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शिप्रा को मैली करने वाली कान्ह और सरस्वती को 1980 से शुद्ध नहीं कर सके

March 12, 2024

  • आज बदतर हालत है शिप्रा की..पानी गंदा है और आचमन नहीं कर सकते
  • नमामि गंगे मिशन में शामिल हैं दोनों नदियाँ-लोकसभा चुनाव से पहले हर बार नदियों के शुद्धिकरण का मुद्दा जोर शोर से उछलता है

उज्जैन। मोक्षदायिनी के नाम से प्रसिद्ध उज्जैन की शिप्रा नदी का पानी हमेशा गंदा और बदबूदार रहता है। इसका सबसे प्रमुख कारण उज्जैन के गंदे नाले नदी में मिलना तो है ही साथ ही इंदौर से आने वाली कान्ह और सरस्वती नदी का पानी है। इन नदियों में फेक्ट्रियों का बदबूदार पानी छोड़ा जाता है जो सीधे शिप्रा नदी में आकर मिलता है। शिप्रा नदी को शुद्ध प्रवाहमान और निर्मल करने की याद चुनाव के समय अवश्य आती है।


इंदौर में प्रवाहित होकर उज्जैन से पहले मोक्षदायिनी शिप्रा में मिलने वाली कान्ह और सरस्वती नदियों को शुद्ध करने की कवायद चार दशक से ज्यादा पुरानी है। दोनों नदियों के शुद्धिकरण पर अलग-अलग हिस्सों में एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन नदियाँ पूरी तरह से शुद्ध नहीं हो पाईं। हालांकि यह जरूर है कि पहले के मुकाबले नदियों में गंदगी कम हुई है, लेकिन प्रयास अब भी अधूरे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले हर बार नदियों के शुद्धिकरण का मुद्दा जोर-शोर से उछलता है। राजनेता और पार्टियाँ वादे भी करती हैं लेकिन होता कुछ नहीं है। इस बार भी लोकसभा चुनाव से पहले सिर्फ इंदौर ही नहीं उज्जैन की जनता भी जानना चाहती है कि आखिर ये नदियाँ कब तक शुद्ध हो जाएँगी। कब हम कान्ह और सरस्वती नदियों को प्रदूषण मुक्त कर इस पानी को शुद्ध करेंगे और कब इन नदियों का शुद्ध पानी शिप्रा में मिलेगा या फिर ऐसी व्यवस्था होगी कि इन दोनों नदियों का पानी शिप्रा में मिलना ही बंद होगा। इंदौर की कान्ह-सरस्वती नदियाँ उज्जैन की शिप्रा नदी में जाकर मिलती हैं और शिप्रा चंबल में समाती है। चंबल यमुना नदी और यमुना आगे जाकर गंगा नदी में मिलती है। यही वजह है कि कान्ह और सरस्वती नदियों को नमामि गंगे मिशन में शामिल किया गया है। इंदौर से उज्जैन के रास्ते में इन दोनों नदियों में कई जगह उद्योगों की गंदगी मिलती है। वर्ष 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ का बड़ा धार्मिक आयोजन होना है। इसमें विश्वभर से करोड़ों श्रद्धालु शामिल होंगे और शिप्रा में स्नान करेंगे। यही वजह है कि वर्ष 2028 से पहले कान्ह और सरस्वती को पूरी तरह से शुद्ध करने की चुनौती है। केंद्र सरकार ने नमामि गंगे मिशन के तहत कान्ह और सरस्वती नदियों के शुद्धिकरण के लिए राज्य को 511 करोड़ रुपये की राशि आवंटित भी कर दी है। कान्ह और सरस्वती नदियों के शुद्धिकरण के प्रयास अस्सी के दशक में शुरू हुए थे। कान्ह नदी के दोनों तरफ पाइप लाइन बिछाई गई थी ताकि सीवेज को नदी में मिलने से रोका जा सके। इसके अलावा नदियों के किनारों को संवारने के लिए भी योजना बनाई गई थी। उसी समय वर्तमान शिवाजी मार्केट से नीचे नदी किनारे दुकानें भी बनाई गई थी। नदी में नाव चलाने की सिर्फ योजना नहीं बनी बल्कि नदी में नाव चली भी थी। हालांकि वर्षाकाल में आसपास की बस्तियों में पानी भराने के बाद नदियों के शुद्धिकरण की पूरी योजना ही ठंडे बस्ते में चली गई। इसके बाद लंबे समय तक नदियों के शुद्धिकरण को लेकर कोई काम नहीं हुआ। जेएनएनयूआरएम के तहत 250 करोड़ रुपये का रिवर साइड कारिडोर बनाए जाने की योजना भी बनी थी। इसी समय में नदियों को शुद्ध करने के लिए नाला टेपिंग की योजना पर 150 करोड़ रुपये खर्च कर नदियों के आसपास पाइप लाइन बिछाई गई थी। हालांकि यह योजना असफल ही रही। इसके बाद फिर तय हुआ कि नदियों को प्राकृतिक रूप से संवारा जाए। कुछ वर्ष पहले ही वाटर प्लस सर्टिफिकेट के लिए नाले के आउटफाल बंद करने की कवायद शुरू की गई। नदियों में मिलने से पहले सीवेज को साफ करने के लिए इंदौर शहर में आठ एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) स्थापित किए गए। इससे कुछ हद तक राहत तो मिली लेकिन पूरा समाधान नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव से पहले हर बार नदियों का शुद्धिकरण बड़ा मुद्दा बनकर सामने आता है, लेकिन चुनाव के परिणाम आते-आते यह मुद्दा हर बार ठंडे बस्ते में चला जाता है और इंदौर के साथ उज्जैन वासी भी ठगे रह जाते हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यह मुद्दा प्रमुखता से उठा था। वर्तमान में प्रदेश सरकार द्वारा सिंहस्थ 2028 की तैयारी के चलते इंदौर और उज्जैन को जोड़कर मेगा प्लान तैयार किया है जिसमें इंदौर की कान्ह सरस्वती नदी और शिप्रा नदी के पानी को स्वच्छ निर्मल एवं प्रवाहमान बनाना प्रमुख है।

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