नई दिल्ली (New Delhi)। कर्नाटक विधानसभा चुनाव (karnataka assembly election) के लिए भाजपा (BJP) ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। इसमें कुछ नए चेहरों को मौका दिया गया तो वहीं कुछ नेताओं का टिकट भी काटा गया है। इसमें से प्रमुख रूप से कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार (Jagadish Shettar) को बीजेपी ने चुनाव नहीं लड़ने को कहा है, जबकि शेट्टार ने कहा है कि वह हर हाल में चुनाव लड़ेंगे।
जानकारी के लिए बता दें कि ग दिवस शाम एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में शेट्टार ने कहा कि पार्टी हाईकमान ने उन्हें आखिरी समय में आकर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने को कहा है, लेकिन वह नहीं मानेंगे और अपनी बात पार्टी आलाकमान तक पहुंचाएंगे। शेट्टार ने बगावत के संकेत दिए हैं और कहा है कि टिकट मिले या न मिले, चुनाव हर हाल में लड़ेंगे।
1955 में जन्में शेट्टार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सक्रिय भूमिका भी निभा चुके हैं। वह कर्नाटक विधानसभा में नेता विपक्ष और कई सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं। 2005 में कर्नाटक बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 2008 में वह विधानसभा के निर्विरोध स्पीकर भी चुने जा चुके हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बाद जगदीश शेट्टार लिंगायत समुदाय के दूसरे सबसे बड़े नेता माने जाते हैं। येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाने के बाद शेट्टार का भी टिकट काटने से लिंगायत समुदाय बीजेपी से नाराज हो सकता है। यह समुदाय पहले भी बीजेपी के खिलाफ अपनी नाराजगी जता चुका है।
राज्य में लिंगायतों का वोट परसेंट करीब 17 फीसदी है। इनकी राजनीतिक अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि अब तक कुल आठ मुख्यमंत्री इसी समुदाय से हुए हैं। राज्य के करीब 110 सीटों पर लिंगायत समुदाय हार-जीत तय करता है। इसे राज्य की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक के अलावा पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी इस समुदाय की अच्छी आबादी है।
बता दें कि लिंगायत समुदाय खुद के लिए अलग धर्म की मांग करता रहा है। कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम सिद्धारमैया वादा भी कर चुके हैं कि उनकी सरकार बनी तो वो लिंगायतों के लिए अलग धर्म का दर्जा देंगे। ऐसे में बीजेपी को लिंगायत समुदाय की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। शेट्टार के बागी होने से उनके कुछ समर्थक विधायक और अन्य नेता भी बीजेपी से नाराज हो सकते हैं। इसी साल फरवरी में हुए हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को बागियों की वजह से करारी हार का सामना करना पड़ा था। विधानसभा की 60 में से 21 सीटों पर बीजेपी के बागियों ने चुनाव लड़ा था। इनमें से 9 सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था।
विदित हो कि हिमाचल प्रदेश में टिकट नहीं मिलने पर बीजेपी के कई नेता बागी हो गए थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के कहने पर भी बागी नहीं माने और चुनाव मैदान में डटे रहे। पीएम ने बागी नेता कृपाल परमार को फोन कर चुनाव नहीं लड़ने को कहा था लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था। इससे बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ गई। हालांकि, पहाड़ी राज्य में हर पांच साल में सत्ता बदलने की रवायत रही है।
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