रांची। झारखंड (Jharkhand) के पूर्व मुख्यमंत्री (Former Chief Minister) चंपाई सोरेन भाजपा (Champai Soren) में शामिल (BJP) हो सकते हैं, ऐसी अटकलें मीडिया की सुर्खियां बनी हुई हैं। राजनीतिक गलियारों (Political corridors) में झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha-JMM) को अक्सर झारखंड की राजनीति की पाठशाला कहा जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कई नेताओं ने राजनीति की इस पाठशाला में सियासी दांवपेच सीखने के बाद मौका मिलते ही दूसरे दलों का रुख कर अपने सियासी करियर को नया आयाम दिया। इसमें कई नेता सफल होकर झारखंड की राजनीति (Politics of Jharkhand) के कद्दावर बने।
झामुमो छोड़ चुके हैं कई बड़े नेता
कृष्णा मार्डी उन्हीं में से एक हैं। झामुमो के कोल्हान क्षेत्र के कद्दावर नेताओं में से एक रहे कृष्णा मार्डी झामुमो के सांसद रह चुके हैं, लेकिन एक समय ऐसा आया, जब उन्होंने पार्टी छोड़ दी। उनके अलावा पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां, पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी, पूर्व सांसद सूरज मंडल, हेमलाल मुर्मू, संताल के कद्दावर झामुमो नेता रहे साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी तक ने झामुमो छोड़ दूसरे दलों में राजनीति का नया आसमान तलाशा, इसके अलावा भी जिन नेताओं ने झामुमो से अलग रहकर भी अपना सियासी कद बनाए रखा, उनमें अर्जुन मुंडा का नाम सबसे बड़ा है। मुंडा ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत झामुमो से की थी।
एक तो तीन बार सीएम भी बने
1995 में झामुमो के टिकट पर खरसावां सीट से चुनकर बिहार विधानसभा पहुंचने वाले अर्जुन मुंडा भाजपा में जाने के बाद तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और केंद्र में भी मंत्री रहे। उनका राजनीतिक कद आज भी बरकरार है। इसी तरह झामुमो छोड़ने के बाद विद्युतवरण महतो ने तीन बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। झामुमो के सांसद रहे शैलेन्द्र महतो भी सफल माने जाएंगे, क्योंकि उन्होंने भाजपा में जाने के बाद पत्नी आभा महतो को भाजपा के टिकट पर लोकसभा पहुंचाने में सफलता पाई थी। हालांकि उन्हें भाजपा में खुद कोई खास सफलता नहीं मिली। ताजा उदाहरण जामा विधानसभा सीट से तीन बार से विधायक रहीं सीता सोरेन का है, जिन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम लिया था।
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