खुदा खैर करे…पत्रकारों की जि़ंदगी और सेहत को लेके खबरें अच्छी नहीं हैं। होशंगाबाद के नोजवान सहाफी (पत्रकार) प्रशांत दुबे का अचानक इंतकाल होने की खबर से पूरे नर्मदांचल में अफसोस पसर गया है। प्रशांत 44 बरस के थे। ये हरिभूमि अखबार के होशंगाबाद में जिला ब्यूरो थे और सहारा समय के लिए फील्ड रिपोर्टिंग भी करते थे। उनके बेहद करीबी पत्रकार मित्र रामभरोसे मीणा और दीपेश सोनिया अपने मित्र के यूं अचानक जाने से बेहद दुखी हैं। मीणा बताते हैं कि प्रशांत दुबे हरिभूमि के इटारसी दफ्तर के शुभारंभ के मौके पर अपनी कार से होशंगाबाद से इटारसी गए थे। वहां करीब पौने बारह बजे उन्हें सीने में दर्द महसूस हुआ। अपने साथियों के साथ प्रशांत ने इटारसी के एक डाक्टर को दिखाया। डाक्टर को ईसीजी कुछ गड़बड़ लगी। उन्हें माइनर अटैक का शुबहा (आशंका) हुआ। लिहाजा प्रशांत को होशंगाबाद जाने की सलाह दी गई। पत्रकार को कोई व्यसन भी नहीं था। ड्राइवर के होते हुए प्रशांत इटारसी से खुद कार ड्राइवर करते हुए होशंगाबाद आ गए। यहां शहर के बेस्ट नर्मदा हार्ट केयर अस्पताल में ये खुद सीढियां चढ़ते हुए इमरजेंसी में चले गए। यहां आइसीयू में प्रशान्त को दो अटैक आ गए। डाक्टरों ने उन्हें दिल मे इंजेक्शन और सीपीआर भी दिया लेकिन शाम 4 बजे उनका इंतकाल हो गया। इससे पहले ही उनके पत्रकार दोस्त और जिले के तामाम अधिकारी अस्पताल पहुंच चुके थे। एहतियातन उनके जाने की खबर उनकी पत्नी और बच्चों को न देकर पिपरिया में उनके भाई को दी गई। पिपरिया प्रशान्त का आबाई शहर (ग्रह नगर) है। वहां उनका अंतिम संस्कार कल रविवार को किया गया। प्रशांत की छवि एक ईमानदार और सबकी मदद करने वाले इंसान की थी। उनकी शव यात्रा में बड़ी तादात में हर तबके के लोग शरीक थे। वो अपने पीछे पत्नी और 2 बेटियां छोड़ गए हैं। बाकी प्रशांत की मौत कुछ सबक छोड़ गई है। मसलन हार्ट अटैक की हालत मे किसी को भी ड्रायविंग न करके एम्बुलेंस से अस्पताल जाना चाहिए। भले ही तबियत ठीक। महसूस हो रही हो बजाय पैदल चलने के व्हील चेयर से ही अस्पताल में दाखि़ल होना चाहिए।
नरेंद्र की तबीयत खराब
कोई 5 बरस पहले ब्रेन स्ट्रोक आने के बाद भोपाल के सीनियर सहाफी नरेंद्र कुलश्रेष्ठ की पत्रकारिता छूट गई है। इस दौरान नरेंद्र को दो बार स्ट्रोक आ चुके हैं। वे बमुश्किल चल पाते हैं। उनके बेटे अनिमेष ने मुझे बताया कि पापा की दिमागी हालत बिगड़ती जा रही है। वे बच्चों जैसी जि़द करते हैं। नरेंद्र की याददाश्त लगभग जा चुकी है। वो अटक अटक के गैर मुताल्लिक बात करते हैं। नरेंद्र अपने पुराने पत्रकार मित्रों को भी नहीं पहचान पा रहे हैं। वे रात रात भर जागते हैं। किसी ज़माने में भोपाल के एक नम्बर क्राइम रिपोर्टर रहे नरेंद्र कुलश्रेष्ठ के पुलिस और प्रशासन के अलावा सियासी लोगों से भी उम्दा राब्ते थे। इन्होंने कई अखबारों और कुछ न्यूज़ चैनलों के लिए काम किया। लेकिन इस कठिन दौर में ये बिल्कुल तन्हा हैं। डेढ़ बरस पहले इन्हें सरकार ने 10 हज़ार रुपये पेंशन शुरू की है। जो कुछ मकान किराये,बिजली बिल और खुद की दवा में खर्च हो जाती है। नरेंद्र की बीबी और 2 बच्चे उनका ध्यान रख रहे हैं। बेटे की कालेज की पढ़ाई का खर्च बेटा खुद ट्वीशन कर के निकाल रहा है। नरेंद्र के परिजन चाहते हैं कि सरकार इनका इलाज अपने खर्चे पर किसी अच्छे अस्पताल में कराए।
राकेश चतुर्वेदी घायल
न्यूज़ 24 के प्रिंसिपल कॉरेस्पोंडेंट राकेश चतुर्वेदी कल एक अजीब हादसे में ज़ख्मी हो गए। राकेश शाहपुरा में जिस अपार्टमेन्ट में रहते हैं वहां बाहर सड़क से अपार्टमेंट की तरफ सड़क का ढलान है। राकेश आफिस आने के लिए अपनी कार में बैठने के पहले विंड स्क्रीन वगेरह साफ कर रहे थे। कार का हेंड ब्रेक नहीं लगा था। न्यूट्रल गियर में खड़ी कार पीछे लुढ़कने लगी। कार पार्किंग की दीवार से न टकराए, इसलिए राकेश ने उसे हाथों से रोकने की कोशिश करी। वे लडख़ड़ा कर गिर पड़े। उन्हें कंधे और पैर में गहरी चोटें आई हैं। आज शाम निजी अस्पताल में उनका ऑपरेशन है। राकेश भाई जल्द तंदुरुस्त हों सूरमा येई दुआ करता है।
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