नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कर्नाटक राज्य सरकार ने कहा कि केवल धर्म के आधार पर आरक्षण (Reservation) असंवैधानिक है, क्योंकि यह न केवल भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के आदेशों का उल्लंघन करता है, बल्कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ भी है।
बता दें कि कर्नाटक में मुस्लिमों को मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को हटाने पर सुप्रीम कोर्ट में लंबी बहस चल रही है। इस पर अदालत ने कर्नाटक सरकार से जवाब मांगा था, जिस पर उसने एफिडेविट दाखिल किया है। राज्य सरकार ने अदालत से कहा कि मुस्लिमों को धर्म के आधार पर जो आरक्षण दिया गया था, वह असंवैधानिक है, क्योंकि उसका प्रावधान ही नहीं है। सरकार ने कहा कि यह संविधान के आर्टिकल 14,15 और 16 का सीधे तौर पर उल्लंघन है। यही नहीं सरकार ने तीन दशक पुराने इस आरक्षण को हटाने सामाजिक न्याय की अवधारणा और सेकुलरिज्म के भी खिलाफ बताया।
कर्नाटक सरकार ने अदालत में उस अर्जी पर भी सवाल उठाया, जिसमें उसके फैसले को चुनौती दी गई है। राज्य सरकार ने कहा कि इस अर्जी को तो पहले कर्नाटक हाई कोर्ट में ही दाखिल किया जा सकता था। फिर सीधे सुप्रीम कोर्ट का ही रुख क्यों किया गया।
अर्जी के जवाब में कर्नाटक सरकार ने कहा कि संविधान के मुताबिक आरक्षण का उद्देश्य यह है कि उन लोगों के लिए कुछ कदम उठाए जाएं, जो समाज में ऐतिहासिक रूप से पिछड़े रहे हैं और भेदभाव के शिकार रहे हैं। इसका जिक्र संविधान में आर्टिकल 14 से 16 तक किया गया है। बैकवर्ड क्लास में कुछ जातियों की बात कही गई है। पूरी बात यह है कि यह पिछड़ेपन की बात समाज के एक वर्ग के तौर पर कही गई है ना कि किसी मजहब को लेकर ऐसा विचार है।’
विदित हो कि भाजपा सरकार ने ओबीसी कोटे के तहत मुस्लिमों को मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को समाप्त कर दिया है। सरकार का कहना है कि इस कोटे को लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के लोगों को दिया जाएगा। कर्नाटक सरकार का कहना है मुस्लिमों को ओबीसी की बजाय ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आरक्षण दिया जाएगा, हालांकि यह आरक्षण उन्हें ही दिया जाएगा, जो आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग में आते हों।
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