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    ‘भगत सिंह की किताब रखना गैरकानूनी नहीं’, नक्सलवाद के आरोप में नौ साल बाद बरी हुए पिता-पुत्र

  • October 23, 2021

    बेंगलुरु। कर्नाटक (Karnataka) के दक्षिण कन्नड़ जिले (Dakshina Kannada District) से साल 2012 में नक्सलियों (Naxals) की मदद के आरोप में गिरफ्तार हुए आदिवासी पिता-पुत्र को जिला न्यायालय ने बरी कर दिया है। मामले में पुलिस यह साबित नहीं कर सकी कि दोनों के तार नक्सलियों से जुड़े हुए हैं, जिसके चलते कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। हालांकि, मामले में पिता-पुत्र को साल 2012 में तकनीकि जमानत मिल गई थी. उस दौरान पुलिस न्यायिक हिरासत के 90 दिन पूरे होने के बाद भी चार्जशीट दाखिल करने में असफल रही थी।

    एक रिपोर्ट के अनुसार, 23 वर्षीय विट्ठल मालेकुडिया (Vittala Malekudiya) (अब 32 वर्षीय) और उनके पिता लिंगप्पा मालेकुडिया (Lingappa Malekudiya) को 9 साल पहले 3 मार्च 2012 को कर्नाटक पुलिस की नक्सल विरोधी इकाई ने गिरफ्तार किया था। कोर्ट ने पाया कि उनके कब्जे से मिली ज्यादातर सामग्री लेख थी, जो ‘प्रतिदिन की आजीविका के लिए आवश्यक थी।’ गिरफ्तारी के वक्त विट्ठल पत्रकारिता के छात्र थे। अब वे पत्रकार हैं और कन्नड़ भाषा के एक प्रमुख दैनिक अखबार के साथ काम कर रहे हैं।


    विट्ठल के हॉस्टल के रूप से भगत सिंह के ऊपर लिखी गई किताब, अपने क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलने तक संसदीय चुनावों के बहिष्कार की मांग करता पत्र और अखबार की कुछ खबरें मिली थी. कोर्ट ने कहा, ‘कानून के तहत भगत सिंह की किताबें रखने पर रोक नहीं है… ऐसे अखबार पढ़ना कानून के तहत प्रतिबंधित नहीं है।’

    पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी को ‘खबर’ मिली थी कि पिता-पुत्र की जोड़ी उन पांच नक्सलियों का सहयोग कर रही है, जिनके लिए वे इलाके में तलाशी अभियान चला रहे हैं। पिता-पुत्र पर IPC के तहत आपराधिक साजिश और राजद्रोह और UAPA के तहत आतंकवाद के आरोप लगे। इन पांच कथित नक्सलियों में विक्रम गौड़ा, प्रदीपा, जॉन, प्रभा और सुंदरी का नाम शामिल है। इन पांचों का नाम भी FIR में शामिल था, लेकिन इन्हें कभी गिरफ्तार नहीं किया गया।

    मामले में बरी होने के बाद विट्ठल कहते हैं, ‘मैं केस में बरी होने को लेकर बहुत खुश हूं. हमने बरी होने के लिए 9 साल संघर्ष किया और बड़ी लड़ाई लड़ी है. हमें नक्सल चरमपंथी के तौर पर दिखाया गया, लेकिन इन आरोपों को दिखाने के लिए चार्जशीट में कोई पॉइंट्स नहीं थे. हमारी बेगुनाही साबित हो गई है.’ विट्ठल ने बताया कि वे हर सुनवाई में उपस्थित रहे थे।

    गिरफ्तारी के वक्त विट्ठल मंगलौर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के मास्टर्स कोर्स के दूसरे सेमेस्टर में थे. वे मार्च से लेकर जून तक जेल में रहे और 2012 मे उन्हें परीक्षाओं के लिए अनुमति हासिल करने के लिए अदालतों का चक्कर लगाना पड़ता था. वे कहते हैं, ‘मुझे परीक्षा में हथकड़ियों के साथ ले जाया गया था और उस समय इसके चलते काफी विवाद खड़ा हुआ था.’ विट्ठल की पढ़ाई 2016 में पूरी हो गई थी।

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