ज्जैन। नए एसपी ने झिंझर काण्ड से संबंधित इनपुट ले लिए हैं। उन्होने नए सिरे से अपनी जांच का दायरा बढ़ाया है। जांच में एसपी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि दवा बाजार से आरोपितों द्वारा झिंझर बनाने के लिए जो स्प्रिट और विभिन्न नशे की गोलियां खरीदी जाती थी,उसे किस आधार पर संबंधित दवा विक्रेताओं द्वारा दवा बाजार में बेचा जाता था। एसपी सत्येंद्र शुक्ला ने हिस से चर्चा में बताया कि ड्रग इंस्पेक्टर अपने हिसाब से जांच कर रहे हैं। पुलिस विभाग अपने हिसाब से जांच करेगा।
एसपी के अनुसार सबसे अहम सवाल यह है कि स्प्रिट और रासायनिक पदार्थ/नशे की दवाईयां/गोलियां आदि को आरोपितों ने किस आधार पर खरीदा। वे यह माल बगैर बिल के किसप्रकार लेते थे और संबंधित एजेंसियों द्वारा बगैर बिल के किसप्रकार से बेचा गया।
इधर सूत्र बताते हैं कि लॉकडाउन अवधि में सबसे अधिक खपत झिंझर की हुई। यह नशा करने वालों को अधिक सुगमता से उपलब्ध हुई। इसकी खपत को लेकर यह प्रश्न उठा कि आखिर इतनी अधिक मात्रा में इसे दवा एजेंसियों द्वारा कैसे मंगवाया गया, चूंकि लॉकडाउन अवधि में पूरा दवा बाजार खुला रहा, वहां सीसीटीवी केमरे लगे हुए हैं। इनकी भी सहायता उक्त अवधि में चिंहित दुकानों पर आने जानेवालों की जानकारी निकालने के लिए ली जा रही है। एसपी के अनुसार तह तक जाया जाएगा और जानकारी निकालकर दोषियों को पकड़ा जाएगा। किसी को भी गलती होने पर बख्शा नहीं जाएगा।
दो प्रकार का स्प्रिट आता है बाजार में…
दवा बाजार के सूत्रों के अनुसार बाजार में दो प्रकार का स्प्रिट आता है। ऑरीजनल स्प्रिट कोटे से मिलता है। यह साधारणतया दवाईयां बनाने के काम में आता है। आयसोप्रोफाइल को साधारणतया सर्जिकल उपकरणों को स्टरलाइन करने एवं इंजेक्शन लगाने से पूर्व कॉटन भिगोकर इंजेक्शन लगाने वाली जगह पर रब करने के काम में आता है। कोविड-19 के समय सरकार ने इथेनाल का कोटा रिलिज किया था। इसे कोई भी खरीद सकता था। खरीदने के बाद यह सेनेटाईजर बनाने के लिए उपयोग में लाया गया। जो सेनेटाईजर बनाता था,बोतल पर लिख देता था कि मेडिकल यूज के लिए नहीं है। सरकार द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिया गया कि खुले बाजार में बेचने के लिए जिस प्रकार से कोटा जारी किया गया है,उसका गलत उपयोग भी हो जाएगा, क्योंकि शराब की दुकानें लॉकडाउन में बंद थी। यही कारण रहा कि गैर कानूनी काम करने वालों की बन आई।