नई दिल्ली. पंजाब और हरियाणा(Punjab and Haryana) उच्च न्यायालय का कहना है कि सिर्फ इसलिए कि दो वयस्क महज कुछ दिनों तक साथ रहे हैं, सिर्फ ‘खोखली दलीलों’ के आधार पर यह तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि दोनों वाकई लिव-इन संबंध (Live-In Relationship) में हैं. न्यायमूर्ति मनोज बजाज ने कहा कि इस बात को हमेशा दिमाग में रखें कि संबंध की अवधि, एक-दूसरे के प्रति कुछ तय कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन आदि ही इस संबंध को वैवाहिक संबंध के बराबर लाकर खड़ा करता है.
अदालत ने लड़की के परिवार से सुरक्षा की मांग कर रहे हरियाणा (Haryana) के यमुनानगर जिले के एक जोड़े की याचिका खारिज कर दी है. अदालत ने अपने 26 नवंबर के फैसले में याचिका दायर करने वाले पर 25,000 रुपये का अर्थदंड भी लगाया. अदालत ने कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि दो वयस्क कुछ दिनों से साथ रह रहे हैं, उनकी खोखली दलीलों का आधार यह तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वे वाकई लिव-इन संबंध में हैं.’’
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे फर्जी फौजदारी मुकदमे में फंसाने की धमकी दी गई है इसलिए वह अदालत से अपनी सुरक्षा के लिए उचित निर्देश देने का अनुरोध करते हैं. वकील ने बताया कि याचिकाकर्ता 24 नवंबर, 2021 से लिव-इन संबंध में रह रहे हैं.
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