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    जब सिंधिया को लोकसभा चुनावों में अपने ही समर्थक के हाथों मिली थी हार, नहीं खाया था दो दिन तक खाना

  • March 20, 2023

    भोपाल (Bhopal) । मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के विधानसभा चुनावों (assembly elections) में अब महज सात-आठ महीने ही शेष बचे हैं. ऐसे में चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में राजनीति (Politics) से जुड़े किस्से भी बाहर आने लगे हैं. ऐसा ही एक किस्सा सामने आया है तत्कालीन कांग्रेस नेता और वर्तमान बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) का.

    दो दिन तक नहीं खाया खाना
    राजनीतिक के जानकारों के अनुसार साल 2019 में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दो दिन तक खाना नहीं खाया था, यानि सिंधिया दो दिन तक भूखे ही रहे थे. सिंधिया के दो दिन भूखे रहने के पीछे वजह बताई जा रही है कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने ही समर्थक के हाथों मिली हार. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए साल 2018 और 2019 दोनों ही साल काफी बुरे साबित हुए थे. 2018 के विधानसभा चुनावों में सिंधिया के चेहरे पर मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई, लेकिन सिंधिया सीएम नहीं बन सके, जबकि साल 2019 में सिंधिया अपने ही समर्थक के हाथ लोकसभा चुनाव हार गए थे. इन दोनों ही सालों ने सिंधिया को झटका दिया था.


    सिंधिया घराने का रहा कब्जा
    बता दें कि गुना-शिवपुरी सीट पर पहला लोकसभा चुनाव साल 1957 में हुआ था, तब कांग्रेस के टिकट से सिंधिया घराने से ही विजयाराजे सिंधिया चुनाव जीती थीं. उन्होंने हिन्दू महासभा के वीजी देशपांडे को चुनाव हराया था. तभी से इस सीट पर सिंधिया का घराने का कब्जा सा हो गया था. इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया छह बार, पिता माधवराव सिंधिया चार और स्वयं ज्योतिरादित्य सिंधिया चार जीत दर्ज कर चुके हैं.

    साल 2019 के लोकसभा चुनाव में साल 2019 में 12 मई को लोकसभा के लिए मतदान हुआ था. गुना-शिवपुरी सीट से कांग्रेस की और से ज्योतिरादित्य सिंधिया, बीजेपी की ओर से सिंधिया के समर्थक केपी यादव, बसपा से लोकेन्द्र सिंह राजपूत, अंबेडकरराइट पार्टी ऑफ इंडिया से अमित खरे, आजाद भारती पार्टी से रेखा बाई, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से संतोष यादव और सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया से मनीष श्रीवास्तव, जबकि निर्दलीय के रूप में अजय सिंह कुशवाह, चंद्रकुमार श्रीवास्तव, भान सिंह, भूपेन्द्र सिंह चौहान, ओपी भैया, और हरभजन सिंह राजपूत चुनावी मैदान में उतरे थे.

    अपने ही समर्थक से हारे गए थे चुनाव
    12 मई को हुए मतदान में रिकार्ड 69.89 प्रतिशत मतदान हुआ था. मतगणना के वाले दिन शुरुआत में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बढ़त बनाई रखी थी. लेकिन थोड़ी देर बाद ही यह बढ़त हार में तब्दील होने लगी थी. दोपहर 12 बजे तक सिंधिया अपने समर्थक बीजेपी उम्मीदवार केपी यादव ने 53 हजार वोटों से पीछे हो गए थे. आखिरी परिणाम में बीजेपी के केपी यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक लाख 25 हजार 549 वोटों से पराजित कर दिया था. इस चुनाव में मिली हार से ज्योतिरादित्य सिंधिया काफी दुखी हो गए थे. क्योंकि केपी सिंधिया कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि रहे थे.

    2019 से पहले 2018 ने भी मिली थी निराशा
    कांग्रेस के तत्कालीन नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए साल 2018 और 2019 दोनों ही साल बुरे साबित हुए. 2018 के चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे की बदौलत ही मध्य प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस काबिज हो सकी थी. 2018 के चुनाव में एक नारा चला था ‘माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज’ यह नारा काफी ट्रेंड हुआ. राजनीति के जानकारों का भी स्पष्ट कहना था कि यह चुनाव सिंधिया के चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है. इस चुनाव में कांग्रेस को विजय मिली, लेकिन सिंधिया को धोखा मिला. मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ ने मध्य प्रदेश की सत्ता संभाली. मध्य प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष का पद भी कमलनाथ के पास ही रहा.

    2020 में अच्छे दिन की शुरुआत
    साल 2018 और 2019 में खराब दौर के बाद भी सिंधिया ने हिम्मत नहीं हारी. साल 2020 से सिंधिया की अच्छे दिन की शुरुआत हुई. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में अपनी आस्था जता दी. सिंधिया के साथ मध्य प्रदेश के सिंधिया समर्थक मंत्री व कुछ विधायकों ने भी कांग्रेस सरकार से अपना इस्तीफा दे दिया और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिई. सभी विधायक बीजेपी शामिल हुए. इस्तीफे के बाद इन सीटों पर फिर से चुनाव हुए और मध्य प्रदेश की सत्ता में फिर से बीजेपी की सरकार काबिज हुई. उधर सिंधिया को केंद्र सरकार में स्थान मिला. सिंधिया वर्तमान में उड्डयन मंत्री हैं.

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