रांची। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने अविभाजित बिहार में वर्ष 1991 में हुए विधानसभा उपचुनाव (Assembly by-Election) में एक विधानसभा सीट के लिए दो-दो लोगों को टिकट बांट कर सबको हैरान कर दिया था। उस समय झामुमो के कद्दावर नेता रहे कृष्णा मार्डी के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद सरायकेला विधानसभा सीट खाली हो गई थी। उस समय कृष्णा मार्डी कोल्हान झामुमो के वन मैन शो थे। उनके सांसद बनने पर सरायकेला सीट खाली हुई थी, जिसके बाद यहां विधानसभा उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर खूब राजनीतिक खेल हुआ।
कृष्णा मार्डी पत्नी को दिलाना चाहते थे टिकट
चंपाई सोरेन यहां से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुके थे, लेकिन कृष्णा मार्डी चाहते थे कि चुनाव चंपाई सोरेन नहीं, बल्कि उनकी (कृष्णा मार्डी की) पत्नी मोती मार्डी लड़े। वे चाहते थे कि उनके सीट छोड़ने के बाद पत्नी मोती मार्डी को झामुमो टिकट दे। इसलिए उन्होंने हर हाल में पत्नी को टिकट दिलाने की राजनीतिक बिसात बिछा दी।
चंपाई सोरेन ने भर दिया पर्चा
उस समय संगठन में कृष्णा मार्डी की अच्छी खासी धाक थी, लेकिन चंपई सोरेन उसी समय से पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन के बेहद करीबी थे। शिबू सोरेन उन्हें (चंपाई को) अपने भाई की तरह मानते थे और शिबू सोरेन ने चंपाई को आश्वस्त भी किया था कि सरायकेला से चंपाई ही पार्टी उम्मीदवार होंगे। इस कारण तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरन के हस्ताक्षर से जारी पार्टी का टिकट चंपाई सोरेन ने ले लिया और नामांकन कर दिया। यह बात कृष्णा मार्डी को पता चली तो उन्होंने आनन-फानन में पार्टी महासचिव रहे शैलेंद्र महतो से हस्ताक्षर कराकर अपनी पत्नी के नाम से झामुमो का टिकट ले लिया।
आयोग ने दोनों को निर्दलीय घोषित कर दिया था
मोती मार्डी ने चुनाव पर्चा और झामुमो का टिकट जमा कर दिया। उधर चंपई ने भी अध्यक्ष से मिले टिकट के आधार पर पर्चा भर दिया। पर्चा भरने के बाद जब चुनाव आयोग ने पर्चे की स्क्रूटनी की तो दोनों को ही पार्टी सिंबल देने से मना कर दिया और दोनों प्रत्याशियों को निर्दलीय घोषित कर दिया। दोनों के निर्दलीय होने के बाद इस उपचुनाव में चंपई सोरेन जीत गए। उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी मोती मार्डी ही रहीं।
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