नई दिल्ली (New Delhi)। लोकसभा चुनावों (Lok Sabha elections) के लिए भाजपा (BJP) ने मिशन दक्षिण (Mission South) में कर्नाटक (Karnataka) की भूमिका बेहद अहम रहेगी। यहां पर भाजपा न केवल सत्ता में है, बल्कि राज्य की अधिकांश लोकसभा सीटें भी उसके पास हैं। ऐसे में कर्नाटक विधानसभा के लिए अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनाव (assembly elections) में पार्टी पूरी ताकत झोंक रही है। पार्टी के तमाम केंद्रीय नेताओं (central leaders) के दौरे लगातार हो रहे हैं और संगठन स्तर पर बूथ रणनीति को मजबूत किया जा रहा है।
अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनाव विधानसभा से ज्यादा केंद्रीय रणनीति से जुड़े हैं। भाजपा के पास दक्षिण का अकेला एक राज्य कर्नाटक है और लोकसभा में भी उसे यहीं से बड़ी ताकत मिलती है। कर्नाटक में बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी, लेकिन कांग्रेस व जद एस ने मिलकर भाजपा की सरकार की कुछ दिन ही चलने दिया था, बाद में भाजपा ने कांग्रेस में विभाजन के बाद अपनी सरकार बनाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 28 सीटों में से 25 जीती थी।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी इस समय कर्नाटक के दो दिवसीय प्रवास पर है। वह इस दौरान शक्ति केंद्र, बूथ सम्मेलन के साथ विभिन्न मठों का भी दौरा करेंगे। इसके पहले गृह मंत्री अमित शाह ने भी कर्नाटक का दौरा किया था। कर्नाटक की राजनीति में मठों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उनका समर्थन सत्ता के समीकरणों को साधने में बेहद अहम होता है। गौरतलब है कि बीएस येद्दुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भाजपा को राज्य में पार्टी में अंदरूनी खेमेबाजी का सामना करना पड़ रहा है और मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का कामकाज भी इससे प्रभावित होता रहा है।
भाजपा के लिए दक्षिण में कर्नाटक के बाद दूसरे जिस राज्य से उम्मीदें हैं, वह तेलंगाना है। यहां से 17 में से चार भाजपा के सांसद बीते चुनाव में जीते थे। तेलंगाना में भी इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगर कर्नाटक के नतीजे भाजपा की उम्मीद के अनुसार नहीं आते हैं, तो तेलंगाना को लेकर दबाब बढ़ेगा। वहीं, कर्नाटक में उसकी जीत तेलंगाना के लिए उसे लाभ पहुंचा सकती है। भाजपा तेलंगाना को अपनी भावी सत्ता वाले राज्य के रूप में भी देख रही है।
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