जम्मू (Jammu)। दक्षिण कश्मीर (South Kashmir) के शोपियां (Shopian) में दो युवतियों की मौत (Death of two girls) मामले में फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट (Fake post mortem report) बनाने वाले दो चिकित्सकों डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निगहत शाहीन चिल्लू को प्रदेश सरकार ने 14 साल बाद वीरवार को बर्खास्त (Two doctors sacked after 14 years) कर दिया। दोनों ने पाकिस्तान (Pakistan) के इशारे पर आशिया और नीलोफर नाम की दो युवतियों की फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार की, जिसके चलते कश्मीर घाटी में कई महीनों तक हिंसा का दुष्चक्र चलता रहा। अलगाववादियों और आतंकी संगठनों ने सेना पर युवतियों के साथ दुष्कर्म करने के बाद मार डालने का आरोप लगाते हुए पूरी घाटी में बंद तथा हिंसा का दुष्चक्र रचा था।
दोनों की मौत 29 मई 2009 को नाला पार करते समय उसमें गिरकर डूबने की वजह से हुई थी। दोनों डॉक्टरों का उद्देश्य सुरक्षा बलों पर दुष्कर्म तथा हत्या संबंधी फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर भारत के खिलाफ लोगों में आक्रोश उतपन्न करना था। जांच में पूरी तरह सच सामने आने के बाद कि दोनों डॉक्टर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विस इंटेलीजेंस (आईएसआई) तथा आतंकी संगठनों के इशारे पर काम कर रहे हैं, सरकार ने संविधान की धारा 311(2)(सी) का उपयोग करते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया।
सूत्रों के अनुसार डॉ. निगहत वर्तमान समय में चाडूरा बडगाम में परामर्शदाता स्त्री रोग तथा डॉ. बिलाल तकिया इमाम शोपियां में चिकित्सा अधिकारी के रूप में तैनात हैं। जांच में दोनों को पाकिस्तान तथा आतंकी संगठनों के इशारे पर भारत के खिलाफ साजिश रचने का मुख्य सूत्रधार पाया गया।
शोपियां मामला यह दर्शाता है कि पाकिस्तान तथा उसके छद्म संगठन कैसे जम्मू -कश्मीर में समाज तथा सरकारी संस्थानों में अपनी गहरी पैठ रखते हैं। जिससे एक बिल्कुल फर्जी कहानी बना ली जाती है। इसके लिए फर्जी साक्ष्य भी एकत्र कर लिए जाते हैं जिसमें फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही नहीं बल्कि बॉयोलॉजिकल सैंपल तक बदल दिए गए। इसका असर निरीह पुलिस अधिकारियों पर पड़ा। साथ ही न्यायिक व्यवस्था भी प्रभावित हुई।
घाटी जलती रही, पर तत्कालीन सरकार ने सच्चाई दबाए रखी
सूत्रों के अनुसार तत्कालीन सरकार के उच्चाधिकारियों को सच्चाई का पता होने के बाद उन्होंने इसे तब दबाए रखा जब कश्मीर जल रहा था। शोपियां षडयंत्र के बाद सात महीने तक घाटी जलती रही। जून से दिसंबर 2009 तक हुर्रियत व अन्य संगठनों की ओर से 42 बार बंद की कॉल दी गई।
पूरी घाटी में कानून व्यवस्था से जुड़ी छोटी बड़ी लगभग 600 घटनाएं हुईं। दंगा, पत्थरबाजी से जुड़े 251 एफआईआर किए गए। सात नागरिकों की मौत हो गई जबकि 103 लोग विरोध प्रदर्शनों के दौरान जख्मी हुए। इसके साथ ही 29 पुलिस कर्मी तथा छह अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी चोटें पहुंचीं। छह हजार करोड़ रुपये का कारोबार सात महीने की हिंसा में प्रभावित हुआ।
चार-चार पोस्टमार्टम रिपोर्टें बनाईं गईं :
डॉ. निगहत, डॉ. बिलाल और अन्य आरोपियों ने दोनों युवतियों का फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाने का षडयंत्र रचा। एक नहीं बल्कि चार-चार रिपोर्टें बनाई गईं, जो एक दूसरे की विरोधाभासी थीं। घटना के वक्त जो चीजें नहीं भी हुईं थीं उसे कृत्रिम तरीके से शामिल किया गया। साथ ही जो चीजें हुई थीं उसे जानबूझकर नष्ट कर दिया गया। इतना ही नहीं मृतकों के बजाय अज्ञात लोगों के बॉयोलॉजिकल सैंपल फर्जी तरीके से एकत्र किए गए।
यह था मामला
मामला यह है कि आशिया और नीलोफर 29 मई 2009 को रामबियारा नाले के पार अपने सेब के बगीचे में गई थीं। शाम को लौटते समय पैर फिसलने के कारण वे गिर गईं और डूबने के कारण उनकी मौत हो गई। अगले दिन सुबह उनका शव नाले से कुछ दूरी पर परिवार के लोगों को मिला।
पुलिस के सहयोग से शव को घर लाया गया। चूंकि महिलाएं जवान थीं और मौत किसी बीमारी की वजह से नहीं हुई थी इस वजह से पुलिस ने धारा 174 के तहत इन्क्वेस्ट की कार्यवाही शुरू कर दी। इसके बाद शव को उप जिला अस्पताल शोपियां लाया गया।
इस बीच अलगाववादियों तथा आतंकियों के नेटवर्क ने यह महसूस किया कि इस मामले को हाइजैक कर घाटी में हिंसा, आगजनी तथा पत्थरबाजी का दौर शुरू किया जाए।
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