श्रीनगर (Srinagar)। जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में अनुच्छेद 370 (Article 370) खत्म होने के बाद पहले विधानसभा चुनावों (assembly elections) से पूर्व भाजपा (BJP) अपने मजबूत आधार वाले जम्मू क्षेत्र को चाक चौबंद करने पर जोर दे रही है। कांग्रेस (Congress) से बाहर जाकर नई पार्टी बनाने वाले गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) भी बहुत सफल होते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में जम्मू-कश्मीर दोनों क्षेत्रों में नए समीकरण उभर सकते हैं।
परिसीमन के बाद चुनाव आयोग वहां पर चुनाव कराने की तैयारियों पर नजर रखे हैं। चुनाव वहां के हालात पर निर्भर करेंगे। इस साल गर्मियों में भी चुनावों की स्थिति बन सकती है। जम्मू-कश्मीर के भाजपा नेताओं ने हाल में दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठक की थी। इसके बाद भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष ने भी जम्मू का दौरा किया था। अमित शाह भी अब जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं। भाजपा नए परिसीमन व राज्य के राजनीतिक दलों व राजनेताओं की स्थति पर नजर रखे हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार भाजपा के लिए जम्मू क्षेत्र को और मजबूत करने की जरूरत है, क्योंकि घाटी की राजनीति में उसे कोई खास सफलता मिलने की स्थिति नहीं बन रही है। सूत्रों के अनुसार हाल में जम्मू-कश्मीर के पार्टी नेताओं के दिल्ली दौरे में वैसे तो राजौरी व पुंछ की घटनाओं को लेकर ज्यादा चिंता रही, लेकिन संगठन के स्तर पर चुनावी रणनीति को भी समझा गया। इसके बाद बीएल संतोष का जम्मू दौरा संगठनात्मक तैयारी के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। राज्य में जो प्रमुख ताकतें हैं उनमें भाजपा के साथ पीडीपी, नेशनल कांफ्रेस, कांग्रेस प्रमुख हैं। अन्य नेताओं के छोटे दल एक दो सीटों पर ही असर रखते हैं।
सूत्रों के अनुसार भाजपा कश्मीर में नेतृत्व परिवर्तन भी कर सकती है। मौजूदा अध्यक्ष रवींद्र रैना बहुत प्रभावी नहीं रहे हैं। इस बीच जम्मू क्षेत्र में देवेंद्र सिंह राणा के आने के बाद भाजपा को मजबूती मिली है। देवेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के भाई हैं और उनका वहां पर काफी प्रभाव माना जाता है। हालांकि भाजपा के लिए कश्मीरी पंडितों का मुद्दा भी अहम है। रैना कश्मीरी पंडित हैं।
भाजपा को मिल सकता था लाभ
बीते दिनों गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से बाहर जाकर नया दल बनाने से भाजपा के लिए बेहतर स्थिति बनती दिख रही थी। इससे जम्मू क्षेत्र में कांग्रेस व गुलाम नबी आजाद के दल के बीच वोट बंटने का लाभ भाजपा को मिल सकता था, लेकिन गुलाम नबी अपनी पार्टी को संभाल कर ही नहीं रख पाए हैं। कई बड़े नेता वापस कांग्रेस में लौट गए हैं। अब भाजपा को जम्मू क्षेत्र में कांग्रेस व नेशनल कांफ्रेंस से चुनौती मिल सकती है। कश्मीर क्षेत्र में पीडीपी व नेशनल कांफ्रेंस व अन्य कुछ स्थानीय नेता प्रभावी रह सकते हैं।
बहुमत हासिल करना बेहद मुश्किल
इससे जम्मू-कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा में किसी एक दल के लिए बहुमत हासिल कर पाना बेहद मुश्किल होगा। परिसीमन के बाद 83 सदस्यीय विधानसभा अब 90 सदस्सीय होगी। इसमें कश्मीर संभाग में सीटें 46 से बढ़कर 47 होंगी, जबकि जम्मू संभाग में 37 से बढ़कर 43 हो जाएंगी। जम्मू संभाग में ज्यादा सीटें बढ़ने पर भी कश्मीर संभाग में सीटें ज्यादा है। अनुसूचित जाति के लिए सात व अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित होंगी। इनमें तीन सीटें कश्मीर क्षेत्र की हैं। यह सीटें राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved