हजारीबाग (Hazaribagh)। झारखंड (Jharkhand) की पारंपरिक सोहराई और खोवर कला (Traditional Sohrai and Khowar Art) को लोकप्रिय बनाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले जस्टिन इमाम (Justin Imam) का शनिवार को हजारीबाग में निधन हो गया। प्रख्यात पर्यावरणविद् (renowned environmentalist) और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित (Padmashree award honored) बुलु इमाम (Bulu Imam) के सबसे बड़े पुत्र जस्टिन को शनिवार तड़के तीन बजे दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने अपने स्थानीय दीपुगढ़ा आवास पर अंतिम सांस ली। वह 49 वर्ष के थे। शोक संतप्त पिता ने बताया कि उनके बेटे को हजारीबाग कब्रिस्तान में दफनाया गया।
जस्टिन के प्रयास से सोहराई कला को भौगोलिक पहचान (जीआई) टैग मिला था। बुलु इमाम ने बताया कि जस्टिन के प्रयासों के कारण, सोहराई और खोवर पेंटिंग को नए संसद भवन की दीवारों में जगह मिली। राज्य के पारंपरिक कला को पुनर्जीवित करने के प्रयास में लगे कलाकारों के लिए जस्टिन का निधन बहुत बड़ा नुकसान है।
बुलु इमाम ने कहा कि जस्टिन ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि जस्टिन इमाम के प्रयासों और कड़ी मेहनत के कारण कई ग्रामीण कलाकारों ने राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नाम कमाया। जस्टिन को आदिवासी कला और कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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