नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में आतंकवाद अपने अंतिम दौर में है. यह कहना केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह (Jitendra Singh) का है. सिंह ने बताया कि केंद्र शासित प्रदेश का युवा भारत (India) की मुख्यधारा के साथ बढ़ना चाहता है. साक्षात्कार के दौरान सिंह ने परिसीमन (Delimitation) को लेकर जारी विपक्ष की गतिविधियां और प्रदेश के दर्जे के मुद्दे पर भी बात की. हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने भी जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था.
सिंह बताते हैं कि आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षाबलों द्वारा कड़ी कार्रवाई की जा रही है और रडार पर आने के कुछ महीनों में ही उन्हें निष्क्रिय किया जा रहा है. जबकि, पहले आतंकी कमांडर इलाके में एक खास दर्जा हासिल कर लेते थे. उन्होंने कहा कि आतंकी मासूम नागरिकों को निशाना बनाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं.
अमित शाह का बयान जम्मू-कश्मीर की आम जनता और खासकर युवाओं तक पहुंचने की नीति से जुड़ा हुआ है. आबादी में ज्यादातर युवा हैं. यही सही दृष्टिकोण है. जम्मू-कश्मीर का युवा वास्तव में आगे बढ़ना चाहता है. हो सकता है कि हिंसा की सामयिक घटनाओं के चलते वह खुद को रोक रहा हो या शायद पीछे हट रहा हो. लेकिन असलियत यह है कि जम्मू-कश्मीर का युवा बहुत महत्वाकांक्षी है.
यह बात एक से ज्यादा बार साबित हो चुकी है, जब उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन किया है. इस साल का NEET का टॉपर जम्मू-कश्मीर से है. सिविल सेवाओं में भी हमें जम्मू-कश्मीर से टॉपर मिल रहे हैं. उन्हें एहसास हो गया है कि उन्हें अपनी महत्वाकांक्षाओं और योग्यताओं को पूरी तरह दिखाना होगा.
आतंकी छिपने या भागने की कोशिश कर रहे हैं, इसी के चलते इस तरह की घटनाएं हे रही हैं. वे सॉफ्ट टार्गेट्स को निशाना बनाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं. आतंकवाद काफी नियंत्रण में है. पहले अगर आप आंकड़ों को देखें और पहले के सालों और खासतौर से 2014 के पहले से उनकी तुलना करें, तो काफी बदलाव हुआ है. यह आतंकवाद का आखिरी दौर है.
बीते 7 सालों में हुई नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों की हत्याओं की संख्या पहले की तुलना में काफी कम है. दूसरा, पीएम मोदी की तरफ से लिए गए सर्जिकल स्ट्राइक्स और दूसरे निर्णायक फैसलों के बाद कोई भी बड़ी घटना नहीं हुई है. ये सामयिक घटनाएं इसलिए हो रही हैं, क्योंकि वे खुद को दिखाने के लिए सॉफ्ट टार्गेट्स चुन रहे हैं. जबकि, पहले के विपरीत अब वे भाग रहे हैं और सुरक्षाकर्मी उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं.
तीसरा सबूत आतंकी का औसत जीवन भी कम होकर कुछ महीनों या एक साल पर आ गया है. जैसे ही पता लगता है कि नया आतंकी कमांडर सामने आया है, फिर कुछ महीनों में ही उसका सफाया कर दिया जाता है. अब ऐसा नहीं होता कि एक कमांडर दशक का लीजेंड बन जाए. यह सभी संकेत जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे के संकेत हैं. सबसे जरूरी बात यह है कि आम आदमी और खासकर चुवा आगे बढ़ना चाहते हैं. अब वे इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि उनका जीवन पीएम मोदी के नेतृत्व वाले भारत की मुख्यधारा के साथ है. साथ ही वे इस मौके को गंवाना नहीं चाहते, क्योंकि वे महत्वाकांक्षी युवा हैं.
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