देहरादून (Dehradun) । जोशीमठ (Joshimath) में सबसे अधिक भू-धंसाव (earth subsidence) दिसंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच हुआ। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिकल इंस्टीट्यूट, हैदराबाद (National Institute of Geophysical Institute Hyderabad) के अध्ययन (Study) में एक किमी लंबाई की लाइन में सेटेलाइट से लिए चित्रों में जोशीमठ के 6 सेमी से एक मीटर तक धंसने के आंकड़े दर्ज किए गए। हालांकि एक मीटर तक भू-धंसाव एक सीमित क्षेत्र में था। इसके साथ ही जमीन के भीतर 10 मीटर तक बड़े बोल्डरों का पता चला।
एनजीआरआई की जोशीमठ में भू-वैज्ञानिक और भू-तकनीकी के आधार पर प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां की चट्टानें और उसमें मौजूद मिट्टी या दूसरे कण पूरे जोशीमठ में एक समान नहीं हैं, इसकी अधिकतम मोटाई नालों और नालों के आसपास देखी गई है। जमीन में दरारें ज्यादातर मोटे आवरण वाले क्षेत्रों में देखी गई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) फॉल्ट-लाइन के ऊपर बसा है। यह लाइन हेलंग में जोशीमठ के दक्षिण के करीब से गुजरती है, जिससे चट्टानें संरचनात्मक रूप से कमजोर और कट जाती हैं। यहां छोटे-छोटे भूकंप दर्ज किए जाने हैं लेकिन भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना से इनकार किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ शहर के आसपास का क्षेत्र ओवर बर्डन सामग्री (एक बहुत पुराना भूस्खलन) की मोटी परत से ढका है और यह लंबे समय से धीरे-धीरे धंस रहा है, जिसे औपचारिक रूप से सबसे पहले 1976 में मिश्रा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में प्रस्तुत किया था।
एनजीआरआई ने तीन तरीके से किया अध्ययन
एनजीआरई ने तीन तरीके से सर्वे को अंजाम दिया है। इसमें एक कृत्रिम भूकंप, दूसरा जमीन के भीतर बिजली का करंट पास करके और तीसरा जमीन के भीतर लेजर की किरणें भेजकर। इन तीनों सर्वे के नतीजे के आधार पर इन्होंने अपनी रिपोर्ट बनाई है।
50 सेमी चौड़ी और 35 मीटर गहरी दरारें उभरीं
जोशीमठ के भूगर्भीय सर्वेक्षण में सामने आया कि कठोर चट्टानों के ऊपर 35 मीटर से भी अधिक का मलबा जमा है, जो ग्लेशियर और लैंडस्लाइड से जमा हुआ है। इस मलबे में करीब 15 मीटर की मोटी परत कम कठोरता वाली मृदु मिट्टी से बनी है। दूसरी परत 20 मीटर पर है, जो अधिक कठोर और घनी है। इसके नीचे एक बार फिर से कम कठोरता वाली परत है। जोशीमठ में उत्पन्न दरारें धरातल पर करीब 50 सेंटीमीटर तक चौड़ी हैं। इनकी चौड़ाई अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग है। जबकि गहराई 20 से 35 मीटर से भी अधिक है।
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