नई दिल्ली । झारखंड (Jharkhand) के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के वरिष्ठ नेताओं में शुमार रहे चंपाई सोरेन (Champai Soren) ने पार्टी छोड़ने की बात साफ कर दी है. चंपाई ने आगे के प्लान पर विकल्पों के संकेत जरूर दिए हैं लेकिन स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा है. कुछ महीनों में ही झारखंड विधानसभा के चुनाव (Jharkhand assembly elections) होने हैं और ऐसे में कयास उनके भारतीय जनता पार्टी (BJP) जॉइन करने के भी हैं. अटकलों-कयासों के बीच बात इसे लेकर भी हो रही है कि कोल्हान टाइगर चंपाई झारखंड की सियासत में कितने पावरफुल हैं और उनकी पकड़ जमीन पर कितनी मजबूत है?
कोल्हान टाइगर कितने पावरफुल
कोल्हान टाइगर चंपाई सोरेन झारखंड की प्रभावशाली संथाल जनजाति से आते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड की कुल 3 करोड़ 29 लाख 88 हजार 134 की आबादी में जनजातियों की भागीदारी 86 लाख 45 हजार 42 लोगों की है. इसमें भी अकेले संथाल आबादी ही 27 लाख 54 हजार 723 लाख है. चंपाई सोरेन संथाल जनजाति के शीर्ष नेताओं में गिने जाते हैं. झारखंड राज्य की मांग को लेकर हुए आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले चंपाई की अन्य जनजाति के लोगों के बीच भी मजबूत पैठ मानी जाती है.
चंपाई सोरेन जिस कोल्हान रीजन से आते हैं, उस रीजन में सरायकेला, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिले आते हैं. इन तीन जिलों में विधानसभा की 14 सीटें हैं. 2019 के झारखंड चुनाव में बीजेपी इस रीजन में खाता तक नहीं खोल पाई थी. जेएमएम को इस रीजन की 11 सीटों पर जीत मिली थी जबकि दो सीट पर कांग्रेस और एक से निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली थी.
तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास को भी जमशेदपुर सीट पर शिकस्त का सामना करना पड़ा था. जमशेदपुर सीट भी कोल्हान रीजन में ही आती है. इसके लिए चंपाई की वोटर्स पर पकड़ के साथ ही मजबूत किलेबंदी और रणनीति को भी दिया गया था. कोल्हान को अगर जेएमएम का गढ़ कहा जाता है तो उसके रणनीतिकार चंपाई माने जाते हैं.
चंपाई सोरेन के बागी होने की वजह क्या है?
चंपाई सोरेन उन नेताओं में से हैं जो झारखंड राज्य आंदोलन के समय से ही शिबू सोरेन के साथ रहे हैं. जेएमएम और सोरेन परिवार में चंपाई के कद का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कई मौकों पर पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते देखे गए हैं. चंपाई की सोरेन परिवार से करीबी भी एक बड़ी वजह थी कि जब हेमंत के जेल जाने की नौबत आई, तब पार्टी ने शिबू सोरेन की बहु सीता सोरेन के विधायक रहते हुए भी सीएम पद के लिए उन्हें चुना. हालांकि, यही फैसला एक तरह से चंपाई की नाराजगी की भी वजह बन गया.
चंपाई को सरकार की कमान तब सौंपी गई थी जब भ्रष्टाचार के मामले में ईडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया था. गिरफ्तारी से ठीक पहले हेमंत ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा और इसके बाद चंपाई की अगुवाई में नई सरकार का गठन हुआ था. चंपाई ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बागी होने की वजहें भी बताई हैं. चंपाई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा कि अपमानित करके मुख्यमंत्री पद से हटाया गया. विधायक दल की मीटिंग का एजेंडा तक नहीं बताया गया और इससे दो दिन पहले ही सारे कार्यक्रम कैंसिल करा दिए गए. विधायक दल के नेता पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया.
चंपाई के बागी होने से झारखंड में सरकार को क्या खतरा हो सकता है?
झारखंड विधानसभा की स्ट्रेंथ 82 है जिनमें से 81 सीटों के लिए चुनाव होते हैं. विधानसभा की सात सीटें रिक्त हैं और विधानसभा की कुल स्ट्रेंथ इस समय मनोनित सदस्य समेत 75 है. ऐसे में बहुमत के लिए 38 सदस्यों का समर्थन चाहिए. हेमंत सरकार के पास जेएमएम के 26, कांग्रेस के 16, झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक, आरजेडी के एक-एक विधायकों के साथ ही एक मनोनित सदस्य का समर्थन है. हेमंत सरकार के पास विधानसभा में 45 विधायकों का समर्थन है. ऐसे में अगर ये मान लिया जाए कि चंपाई सोरेन समेत आधा दर्जन विधायक पार्टी छोड़ेंगे, तो भी सरकार को कोई खतरा नहीं है. कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में विपक्ष भी नहीं चाहेगा कि सत्ताधारी दल को जनता के बीच खुद को पीड़ित के तौर पर लेकर जाने का मौका दिया जाए.
बीजेपी को इससे क्या फायदा होगा?
