नई दिल्ली(New Delhi) । प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) की याचिका(Petition) पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट(delhi high court) ने शुक्रवार को शराब नीति घोटाले(Alcohol policy scandals) में कथित धन शोधन मामले (Alleged money laundering cases)में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल की रिहाई पर फिलहाल रोक लगा दी है। आपको बता दें कि उन्हें निचली अदालत से जमानत मिली थी। राउज एवेन्यू कोर्ट की स्पेशल जज न्याय बिंदु ने गुरुवार को सुनवाई करते हुए उन्हें जमानत दी थी।
केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर साउथ ग्रुप से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप है। यह राजनेताओं, व्यापारियों और अन्य लोगों का एक समूह है। लाइसेंसधारियों के पक्ष में दिल्ली शराब नीति में हेराफेरी के आरोप भी लगाए गए हैं। यह भी आरोप है कि इस पैसे का इस्तेमाल 2022 के गोवा विधानसभा चुनाव प्रचार में किया गया था।
कौन हैं स्पेशल जज न्याय बिंदु?
न्याय बिंदु ने दिल्ली उत्तर पश्चिम जिले के रोहिणी कोर्ट में सीनियर स्पेशल जज के रूप में काम किया है। उन्होंने द्वारका कोर्ट में भी यही जिम्मेदारी संभाली है। वह सिविल और क्रिमिनट दोनों तरह के कानूनों से अच्छी तरह वाकिफ हैं।
आदेश में क्या कहा?
केजरीवाल को जमानत देते हुए उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया में उनका अपराध अभी तक स्थापित नहीं हुआ है। यह संभव हो सकता है कि आवेदक के कुछ परिचित व्यक्ति किसी अपराध में शामिल हों, लेकिन ईडी अपराध की आय के संबंध में आवेदक के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत देने में विफल रहा है। उन्होंने केजरीवाल के इस दावे पर ईडी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया कि उन्हें कथित आबकारी घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सीबीआई की एफआईआर या एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग एजेंसी द्वारा दर्ज ईसीआईआर में नाम दर्ज किए बिना गिरफ्तार किया गया था।
जज ने अपने फैसले में कह, “यह भी ध्यान देने योग्य है कि ईडी इस तथ्य के बारे में चुप है कि गोवा में विधानसभा चुनावों में AAP द्वारा अपराध की आय का उपयोग कैसे किया गया है। दो साल बीत जाने के बाद भी कथित राशि का बड़ा हिस्सा पता लगाना बाकी है।” जज ने कहा कि ईडी यह स्पष्ट करने में विफल रहा है कि पूरे पैसे के निशान का पता लगाने में उसे कितना समय लगेगा।
उन्होंने आगे लिखा, “इसका मतलब यह है कि जब तक ईडी द्वारा शेष राशि का पता लगाने की यह कवायद पूरी नहीं हो जाती, तब तक आरोपी को सलाखों के पीछे रहना चाहिए, वह भी उसके खिलाफ उचित सबूतों के बिना। यह भी ईडी का स्वीकार्य तर्क नहीं है।”
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