लखनऊ। कोरोना (Corona) काल में लोग सिर्फ इस महामारी से नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि कई मायनों में उन्हें अकेलापन और दूसरी मानसिक वेदनाओं से भी गुजरना पड़ रहा है. लखनऊ (Lucknow) के रहने वाले एक बुजुर्ग पिता को भी यहीं समस्या थी, वे अस्पताल (Hospital) में कोरोना से लड़ाई तो लड़ रहे थे, लेकिन उन्हें काफी अकेलापन महसूस हो रहा था. ऐसे में अपने पिता का अकेलापन दूर करने के लिए बेटा खुद ही वार्ड बॉय (Ward boy) बन गया और उसने लगातार अपने पिता और दूसरे मरीजों की सेवा की. अब ऐसा कर उस बेटे ने कई लोगों की दुआएं तो जीतीं लेकिन वो अपने पिता को नहीं बचा पाया.
पिता के लिए बेटा बन गया वार्ड बॉय
लखनऊ के सुरेश प्रसाद का कोरोना से निधन हो गया. साइकिल की दुकान चलाने वालें सुरेश प्रसाद को कुछ समय से सांस लेने में तकलीफ हो रही थी जिसके बाद उन्हें डीआरडीओ (DRDO) में बने अस्थाई कोविड-19 अस्पताल (Covid19 Hospital) में भर्ती कराया गया था. अब वहां पर उनका इलाज तो चल रहा था, लेकिन वे काफी अकेले पड़ गए थे. फोन के जरिए भी उनकी अपने बेटे चंदन से बातचीत नहीं हो पा रही थी. इस वजह अस्पताल में पिता परेशान हो रहे थे, तो वहीं बेटा भी पिता की सेहत को लेकर चिंता कर रहा था.
इसके बाद अस्पताल के ही एक कर्मचारी के जरिए चंदन को संदेश पहुंचाया गया कि उनके पिता अस्पताल में काफी अकेला महसूस कर रहे हैं और उन्हें वहां कोई देखने वाला नहीं था. बताया गया था कि उनके पिता अस्पताल से डिसचार्च होकर घर जाना चाहते थे. जब बेटे को पिता का ये संदेश मिला उसने पूरी कोशिश की कि पिता को डिसचार्च करवा लिया जाए. कई संस्थानों से मदद भी मांगी, लेकिन काम नहीं बन पाया. इसके बाद बेटे ने बड़ा फैसला लेते हुए उस अस्पताल में ही वार्ड बॉय ही नौकरी करनी शुरू कर दी. वो ऐसा कर अपने पिता की सेवा करना चाहता था. अब क्योंकि वो अस्पताल में बतौर वार्ड बॉय आया था, ऐसे में उसे दूसरे मरीजों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ा.
बेटे ने किया डबल शिफ्ट में काम
चंदन ने अस्पताल मे डबल शिफ्ट में काम किया. वो पूरे 16 घंटे तक ड्यूटी दे रहा था जहां पर कुछ घंटे अपने पिता संग बिताता तो वहीं बाकी समय दूसरे मरीजों की भी मदद कर रहा होता. कई घंटों तक काम करने की वजह से उसके पैरों में छाले भी पड़ गए थे. अब बेटे चंदन को अपने पैरों में पड़े छालों का दर्द नहीं है, लेकिन उन्हें इस बात का दुख है कि वे अपने पिता को नहीं बचा पाएं. वे कहते हैं कि पिता कहते रहे मुझे यहां से ले चलो. वे खाना नही खा पाते थे, कई बार बोला कि जीभ मोटी हो गई है और कुछ भी खाया नही जा रहा. मैं उन्हें कम समय दे पाता था क्योंकि अन्य मरीजो की भी देखभाल करनी होती थी. मैं अपने पिता को नहीं बचा पाया.
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