मुफ्त की रेवड़ी की व्यथा सारे कमाने वाले, कर चुकाने वाले…देशहित के बारे में सोचने वाले सह भी रहे हैं और कह भी रहे हैं… यह पीड़ा जब देश की अदालतें भी समझ रही हैं… चिंता कर रही हैं… परिणाम देख रही हैं, तब भी केवल कहकर और समझकर हम लोगों में शामिल हो रही हैं…जबकि जजों के पास अधिकार हैं… देश को बचाने के लिए वह जिम्मेदार हैं… हम याचक बनकर जा रहे हैं… याचिका लगा रहे हैं… लेकिन केवल जजों का विचार पा रहे हैं… वो इस विचार को प्रहार नहीं बना रहे हैं… नेताओं की सोच का संहार नहीं कर पा रहे हैं तो देश के साथ ही नहीं, स्वयं के अस्तित्व पर सवाल लगा रहे हैं… चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा बांटी जाने वाली मुफ्त की रेवडिय़ां केवल चिंता और चिंतन से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं… इस नीयत और इसकी नियति पर रोक नहीं लग पा रही है… मुफ्त की खैरात पाकर लोग निकम्मे होते जा रहे हैं… काम करने वाले मिल नहीं पा रहे हैं… अपना वोट बेचकर लोकतंत्र को ठिकाने लगा रहे हैं… चुनाव आयोग भी खामोशी से सब कुछ देखकर आंखें मूंद रहा है… चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रलोभन देना अपराध माना जाता है, लेकिन खुलेआम प्रलोभित करने की घोषणाओं को योजना कहा जाता है… प्रलोभन के लालच में वोट एकतरफा पड़ते हैं और खरीदे हुए वोट कभी इंसाफ नहीं करते हैं…एक जागरूक, चैतन्य और ईमानदार सरकार के चयन की सोच मार दी जाती है… जो दे उसका भला की नीयत से सरकार बनाई जाती है…जो खैरात लोगों को बांटी जाती है वो देश के कमाऊ लोगों की कमाई से जुटाई जाती है…हालांकि इसमें उन लोगों पर भी दूसरे करों से बोझ लद जाता है जो यह खैरात पाते हैं… मुफ्त की रेवड़ी बांटने के लिए करों की दरें बढ़ाई जाती हैं… दाल, तेल, चीनी, अनाज सब कुछ महंगा हो जाता है… पेट्रोल-डीजल पर कर बढ़ जाता है…परिवहन और यात्राएं महंगी हो जाती हैं…घरेलू गैस की कीमतें बढ़ती जाती हैं…यह बोझ आम आदमी भी सहता है… वो भी इस दर्द को झेलता है जो खैरात पाता है…यह योजनाएं केवल दिखावा बन जाती हैं… लोगों को निकम्मा और भिखारी बनाती हंै… आम आदमी सब कुछ देखता है… चुनाव आयोग को भी बंधुआ समझता है…इसीलिए अदालत की शरण में न्याय की अपेक्षा के साथ जाता है…शुक्र है कि न्याय के दूत, न्याय की मूर्तियां इस दर्द को समझती हैं… लेकिन यदि यह सोच इंसाफ बनकर आदेश में नहीं बदलेगी तो न्याय की शक्ति देश में नहीं दिखेगा… चिंतन को बहस में बदला जाए और बहस को आदेश में परिवर्तित किया जाए तो लोकतंत्र के साथ ही देश और देश का भविष्य बच पाए…
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved