खंडवा (Khandva) । मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में खंडवा के एक केटरिंग कॉन्ट्रैक्टर (Catering Contractor) से रेलवे (railway) ने लाइसेंस फ़ीस (license fee) के अलावा 36 लाख 64 हजार 128 रुपये किराये के नाम अनुचित रूप से वसूले लिए थे. इस मामले को लाइसेंसी ने जिला कोर्ट में चुनौती दी. जिस पर अदालत ने रेलवे की इस वसूली की अनुचित और अवैधानिक बताया.
इस फैसले के आधार पर लाइसेंसी ने दोबारा इस राशि की वापसी की मांग की तो कोर्ट ने उसके पक्ष में आदेश भी जारी कर दिया. आवेदक की ओर से जब धनराशि की वसूली के लिए कर्नाटक एक्सप्रेस के इंजन की कुर्की की मांग की गई तो रेलवे के अफसरों में घबराहट मची और तत्काल उन्होंने इस धनराशि का डिमाण्ड ड्राफ्ट न्यायालय के समक्ष केटरिंग कॉन्ट्रैक्टर राजीव सेठी को सौंप दिया.
खंडवा की प्रधान जिला न्यायाधीश ममता जैन ने हाल ही में सेन्ट्रल रेलवे के जनरल मैनेजर को एक प्रकरण में केटरिंग कॉन्ट्रैक्टर से अवैध रूप से जमा कराई गई राशि 36 लाख 64 हज़ार 128 रुपए लौटाने के आदेश जारी किए थे. राशि न जमा करा पाने की स्थिति में कुर्की वारंट भी जारी किया गया.
आनन-फानन में लौटाए रुपए
इस पर आवेदक ने न्यायालय से कर्नाटक एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12628 ) के इंजन सहित स्टेशन मास्टर के कमरे के फर्नीचर, एयरकंडीशनर आदि की कुर्की का आवेदन किया. जब इस तरह की कुर्की के वारंट की जानकारी रेलवे के उच्चाधिकारियों को लगी तो हड़कंप मच गया. ताबड़तोड़ रेलवे प्रशासन ने इतनी धनराशि का ड्राफ्ट न्यायालय के समक्ष आवेदक को सौंपकर मामले का पटाक्षेप किया.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, पूरा मामला इस प्रकार है कि खंडवा रेलवे स्टेशन के केटरिंग कॉन्ट्रैक्टर मेसर्स के कपूर एन्ड पी आर महंत से रेलवे ने साल 2017 में अचानक लाइसेंस फ़ीस के अलावा 36 लाख 64 हज़ार 128 रुपए की मांग कर डाली और इसे जमा न करने की स्थिति में उनका कारोबार बंद करने का भी निर्देश दिया.
उस समय केटरिंग कॉन्ट्रैक्टर राजीव सेठी ने अंडर प्रोटेस्ट यह राशि तो रेलवे को जमा करवा दी लेकिन इसे अवैध रूप से आरोपित कहते हुए जिला नयायालय में चुनौती दे डाली. 25 मार्च 2022 को तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजीव कालगांवकर ने अपना अंतिम फैसला दिया कि लाइसेंस फीस के अलावा मांगे गए किराए की मांग अयुक्तियुक्त, मनमाना व अवैधानिक है.
राजीव सेठी ने बताया कि वे रेलवे की निर्धारित लाइसेंस फ़ीस नियमित भरते आ रहे थे. विवाद की स्थिति तब बनी जब रेलवे प्रशासन ने साल 2017 में पहली बार भट्टी रूम (किचन ) और स्टोर रूम के लिए किराये के नाम पर 4 लाख 58 हज़ार 16 रुपए प्रतिवर्ष की दर से 27 लाख 48 हजार 96 रुपए आरोपित किए गए, जो बाद में बढ़कर 36 लाख 64 हज़ार 128 रुपए हो गए.
रेलवे प्रशासन ने यह आदेश 2017 में जारी किया लेकिन किराये की राशि का निर्धारण वर्ष 2010 से किया गया. राजीव सेठी के अधिवक्ता एव्ही चौधरी ने न्यायालय को यह बताया कि जिस किचन और स्टोर रूम का रेलवे ने साल 2010 से किराया आरोपित किया है, वह 1956 से ही वादी को रेलवे की ओर से उपयोग के लिए दिया गया है, जिसका अलग से कभी कोई किराया नहीं मांगा गया. उन्होंने रेलवे बोर्ड के 3 जनवरी 1987 के आदेश का हवाला भी दिया जिसमे स्पष्ट किया गया कि उक्त किराया लाइसेंस फ़ीस में समाहित है.
जब जिला न्यायालय ने रेलवे की उस धनराशि की मांग को ही अनुचित घोषित कर दिया तब इस राशि की वापसी के लिए आवदेक राजीव सेठी ने पुनः इसी न्यायालय में आवेदन किया. मौजूदा प्रधान जिला न्यायाधीश ममता जैन ने यह आदेश जारी किए हैं.
इस घटनाक्रम के बाद रेलवे प्रशासन की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है. चूंकि रेलवे ने अपने ही लायसेंसी से इस धनराशि की वसूली के लिए पुलिस बल का भी जिस तरह प्रयोग कर दबाव बनाया था, उस पर भी सवाल उठे थे और अब न्यायालय ने भी उसे अनुचित करार दे ही दिया है.
रेलवे ने न्यायालय के आदेश के बाद भी राशि लौटाने में बहुत हीला -हवाला किया, तब न्यायालय को सख्त रुख अपनाते हुए 27 फरवरी को कुर्की के आदेश जारी किए और 29 फरवरी को रेलवे ने आवदेक राजीव सेठी को डिमांड ड्राफ्ट न्यायालय के समक्ष सौंपकर अपनी इज्ज़त बचाई.
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