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    Jubilee Special: कोई यूं ही राज कपूर नहीं बन जाता

  • December 14, 2020

    भारतीय हिंदी सिनेमा के महान शोमैन और चार्ली चैंपियन (Charlie champion) के रूप में दुनिया में विख्यात राज कपूर अगर जीवित होते तो इस साल 14 दिसम्बर को वो पूरे 96 साल के हो जाते। जमाना उन्हें बधाई देता। मगर वो हमारे बीच नहीं हैं पर उनका काम जिंदा है। …और यह मौका उनके सृजन को याद करने का है। सफलता की चोटी से गिरकर फिर आसमान की बुलंदी छूने वाला यह ‘जोकर’ भाषायी और नस्ली सरहदों को तोड़कर सिनेमा के चहेतों को लगातार हंसा रहा है। हिंदी सिनेमा में हमेशा दो बड़ी विफलताओं की चर्चा जरूर होती है। राजकपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ और गुरुदत्त की ‘कागज की फूल’। दोनों ही फिल्में इनकी सबसे महत्त्वाकांक्षी फिल्में थीं। इन्हें दर्शकों ने नकार दिया। टिकट खिड़की पर दोनों औंधे मुंह गिर गईं। बावजूद इसके यह फिल्में मौजूदा पीढ़ी को अचंभित और आनंदित कर रही हैं।

    केदार शर्मा का थप्पड़
    राज कपूर हिंदी सिनेमा के भीष्म पितमाह और ‘मुगल ए आजम’ में बादशाह अकबर की जीवंत भूमिका निभाने वाले युगपुरुष पृथ्वीराज कपूर के बेटे हैं। पिता को उनसे कोई उम्मीद नहीं थी। राज कपूर पिता के कहने पर केदार शर्मा की यूनिट मे क्लैपर ब्वॉय भी रहे। क्लैप देते समय राज कपूर यह कोशिश करते कि उनका चेहरा भी कैमरे के सामने आ जाए। एक बार ऐसा हुआ भी। फिल्म ‘विषकन्या’ की शूटिंग के दौरान राज कपूर का चेहरा कैमरे के सामने आ गया और हड़बड़ाहट में चरित्र अभिनेता की दाढ़ी क्लैप बोर्ड में उलझकर निकल गई। इससे नाराज केदार शर्मा ने राज कपूर को अपने पास बुलाकर थप्पड़ जड़ दिया। लोग कहते हैं कि केदार शर्मा पूरी रात इसके लिए अफसोस करते रहे।… अगली सुबह उन्होंने राज कपूर को अपनी नई फिल्म ‘नील कमल’ में काम करने का मौका दिया। यह राज कपूर की पहली हिंदी फिल्म है।

    ‘आग’ से खेलने का शौक
    महान शोमैन राज कपूर कुछ और करना चाहते थे। उनकी आंखों में अपनी फिल्में बनाने का सपना तैर रहा था। वह अलग राह पर चल पड़े। 1948 में ‘आरके फिल्म्स’ की स्थापना कर ‘आग’ का निर्माण किया। मगर इससे उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली। साल 1952 मील का पत्थर साबित हुआ। इस साल प्रदर्शित फिल्म ‘आवारा’ की सफलता ने राज कपूर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। शीर्षक गीत ‘आवारा हूं या गर्दिश में आसमान का तारा हूं…’, लोगों के लबों पर तैरकर फिजा को महकाने लगा। राज कपूर और नरगिस की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया। दोनों ने ‘बरसात, अंदाज, जान-पहचान, आवारा, अनहोनी, आशियाना, अंबर, आह, धुन, पापी, श्री 420, जागते रहो, चोरी-चोरी’ जैसी यादगार फिल्में दीं। राज कपूर ने हिंदी सिनेमा को कई बड़े नाम दिए हैं। इनमें संगीतकार शंकर-जयकिशन, गीतकार हसरत जयपुरी, शैलेंद्र और पार्श्वगायक मुकेश हैं।

