती है. इस कॉरिडोर का उद्घाटन नवंबर 2019 में हुआ था. उसके बाद एक साल पहले दोबारा खुलने से पहले यह कोविड के चलते 18 महीने के लिए बंद रहा.
लुधियाना से आए हुए एक उम्रदराज दंपति ने भारत की तरफ से चलायी जा रही एक बैटरी संचालित गाड़ी में बैठते हुए पूछा कि क्या पाकिस्तानी अधिकारी हमारे पासपोर्ट में मुहर भी लगाएंगे. न्यूज 18 ने महसूस किया कि भारतीयों की सबसे बड़ी चिंता पाकिस्तानी मुहर ही है. क्योंकि आमतौर पर अमेरिका या यूरोपीय देशों के वीजा का आवेदन करने दौरान इसे नकारात्मक तौर पर देखा जाता है. इसी से समझ आता है कि करीब 5000 लोग प्रतिदिन की अनुमति होने के बावजूद महज 100 लोग ही क्यों वहां पहुंचे. लेकिन फिर भी भारतीयों की चिंता का आलम यह था कि भारतीय अधिकारी यह बता बता कर थक जाते हैं कि पाकिस्तान की तरफ से कोई मुहर नहीं लगाई जाएगी, यह वीजा मुक्त यात्रा कॉरिडोर है. एक बार जब चलकर पाकिस्तान में प्रवेश करते हैं तो सामने ही बीएसपी चौकी है. वहां एक पाकिस्तानी बस पाकिस्तान की तरफ इमीग्रेशन बिल्डिंग ले जाने के लिए तैयार रहती है. पाकिस्तान के रेंजर यहां पर पहरा दे रहे होते हैं.
इमीग्रेशन बिल्डिंग में उंगलियों के निशान और 20 डॉलर फीस ली जाती है. सबसे हैरान करने वाला होता है पाकिस्तान के अधिकारियों का विनम्र स्वभाव. पाकिस्तानी अधिकारी 20 डॉलर की फीस लेते हुए अक्सर यह पूछते हैं कि आपको पाकिस्तान आकर कैसा लग रहा है? क्या आप यहां पहली बार आए हैं. उम्मीद है आपको हमारा स्वागत का तरीका पसंद आया होगा. अधिकारी यात्रियों से उनके पेशे के बारे में पूछते हैं और फिर एक सीधा सवाल आपके सामने होता है, क्या गुरुद्वारे में आप अपने किसी रिश्तेदार या दोस्त से मिलने वाले हैं. जब आप गुरुद्वारे में जाते हैं तब आपको इस सवाल की अहमियत समझ आती है. क्योंकि दोनों तरफ के परिवारजन मिलने के लिए समय तय करते हैं. ताकि गुरुद्वारे में उनकी मुलाकात हो सके.
भारतीय तीर्थयात्री बहुत उत्साहित नजर आते हैं. सरबजीत सिंह अपने पूरे परिवार जिसमें उनकी बूढ़ी मां भी हैं, सभी को लेकर आये हैं. वह पाकिस्तानी ड्राइवर से पूछते हैं कि क्या वह गुरुद्वारे तक, जिसकी दूरी इमीग्रेशन बिल्डिंग से करीब 4.5 किमी है, गाड़ी चला सकते हैं. पाकिस्तानी ड्राइवर विनम्रता से उनके इस अनुरोध को ठुकरा देते हैं, लेकिन उन्हें ड्राइवर की सीट पर बैठकर फोटो खिंचवाने की इजाजत दे देते हैं. गुरुद्वारा परिसर के रास्ते में दोनों तरफ पाकिस्तानी चौकियां नजर आती हैं और रावी नदी पर बने एक पुल को पार करते हुए परिसर में पहुंचा जाता है. यहां ज्यादातर अधिकारी जिन पर तीर्थस्थल को संभालने की जिम्मेदारी है, वह सभी पाकिस्तानी सिख हैं. पाकिस्तानी अधिकारी यात्रियों को यहां की जानकारी भी देते हैं.
गुरुद्वारा प्रांगण- लंगर और बातें
शफ्फ़ाफ़ सफेद श्रीकरतारपुर साहिब गुरुद्वारे की चमक और उसका प्रांगण देखने लायक है. यह गुरुनानक का अंतिम विश्राम स्थल है और सिखों के लिए सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है. 1947 में हुए विभाजन के बाद से ही भारतीय सिखों का यहां जाने का सपना था. इस विशाल प्रांगण में भारतीयों और पाकिस्तानियों के प्रवेश के लिए अलग-अलग द्वार हैं. लेकिन अंदर जाते ही वह एक दूसरे से मिल सकते हैं. पहचान के लिए भारतीयों को पीला टैग और पाकिस्तानियों को नीला टैग पहनना होता है. कोई भी अपने टैग की अदला बदली नहीं कर सकता है.
