नई दिल्ली: वन नेशन वन इलेक्शन (one nation one election) को लेकर लोकसभा सचिवालय ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) घोषित कर दिया है. जेपीसी में लोकसभा से 27 सदस्य (27 members from Lok Sabha in JPC) और राज्यसभा से 12 सदस्य शामिल हैं. बीजेपी सांसद पीपी चौधरी को जेपीसी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. इस तरह से देखें तो जेपीसी में कुल सदस्यों की संख्या 39 रहेगी. केंद्र की मोदी सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर मंगलवार को लोकसभा में बिल पेश किया था.
इस समिति में लोकसभा के जिन 27 सदस्यों को शामिल किया गया है उसमें पीपी चौधरी के साथ सीएम रेशम, बांसुरी स्वराज, पुरुषोत्तम भाई रुपाला, अनुराग सिंह ठाकुर, विष्णु दयाल राम, भर्तृहरि महताब, संबित पात्रा, अनिल बालुनी, विष्णु दत्त शर्मा, बैजयंत पांडा, संजय जयसवाल, प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी, सुखदेव भगत, धर्मेंद्र यादव, छोटेलाल, कल्याण बनर्जी, टी एम सेल्वागणपति, जीएम हरीश, अनिल यशवंत देसाई, सुप्रिया सुले, श्रीकांत एकनाथ शिंदे, शंभावी, के राधाकृषणन, चंदन चौहान, बालशौरि वल्लभनेनी शामिल हैं.
राज्यसभा के 12 सदस्य शामिल
वहीं, राज्यसभा के जिन 12 सांसदों को शामिल किया है उसमें घनश्याम तिवारी, भुवनेश्वर कलिता, डॉ के लक्ष्मण, कविता पाटीदार, संजय कुमार झा, रणदीप सिंह सुरजेवाला, मुकुल बालकृष्ण वासनिक, सांकेत गोखले, पी विल्सन, मानस रंजन, वी विजयसाई रेड्डी शामिल हैं.
लोकसभा में मत विभाजन के बाद संविधान (129 वां संशोधन) विधेयक, 2024 को पुर:स्थापित किया गया. विधेयक को पेश किए जाने के पक्ष में 263 वोट, जबकि विरोध में 198 वोट पड़े थे. इसके बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ध्वनिमत से मिली सदन की सहमति के बाद संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024 को भी पेश किया था. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है.
उन्होंने यह भी कहा था कि विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए. कानून मंत्री मेघवाल ने कहा था कि एक साथ चुनाव कराने से संबंधित प्रस्तावित विधेयक राज्यों की शक्तियों को छीनने वाला नहीं है, बल्कि यह विधेयक पूरी तरह संविधान सम्मत है.
लोकसभा और राज्यसभा की कुछ विपक्षी दल इस बिल का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि पहले तो इस तरह की व्यवस्था अमल में नहीं लाया जा सकता क्योंकि इसके पीछे कई तरह की दिक्कतें सामने आ सकती हैं. इसके अलावा एक देश एक चुनाव की वजह से केंद्र में एकधिकार जैसी स्थिति भी देखने को मिल सकती है.
हालांकि, विपक्ष के सवालों के जवाब में सत्ताधारी दल इतिहास के पन्ने पलट रहे हैं. उनका कहना है कि देश में 1952 से 1967 तक सभी चुनाव एक साथ ही हुए थे. तब विपक्ष को दिक्कत नहीं था, अब जब फिर से एक देश एक चुनाव की व्यवस्था की बात की जा रही है तो उन्हें दिक्कत आ रही है.
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