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हिंदू विवाह की वैधता के लिए कन्यादान की रस्म जरूरी नहीं, जानें हाई कोर्ट ने क्यों कही ये बड़ी बात

April 06, 2024

इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने एक मामले में फैसला लेते हुए कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अनुसार हिंदू विवाह (Hindu marriage) में कन्यादान (Kanyadaan) की रस्म (ritual) निभाना आवश्यक नहीं है. एक्ट के अनुसार यदि शादी में कन्यादान की रस्म नहीं निभाई जाती तो वह शादी अधूरी नहीं मानी जाएगी.

जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने 22 मार्च को एक मामले में फैसला सुनाते हुए हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 7 का हवाला दिया और कहा कि हिंदू विवाह में कन्यादान करना एक आवश्यक रस्म नहीं है. कोर्ट ने कहा कि यदि कोई युवक और युवती हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 7 के तहत बताई गई बातों को मानकर उसके अनुसार विवाह करते हैं तो उनकी शादी वैध होगी, भले ही उसमें कन्यादान की रस्म न निभाई गई हो.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में यह फैसला रिव्यू पिटीशन में सुनाया, जहां याचिकाकर्ता कन्यादान को हिंदू विवाह का जरूरी हिस्सा मानकर इसके लिए कोर्ट में गवाह पेश करने की बात कही. याचिकाकर्ता ने कहा कि विवाह में कन्यादान की रस्म पूरी की गई थी या नहीं इसकी जांच के लिए गवाह पेश किए जाने चाहिए, जिस पर कोर्ट ने साफ किया कि हिंदू विवाह में कन्यादान की रस्म समापन के लिए जरूरी नहीं है. कोर्ट ने कहा कि कन्यादान हुआ है या नहीं हुआ है यह किसी भी मामले के निर्णय को प्रभावित नहीं करेगा.


हाईकोर्ट ने क्यों कहा ऐसा?
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 7 के अनुसार किसी भी हिंदू विवाह को वैध होने के लिए, सप्तपदी के अनुसार विवाह करना आवश्यक है. हिंदू विवाह में विवाह के दौरान जैसे ही सप्तपदी की रस्म पूरी होती है, वैसे ही विवाह वैध और बाध्यकारी होता है. जब विवाह के दौरान युवक और युवती अग्नि के सामने सात फेरे लेते हैं और वचन से एक दूसरे के साथ विवाह के बंधन में बंध जाते हैं तब ही हिंदू विवाह पूरा हो जाता है. हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में विवाह के समापन के लिए कन्यादान की रस्म का जिक्र नहीं है.

कन्यादान की रस्म क्यों कराई जाती है?
अपने आस-पास अमूमन होने वाले हर हिंदू विवाह में कन्यादान की रस्म को पूरा करते हुए देखा होगा. दुल्हन के माता-पिता भी इस रस्म को लेकर काफी भावुक होते हैं कि उन्हें अपनी बेटी का यानी दुल्हन का कन्यादान करना है. इस रस्म के तहत पिता अपनी बेटी का हाथ दूल्हे के हाथ में देता है और मंत्र उच्चारण के बाद वह दुल्हन को पूरी तरह स्वीकार करता है और उसकी सारी जिम्मेदारी खुद निभाने का वचन देता है.

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