नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) चाहता है कि जमाकर्ताओं को बैंकों में जमा उनके पैसे पर ज्यादा ब्याज मिले। निजी और सरकारी क्षेत्र के बड़े बैंक ग्राहकों को अब भी 2.70 फीसदी से लेकर चार फीसदी तक ही ब्याज दे रहे हैं। बैंकों के कुल जमा में बचत खाते की हिस्सेदारी करीब एक तिहाई है, फिर भी बैंक ग्राहकों को बचत खाते पर बहुत कम ही ब्याज दे रहे हैं।
आरबीआई ने पिछले वित्त वर्ष में नीतिगत दर को 2.50 फीसदी बढ़ाकर 6.50 फीसदी कर दिया है। ऐसे में केंद्रीय बैंक चाहता है कि जिस तरह कर्ज पर बैंकों ने तुरंत ब्याज बढ़ाकर ग्राहकों पर बोझ डाल दिया, उसी तर्ज पर जमा पर भी ब्याज दरें बढ़ाई जाएं। आरबीआई अपनी बैठकों में बैंकों को बचत जमा दरें बढ़ाने के लिए प्रेरित करता रहा है। साथ ही इसे फिर से बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
आरबीआई ने अपनी हालिया मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा कि मौजूदा सख्त चक्र में सावधि जमा पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी उधार दरों से अधिक हो गई है। हालांकि, बैंकों के बचत खाते पर दरें लगभग अपरिवर्तित बनी हुई हैं।
बैंकों के मार्जिन पर पड़ेगा असर
निजी क्षेत्र के बैंक के एक अधिकारी ने कहा कि बचत खाता बनाए रखने की बैंकों की परिचालन लागत और तकनीकी लागत काफी अधिक है। यहां तक कि ब्याज दर में 20 से 25 बीपीएस की वृद्धि भी बैंकों के पूरे बही-खाते को प्रभावित करेगी। इससे बैंकों के मार्जिन पर भी असर पड़ सकता है।
कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ने से बैंकों की लागत में वृद्धि कम हो गई है। इससे इनके मार्जिन में उछाल दिख रहा है। यस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और इंडसइंड बैंक ने हाल ही में कहा है कि उनकी बचत जमा दरें बढ़ाने की कोई योजना नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक, छोटे बैंक बचत खाते पर ज्यादा ब्याज दे रहे हैं। कुछ बैंक 7 फीसदी तक ब्याज दे रहे हैं।
निजी-विदेशी बैंकों के लिए पूर्णकालिक निदेशक जरूरी
आरबीआई ने निजी और विदेशी बैंकों की पूर्ण सब्सिडियरी कंपनियों से कहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके पास दो पूर्णकालिक निदेशक हों। इसमें प्रबंध निदेशक (MD) एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) भी शामिल हो सकते हैं। जिन बैंकों में अभी दो पूर्णकालिक निदेशक नहीं हैं, उन्हें चार महीने के भीतर इसे पूरा करना होगा।
आरबीआई ने बुधवार को एक सर्कुलर में कहा कि बैंकिंग क्षेत्र की बढ़ती जटिलता और मौजूदा उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए एक प्रभावी वरिष्ठ प्रबंधन टीम स्थापित करना जरूरी है। ऐसी टीम की स्थापना से उत्तराधिकार योजना की सुविधा भी मिल सकती है।
पूर्णकालिक निदेशकों की संख्या बैंक के बोर्ड के परिचालन आकार, व्यावसायिक जटिलता और अन्य पहलुओं जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए तय की जानी चाहिए। नियुक्ति के संबंध में जिन बैंकों में सक्षम प्रावधान नहीं हैं, वे पहले आरबीआई से मंजूरी ले सकते हैं।
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