भोपाल । नाबालिग बेटियों के गर्भपात की प्रक्रिया बहुत ही संवेदनशीलता की मांग करती है इसलिए इसे सम्पन्न कराने वाले चिकित्सकों का अतिरेक दायित्व है कि वे सावधानी के साथ पूरी संवेदनशीलता से इस काम को सुनिश्चित करें।यह बात आज जेपी हॉस्पिटल के वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ श्रध्दा अग्रवाल ने कही। डॉ. अग्रवाल चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 19 वी ई संगोष्ठी को संबोधित कर रही थी।संगोष्ठी में देश भर से सीडब्ल्यूसी/जेजेबी पदाधिकारियों ने शिरकत की।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बलात्कार पीड़ित बालिकाओं का गर्भपात 24 सप्ताह की अवधि में भी कराया जा सकता है इसके लिए बालिका के सहमति अनिवार्य है।इसके अलावा इस प्रक्रिया को अमल में लाने से पूर्व दो चिकित्सकों की राय का प्रावधान भी है जिसमें एक चिकित्सक ऑब्सगायनी होना अनिवार्य है।
रेप पीड़िता के मामलों में डॉक्टरों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए डॉ. अग्रवाल ने कहा कि अपराधी को सजा दिलाने में साक्ष्य सबसे निर्णायक तत्व होते हैंं और एक चिकित्सक को एमएलसी या गर्भपात की प्रक्रिया संपादित करते समय साक्ष्यों को सरंक्षित करते हुए रिपोर्ट निर्मित करना चाहिये।
उन्होंने बताया कि ऐसे प्रकरणों में बालिकाओं के पुनर्वास औऱ साक्ष्य सरंक्षण का प्रावधान पॉक्सो एक्ट के तहत डॉक्टरों के हवाले किया गया है इसलिए इन मामलों में बहुत ही जिम्मेदारी के साथ काम किया जाना आवश्यक है।डॉ अग्रवाल के अनुसार प्रथम दृष्टया ऐसे मामलों की तत्काल सूचना स्टेक होल्डर्स तक पहुचाना भी डॉक्टर की ड्यूटी का हिस्सा है ऐसा न करना पॉक्सो एक्ट के तहत डॉक्टरों को गंभीर अपराध का दोषी निर्धारित करता है।
डॉ. अग्रवाल ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि गर्भपात के मामलों में अक्सर माता पिता औऱ पीड़िता के रुख अलग अलग होते है इन परिस्थितियों में एक डॉक्टर को सक्षम परामर्शदाता की तरह सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अपनी भूमिका का निर्वहन करना चाहिये।
उन्होंने बताया कि गरीब घरों से आने वाली पीड़िताओ के मामले में कानूनी दायरे में किये जाने वाले गर्भपात भी जोखिम भरे रहते है क्योंकि बालिकाओं के सामाजिक वातावरण,रहन सहन औऱ पोषण के मामले परिपक्व नही होते है, इसलिए सीडब्ल्यूसी,देखरेख संस्थान औऱ चिकित्सकों की भी यह जबाबदेही है कि इस सामाजिक परिवेश में अगले छः महीने तक सबंधित बालिका के स्वास्थ्य और मानसिक बेहतरी का स्तर बरकरार रहे।
डॉ. अग्रवाल ने एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हुए यह भी बताया कि कोविड 19 के मौजूदा दौर में नाबालिगों के ऐसे मामलों में तुलनात्मक तौर पर ज्यादा तेजी देखी गई है।
चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने मप्र उच्च न्यायालय द्वारा सुंदर लाल बनाम एमपी स्टेट के मामले में जस्टिस सुजोय पॉल के निर्णय की मंशा को रेखांकित करते हुए बताया कि जुबेनाइल के मामलों में मप्र उच्च न्यायालय त्वरित निर्णय देनें में अव्वल है कुछ मामलों में तो 24 घण्टे के अंदर उच्च न्यायालय ने उक्त आशय के निर्णय जारी किए है।
डॉ. चौबे ने जुबेनाइल मामलों में गर्भपात और डीएनए की प्रक्रिया को अमल में लाने सबंधी एक “मानक कार्य विधि “का प्रकाशन कराकर देश भर की बालकल्याण समितियों को उपलब्ध कराने की बात कही।
ई संगोष्ठी के अंत मे आभार प्रदर्शन उज्जैन के बाल कल्याण समिति अध्यक्ष लोकेन्द्र शर्मा ने किया।
चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के सचिव डॉ. कृपाशंकर चौबे ने यह भी बताया कि 20 ई संगोष्ठी में गर्भपात के कानूनी प्रावधानों पर अगले सप्ताह चर्चा की जायेगी। (हि.स.)