शिवमोगा (Shivamogga)। प्रदेश के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा (BS Yeddyurappa) का गढ़ शिवमोगा भाजपा का शक्ति केंद्र (Power center of BJP) माना जाता है। राजनीति के लिहाज से यह जिला सभी दलों के लिए अहम है। कर्नाटक (Karnataka) की राजनीति में भाजपा ने भी यहीं से प्रवेश किया था। जानकारों की माने तो यहां से निकला संदेश पूरे प्रदेश को प्रभावित करता है। पिछले चुनाव में यहां भाजपा ने सात में से छह सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार समीकरण थोड़े उलझे हैं। वहीं, कांग्रेस (Congress) कई लिंगायत नेताओं (Lingayat leaders) को मौका देकर भाजपा और येदियुरप्पा के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश में है।
शिवमोगा में कुल सात सीटें हैं। इनमें शिकारीपुरा से पिछली बार येदियुरप्पा जीते थे तो तीरथाहल्ली गृह मंत्री आरगा ज्ञानेंद्र की सीट है। भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती शिवमोगा सदर सीट है, क्योंकि यहां से विधायक और पूर्व मंत्री केएस ईश्वरप्पा पर 40% कमीशन मांगने का आरोप लगाकर एक ठेकेदार ने आत्महत्या कर ली थी। इस पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
मंगलवार को ईश्वरप्पा ने चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी। ऐसे में अब इस सीट से उनके बेटे सहित कई अन्य दावेदार हो गए हैं। उधर, कांग्रेस की लिंगायतों के शहर में लिंगायत पर ही दांव लगाने की तैयारी में है। इसी तरह से प्रदेश के गृह मंत्री आरगा ज्ञानेंद्र भी तीरथाहल्ली से कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं।
लिंगायत समुदाय की काट लिंगायत से
येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं और यह वर्ग भाजपा का प्रमुख वोटर रहा है। स्थानीय पत्रकार विवेक महाले का मानना है कि दूसरे दल भी अब इसी लिहाज से तैयारी कर रहे हैं। शिवमोगा सदर सीट से चर्चा है कि भाजपा के ही बड़े लिंगायत नेता पर कांग्रेस डोरे डाल रही है। येदियुरप्पा की सीट शिकारीपुरा में भी कुछ ऐसा ही समीकरण है। कांग्रेस लिगायतों में उप जाति के सहारे कुछ वोट अपने हिस्से में करने की कोशिश में लगी है।
येदियुरप्पा की तरह आसान नहीं बेटे की राह
येदियुरप्पा के बड़े बेटे के राघवेंद्र शिवमोगा के सांसद हैं तो दूसरे बेटे के विजयेंद्र के शिकारीपुरा से चुनाव लड़ेंगे। दरअसल, कांग्रेस के पूर्व सीएम सिद्धारमैया की सीट वरूणा से भी के विजयेंद्र के चुनाव लड़ने की चर्चा रही, लेकिन मंगलवार को जारी सूची में उन्हें पिता येदियुरप्पा की परंपरागत सीट शिकारीपुरा से टिकट दिया गया।
यह सीट येदियुरप्पा के लिए तो सुरक्षित रही है, लेकिन बेटे के लिए आसान नहीं होगी। कांग्रेस यहां भी साधु लिंगायत कार्ड तो खेलने के मूड में है। आरक्षण के कारण बंजारा समुदाय पहले ही नाराज है।
पीएम मोदी के नाम का भी सहारा
भाजपा को अपना गढ़ बचाने के लिए परंपरागत लिंगायत वोट के अलावा मोदी के नाम का भी सहारा है। शहर के जयनगर में कार में बैठे वीरूपक्ष कहते हैं कि लिंगायतों का वोट भाजपा को ही मिलता है। इसी तरह जनरल स्टोर की मालकिन बिंदु कहती हैं कि मोदी का नाम किसी भी स्थानीय भाजपा नेता से आगे है। वह कहती हैं कि स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार है लेकिन मोदी पर सबको भरोसा है। किसान बल्लेश कुमार का कहना है कि सरकार ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया है। वह प्रदेश सरकार से तो नाराज हैं लेकिन कहते हैं कि केंद्र सरकार ने अच्छा किया है।
पूर्व सीएम बंगारप्पा के बेटे कुमार व मधु आमने-सामने
पूर्व सीएम एस बंगारप्पा की परंपरागत सीट सोराब से उनके दोनों बेटे पिछले कई चुनावों से एक-दूसरे के खिलाफ लड़कर जीतते-हारते रहे हैं। उनके एक बेटे कुमार बंगारप्पा कांग्रेस से भाजपा में आए और अभी यहां से विधायक हैं। दूसरे बेटे मधु बंगारप्पा जेडीएस से कांग्रेस में आकर ताल ठोंक रहे हैं। माना जा रहा है कि इस बार फिर दोनों आमने-सामने होंगे।
दोनों ही दलों में जबरदस्त भितरघात भी
खास बात यह है कि दोनों ही दलों में गुटबाजी के कारण चुनाव नतीजे प्रभावित हो चुके हैं। सदर सीट से पूर्व मंत्री ईश्वरप्पा के खिलाफ भी मोर्चा खोला जा चुका है। ऐसे में उनके चुनाव से हटने की घोषणा के बाद देखना होगा कि भाजपा किस पर दांव लगाएगी। एक स्थानीय बड़े नेता दोनों ही पार्टियों के टिकट के दावेदार बताए जा रहे हैं। उनके कांग्रेस में आने की चर्चाओं के बीच कांग्रेस के 11 अन्य दावेदारों ने अलग मोर्चा बना लिया है।
सोराब से भाजपा के कुमार बंगारप्पा के खिलाफ भाजपा के ही लोगों ने नमो वेदिका नाम का संगठन बनाकर विरोध में बाइक रैली निकाली है। सागर से एच हलप्पा पूर्व मंत्री हैं और भाजपा के दिग्गज नेता हैं लेकिन उनके खिलाफ भी पार्टी के कार्यकर्ता बैठकें कर चुके हैं। कहा यह भी जा रहा है कि टिकटों के वितरण के बाद सभी दलों में भगदड़ होने की संभावना है और कई सीटों पर मजबूत निर्दलीय भी आ सकते हैं। इस कारण भाजपा के इस मजबूत गढ़ में सियासत में कई पेंच आ गए हैं।
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