अब सवाल ये भी है कि आखिर इस पूरे घटनाक्रम से बीजेपी को क्या फायदा होगा? बीजेपी पूरा जोर लगाने के बावजूद पिछले चुनाव में कोल्हान रीजन का किला नहीं भेद पाई थी. कोल्हान रीजन और उसके आसपास की सीटों पर उम्मीदवार चयन से लेकर रणनीति तय करने तक, जेएमएम में चंपाई सोरेन की भूमिका अब तक अहम रही है. बीजेपी नेताओं को लगता है कि चंपाई के जेएमएम छोड़ने से इस रीजन में बीजेपी की राह उतनी मुश्किल नहीं रहेगी.
चंपाई अगर बीजेपी में आते हैं तो पार्टी को एक कद्दावर आदिवासी नेता मिल जाएगा. दूसरा, बीजेपी को हेमंत सोरेन और जेएमएम को परिवारवाद की पिच पर घेरने का मौका भी मिल जाएगा. चंपाई को सीएम पद से हटाए जाने के बाद झारखंड बीजेपी के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा भी था- ये साबित हो गया है कि कोई आदिवासी ही क्यों न हो, सीएम की कुर्सी पर इन्हें परिवार से बाहर का व्यक्ति बर्दाश्त नहीं. एक रणनीति जेएमएम के लिए गेम चेंजर बताई जा रही मुख्यमंत्री मंईयां योजना भी है. इस योजना का ऐलान चंपाई के सीएम रहते हुआ था और पार्टी की कोशिश होगी कि इसका क्रेडिट जेएमएम के हिस्से न जाए.
जेएमएम को कितना नुकसान होगा?
चंपाई अगर बीजेपी में जाते हैं तो इससे जेएमएम की मुश्किलें बझ़ जाएंगी. पार्टी सीएम हेमंत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, परिवारवाद के मोर्चे पर घिरी है. ऐसे में स्वच्छ छवि के एक नेता का पार्टी छोड़ विरोधी खेमे में चले जाना, नैतिक हानि होगी ही. जेएमएम के नेता इससे किसी भी तरह के राजनीतिक नुकसान के अनुमान को खारिज कर रहे हैं लेकिन कहा जा रहा है कि पार्टी को थोड़े ही सही, आदिवासी वोट और विधानसभा सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है.
जेएमएम को इस मुद्दे को चुनावों में कैसे भुना सकती है?
चंपाई की बगावत को लेकर सीएम हेमंत सोरेन ने नाम लिए बिना बीजेपी पर निशाना साधा है. हेमंत सोरेन ने कहा कि ये लोग गुजरात, असम, महाराष्ट्र से लोगों को लाकर आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के बीच जहर बोने और एक दूसरे से लड़ाने का काम करते हैं. समाज तो छोड़िए, ये लोग घर फोड़ने और पार्टी तोड़ने का काम करते हैं. आए दिन कभी इस विधायक को खरीद लेंगे, कभी उस विधायक को खरीद लेंगे और पैसा ऐसी चीज है कि नेता लोगों को भी इधर-उधर जाने में देर नहीं लगती है, खैर कोई बात नहीं.
सीएम हेमंत सोरेन के बयान के बाद जेएमएम रणनीति जनता के बीच ये नैरेटिव सेट करने की है कि सीएम ने जेल जाते समय इतने विधायकों में सिर्फ चंपाई पर भरोसा किया, उन्हें अपनी कुर्सी सौंप कर सम्मान दिया लेकिन अब वही विश्वास का गला घोट रहे हैं. बीजेपी चंपाई के बहाने जहां आदिवासी अस्मिता की पिच पर जेएमएम को घेरने की रणनीति पर बढ़ती दिख रही है वहीं जेएमएम की कोशिश ईडी की कार्रवाई के बाद हेमंत की पीड़ित वाली छवि बनाए रखने की है.
चंपाई की बगावत के पीछे क्या हिमंता बिस्वा या शिवराज का रोल है?
चंपाई चैप्टर में झारखंड बीजेपी के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा का रोल है? झारखंड के घटनाक्रम में ये भी हॉट टॉपिक बना हुआ है. हाल ही में असम के सीएम और पूर्वोत्तर के चाणक्य हिमंता बिस्वा सरमा एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए रांची पहुंचे थे. हिमंता ने जेएमएम और हेमंत सोरेन की सरकार पर जमकर हमला बोला लेकिन चंपाई सोरेन की सरकार के कामकाज की तारीफ ही की. हिमंता ने कहा कि जो थोड़े-बहुत काम हुए हैं, वह चंपाई सोरेन के कार्यकाल में ही हुए हैं. मुख्यमंत्री मंईयां योजना भी चंपाई सरकार की देना है. हिमंता इससे पहले भी चंपाई सरकार की कई मौकों पर तारीफ कर चुके हैं.
जेएमएम से गीता कोड़ा, सीता सोरेन की बगावत का नतीजा क्या?
चंपाई के पहले भी कई नेता जेएमएम छोड़कर जा चुके हैं. हेमलाल मुर्मू, सूरज मंडल, जेपी पटेल और अर्जुन मुंडा से लेकर हालिया लोकसभा चुनाव में पार्टी छोड़ गईं सीता सोरेन और गीता कोड़ा तक, जेएमएम छोड़कर दूसरे दलों में गए नेताओं की लंबी लिस्ट है. कई नेता बीजेपी में भी शामिल हुए लेकिन एक अर्जुन मुंडा ही हैं जो मुख्यमंत्री भी बने और केंद्रीय मंत्री भी. सीता सोरेन और गीता कोड़ा को बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया था लेकिन दोनों ही नेताओं को मात मिली थी.
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