बंगलूरू (Bangalore)। कर्नाटक (Karnataka) में मई, 2023 में संपन्न विधानसभा चुनाव (assembly elections) में भारी जीत हासिल कर कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई थी। 224 सदस्यीय विधानसभा में उसे 135 सीटें मिलीं और भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) सत्ता से बाहर हो गई। इससे राष्ट्रीय स्तर (national level) पर मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) को काफी मजबूती मिली। मगर, अब उनके सामने 2019 के लोकसभा चुनाव के दु:स्वप्न को पीछे छोड़कर नई कहानी लिखने की चुनौती है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यदि कांग्रेस खरगे के गृह राज्य में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो इससे न केवल पार्टी में बल्कि विपक्षी गठबंधन में उनका प्रभाव बढ़ेगा, गठबंधन में पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी। खरगे ने इस बार, कांग्रेस अध्यक्ष के नाते और विपक्षी गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ समन्वय की जिम्मेदारियों के चलते चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। पार्टी ने उनके दामाद राधाकृष्ण डोड्डामणि को गुलबर्गा से उम्मीदवार बनाया है। पार्टी के एक नेता ने हलांकि दावा किया कि अगर खरगे खुद अपने गृह क्षेत्र गुलबर्गा से लड़ते, तो पार्टी को निश्चित रूप से अच्छा मत प्रतिशत हासिल करने में मदद मिलती।
2019 की हार से उबरने की चुनौती
मल्लिकार्जुन खरगे 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में गुलबर्गा संसदीय सीट से जीत गए थे। हालांकि 2019 के चुनाव में वह जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। तब भाजपा के डॉ. उमेश जी जाधव 6.20 लाख वोट लेकर जीते थे। खरगे को 5.24 लाख वोट मिले थे।
खरगे के भावनात्मक आह्वान ने थामी गुटबाजी
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने मतदाताओं से भावनात्मक अपील की थी। उन्होंने लोगों से आह्वान किया था कि कर्नाटक के भूमिपुत्र के रूप में उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर लोगों को गर्व होना चाहिए। उस समय खरगे को पार्टी के भीतर गुटबाजी को थामने का श्रेय दिया गया था। दरअसल, तब पार्टी में सीएम सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के गुट आमने-सामने थे। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष खरगे कर्नाटक से कांग्रेस के दूसरे अध्यक्ष हैं। इससे पहले पार्टी प्रमुख एस निजालिंगप्पा भी इसी राज्य से थे। खरगे पार्टी अध्यक्ष के रूप में जगजीवन राम के बाद दलित समुदाय के दूसरे नेता हैं।
दलित-वंचितों को साधेंगे
मतदाताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस मुख्य रूप से पांच गारंटी लागू करने की बात कर रही है। इसके अलावा जनाधार बढ़ाने, खासतौर पर दलितों तथा वंचित वर्गों से संपर्क साधने के लिए खरगे फैक्टर को भुनाने का प्रयास करेगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, कांग्रेस को राज्य में सत्तारूढ़ दल होने का फायदा मिलेगा। वह राज्य सरकार के कार्यों को लेकर जनता के सामने जाएगी। सूत्रों के अनुसार खरगे इस बार विस चुनाव की तरह प्रचार नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें देशभर में पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करना होगा और लंबी यात्राएं करनी होंगी।
2019 के नतीजे
पार्टी सीट
भाजपा 25
कांग्रेस 1
जदएस 1
निर्दलीय 1
जातिगत अनुपात
19.5% अनुसूचित
7 फीसदी एसटी
16 फीसदी ओबीसी
14 फीसदी मुस्लिम
14 फीसदी लिंगायत
11 फीसदी वोक्कालिगा
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