    ‘मेरा नाम जोकर’ का सदमा और सफलता
    राजकपूर को ‘मेरा नाम जोकर’ (1971) की विफलता से गहरा सदमा लगा। उन्हें भारी आर्थिक क्षति हुई। उन्होंने तय किया कि भविष्य में वो अब सिर्फ फिल्मों का निर्माण करेंगे और अभिनय नहीं करेंगे । शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मुकेश ने राज कपूर अभिनीत सभी फिल्मों में उनके लिए पार्श्व गायन किया। मुकेश के निधन पर राज कपूर ने कहा था-‘मेरी आवाज ही चली गई। ‘ वर्ष 1971 में राजकपूर पद्मभूषण पुरस्कार और वर्ष 1987 में सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। अभिनेता के रूप में उन्हें दो बार और निर्देशक के रूप में उन्हें चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

    रूस में दीवानगी
    रूस के सिनेप्रेमी आज भी राज कपूर को बेहद प्यार देते हैं। वहां मौजूदा पीढ़ी राज कपूर की फिल्मों को देखना पसंद करती है। मॉस्को में कई लोगों का मानना है कि रूस ने राज कपूर के सिनेमा से ही भारतीय हिंदी फिल्मों को पहचाना। ताशकंद फिल्म महोत्सव में भी राज कपूर की फिल्में प्रदर्शित की गईं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि राज कपूर ने अपने काल में युवा पीढ़ी की आंखों में तैरते तमाम ख्वाबों को अपनी फिल्मों में पिरोया है। उन्होंने बेरोजगारी, सर्कस के कलाकारों की पीड़ा और विधवा विवाह के सवालों को बड़े पर्दे पर जीवंत किया। 1948 से 1988 के बीच राजकपूर ने आरके फिल्म्स के बैनर तले तमाम सफल फिल्में दी हैं।

    बॉबी और राम तेरी गंगा मैली
    अभिनय के संसार को त्यागकर राजकपूर ने बॉबी, सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली जैसी खूबसूरत फिल्मों का निर्माण किया है। 2012 में प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने वर्ष 1923 के बाद बनी 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में 20 नई फिल्मों को शामिल किया था। इस सूची में वर्ष 1951 में प्रदर्शित राज कपूर अभिनीत फिल्म ‘आवारा’ भी थी। राजकपूर ने कृष्णा कपूर से शादी की थी। राजकपूर के पांच बच्चे हुए- रणधीर कपूर, रितु नंदा, स्वर्गीय ऋषि कपूर, रीमा और राजीव कपूर। आज उनका कुनबा हिंदी सिनेमा में छाया हुआ है। तीसरी पीढ़ी के करिश्मा कपूर, करीना कपूर के बाद रणबीर कपूर उनकी विरासत का झंडा ऊंचा किए हैं। राज कपूर राम तेरी गंगा मैली के बाद ‘हिना’ पर काम कर रहे थे पर नियति को यह मंजूर नहीं था। कैमरा, लाइट, एक्शन का यह महानायक 2 जून, 1988 को खामोश हो गया। मगर जब-जब यह गीत- ‘कहता है जोकर सारा जमाना/ आधी हकीकत, आधा फसाना/ चश्मा उतारो, फिर देखो यारो/ दुनिया नई है, चेहरा पुराना/ कहता है जोकर…/ अपने पे हंस कर जग को हंसाया/ बनके तमाशा मेले में आया/ हिंदू न मुस्लिम, पूरब न पश्चिम/ मजहब है अपना हंसना-हंसाना/ कहता है जोकर…/ धक्के पे धक्का, रेले पे रेला/ है भीड़ इतनी पर दिल अकेला/ गम जब सताए, सीटी बजाना/ पर मसखरे से दिल न लगाना/ कहता है जोकर…।’ कानों में गूंजता है, यह खामोशी टूट जाती है और राज कपूर का चेहरा दर्शकों की आंखों में कौंध जाता है।

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