भारतीय समयानुसार यहां दोपहर 3.30 बजे तक रुका जा सकता है. इस दौरान परिसर के अलग-अलग हिस्सों में भारतीयों और पाकिस्तानियों के बीच विभिन्न चर्चाओं का दौर चल रही होती हैं. एक जगह कोई भारतीय कह रहा था कि हमें तो इमरान ख़ान पसंद हैं. वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तानी सिद्धू मूसेवाला के गानों के बारे में बात करने से खुद को रोक नहीं पा रहे थे. सिद्धू मूसेवाला पंजाबी गायक थे, जिनकी हाल ही में पंजाब में हत्या कर दी गई थी. इसी तरह एक कोने में एक भारतीय परिवार पाकिस्तान में गुजरांवाला में अपने घर की यादों को साझा करते हुए एक पाकिस्तानी परिवार जोकि गुजरांवाला से है, से पूछ रहा है कि वह शहर अब कितना बदल गया है.
गुरुद्वारे के लंगर वाले हॉल के अंदर पाकिस्तानी सिख महिलाएं खाना तैयार करती हैं जो दोनों देशों के तीर्थयात्रियों को सारा दिन परोसा जाता है. यह एक मनभावन नजारा होता है जब भारतीय और पाकिस्तानी एक दूसरे के बगल में बैठे होते हैं, उनको पाकिस्तान के सिख और मुस्लिमों द्वारा बनाया गया खाना परोसा जाता है. यहां भी चर्चाओं का सिलसिला जारी रहता है. यही नहीं कई पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी एक साथ सेल्फी लेते हुए भी दिख जाते हैं.
फिरोजपुर से आए अमरिंदर सिंह न्यूज 18 को बताते हैं कि मेरे साथ 7 लोगों का जत्था पहली बार यहां आया है. यहां आकर आत्मा तृप्त हो गई है. पाकिस्तानियों ने हमारे साथ इतना अच्छा बर्ताव किया है कि दिल खुश हो गया है. वहीं पाकिस्तान के वकील शाहिद भी भारतीयों के साथ लंबी चर्चा में मग्न हैं. हमारा खान-पान, रहन-सहन एक जैसा है. हम दोनों तरफ की सरकारों से अपील करते हैं कि वह यात्राओं को सहज बनाने के लिए वीजा व्यवस्था में ढील दे. न्यूज 18 की मुलाकात दोस्तों के एक समूह से हुई जो पाकिस्तान के सियालकोट का रहने वाला है, लेकिन अब दुबई में बस चुका है और करतारपुर दर्शन के लिए आया है. सियालकोट के उस्मान हमें अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि यहां पाकिस्तानी तो बहुत आते हैं लेकिन प्रोटोकॉल की वजह से भारतीयों की संख्या कम है. हम सबका स्वागत करते हैं. पाकिस्तानी सिखों को भी वीजा मुक्त व्यवस्था के जरिए भारत में डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा जाने की अनुमति दी जानी चाहिए.
कुछ युवा पाकिस्तानी कहते हैं कि उनकी इच्छा है कि वह भारत आएं और दिल्ली, चंडीगढ़ जैसी जगह घूमें. उनका कहना था कि हमने दुबई में दिल्ली और चंडीगढ़ के बारे में बहुत सुना है. हमने इन शहरों को बस बॉलीवुड फिल्मों में देखा है. अदनान जो दुबई में शांगरीला होटल में शेफ हैं कहते हैं कि दुबई में 7 साल से जो मेरा रूममेट है, वह एक बिहारी है. हम दोनों एक दूसरे के साथ काफी सहज हैं.
सुबह से शाम हुई… अब घर लौटने का वक्त है
जैसे ही घड़ी मे भारतीय समयानुसार 3.30 बजते हैं, भारतीय तीर्थयात्रियों को वापस जाने के लिए कहा जाता है. सभी तीर्थयात्री वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फतेह का जयकारा लगाते हैं और पाकिस्तान से भारत की सीमा तक जाने वाली बस में सवार हो जाते हैं. इस तरह से एक छोटी लेकिन अहम सफर का समापन होता है, आगंतुकों को किसी तरह का जैविक पदार्थ ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती है क्योंकि कुछ लोग वहां से करतारपुर साहब की मिट्टी भारत लाने की कोशिश करते हैं. भारतीय आव्रजन इमारत में कदम रखते हुए बुजुर्ग सतनाम सिंह कहते हैं, “जिंदगी में ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ, मैने कभी नहीं सोचा था कि मैं गुरुनानक के विश्राम स्थल के दर्शन कर पाऊंगा.”
भारत की तरफ लगे हुए बोर्ड में भारतीयों को हिदायत दी जाती है कि करतारपुर जाने के दौरान किसी भी पाकिस्तानी के साथ अपना नंबर या पता साझा नहीं करें. लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग नंबर साझा कर लेते हैं और पाकिस्तानियों का नंबर भी ले लेते हैं. भारतीय और पाकिस्तानी आमतौर पर जल्दी दोस्ती गांठ लेते हैं.
कहने को करतारपुर कॉरfडोर एक धार्मिक स्थल है, लेकिन यहां दोनों देशों के लोगों के बीच रिश्ते बनने में भी मदद मिलती है. कई भारतीय पाकिस्तानी झंडे के सामने खड़े होकर फोटो भी खिंचवाते दिखे. यहां पर मौजूद रेंजर भी उन्हें ऐसा करने देते हैं.
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